शिवरात्रि: पूरी होगी हर मुराद, एेसे करें पूजा

Last Updated 04 Mar 2019 01:03:58 PM IST

फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आश्रय कर जिस अंधकारमय रजनी का उदय होता है, उसे शिवरात्रि कहते हैं. महाशिवरात्रि के दिन सृष्टि में शिवलिंग का प्रादुर्भाव हुआ था।


शिवरात्रि पर पूरी होगी हर मनोकामना, यूं करें पूजा

महाशिवरात्रि के दिन सृष्टि में शिवलिंग का प्रादुर्भाव हुआ था। इसी वजह से हिंदू धर्म में शिवरात्रि के दिन शिव पूजन एवं उपवास का विशेष महत्व है। भगवान शिव की आराधना उनके अनेक नामों से की जाती है। उसी प्रकार शिव आराधना के लिये अलग-अलग व्रत हैं, जैसे-सोमव्रत, प्रदोषव्रत, शिवरात्रि व्रत. इसमें शिवरात्रि व्रत का विशेष महत्व है।

यह व्रत स्त्री, पुरुष, बाल, वृद्ध एवं समस्त वर्णों के लिए उत्तम है एवं समस्त मनो कामनाओं की पूर्ति करने वाला है. गुरुवार को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा. इस दिन आठों प्रहरों अर्थात् चार प्रहर दिवस चार प्रहर रात्रि में भगवान शिव का पूजन करना श्रेष्ठ माना जाता है.

वैदिक विधान से शिव उपासना के लिये सम्पूर्ण रुद्राष्टाध्यायी की आवृत्ति पाठ और अभिषेक करना रुद्राभिषेक कहलाता है और शिवरात्रि के दिन इस अभिषेक का विशेष महत्व है.

शिवजी पर विभिन्न पदार्थों की धारा चढ़ाने से सर्वकामनाएं सिद्ध होती हैं, जैसे-जलधारा से वृष्टि व शांति मिलती है, दूध एवं दही की धारा से संतान की प्राप्ति होती है, इच्छु (गन्ना) रस धारा से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, मधु की धारा से कोष की वृद्धि, घृत की धारा से ऐश्वर्य की प्राप्ति एवं तीर्थ जल से अभिषेक करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.

शिव पूजन में निषिद्ध पुष्प- कदम, केवड़ा, कैथ, बहेड़ा, कपास, जूही, सेमल, अनार आदि हैं. शिवरात्रि के रात्रि के चार प्रहरों में चार बार पृथक-पृथक पूजन का विधान है. प्रथम प्रहर में दुग्ध द्वारा शिव की ईशान मूर्ति को, द्वितीय प्रहर में अघोर मूर्ति को, तृतीय प्रहर में घृत द्वारा वाम देव मूर्ति को एवं चतुर्थ प्रहर में मधु द्वारा सधोजात मूर्ति को स्नान कराकर
उसका पूजन करना चाहिए.

महाशिवरात्रि व्रती को भी शिव महापुराण में प्रतिपादित यह कथा कहनी या सुननी चाहिये. वह निम्न है-

‘एक निषाद बड़ा क्रूर, हिंसक और पापी था. वह प्रतिदिन जंगल जाकर बहुत से जीवों का शिकार करता था. एक दिन वह शिकार के लिये दूर जंगल में चला गया. दिन भर खोजने पर भी उसे शिकार नहीं मिला, इस पर दुखी और निराश होकर चिंता करने लगा. उसने सोचा कि संभवत: जलाशय में ही कोई जंतु चला आए, खोजने पर उसे जलाशय भी मिल गया. किंतु तब तक संध्या हो चुकी थी.

शिकारी ने सोचा, आज की रात्रि यहीं बिताई जाये, शायद रात्रि तक कोई जीव भी मिल जाए. इस विचार से वह जलाशय के किनारे अपने रहने लायक जगह साफ करने लगा. उसी जगह बेल का वृक्ष था और उसके नीचे ही स्वत:सिद्ध शिवलिंग था. भूमि साफ करते समय निषाद के हाथ से लिंग के ऊपर बेल पत्र पड़ गए.

निषाद दिन भर का भूखा था एवं रात्रि भर उसी शिवलिंग के समीप विल्व वृक्ष के नीचे बैठा जागता भी रहा. संयोगवश उस दिन महाशिवरात्रि थी. इसका फल यह हुआ कि अन्त में जब उसने देह का त्याग किया, तब शिवकृपा से उसने शिवलोक में शिव गण का पद पाया.

शिव पूजन हेतु प्रयोग की जाने वाली सामग्री विल्व पत्र, पुष्प, चंदन, रोली, अक्षत, जल, दूध, दही, शहद, घी, शक्कर, तिल, भांग, धतूरा, शमी पत्र, सतनजा, जनेऊ, भस्म, इत्र, पान,  सुपारी, लौंग, इलायची आदि. शिव पूजन में तीन दलों से युक्त बिल्व पत्र चढ़ाने का विशेष महत्व है, यह हमारे तीन जन्मों के पापों का नाश करता है. शिव पूजन में चढ़ाये जाने वाले पुष्प-कनेर, आम, धतूरा, कमल, चमेली, चम्पा, गुलाब, खस, गूलर, पलाश, बेला, केसर आदि हैं.

महाशिवरात्रि के दिन सृष्टि में शिवलिंग का प्रादुर्भाव हुआ था. इसी वजह से हिंदू धर्म में शिवरात्रि के दिन शिव पूजन एवं उपवास का विशेष महत्व है.

 

समय लाइव डेस्क/एजेंसियां


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