सुमित्रनंदन पंत: प्रकृति का सुकुमार कवि
प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रनंदन पंत के काव्य में न केवल प्रकृति प्रेम और सौंदर्य की छटा मिलती है अपितु बाद की रचनाओं में छायावाद का प्रभाव और मार्क्सवाद का असर देखने को मिलता है।
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(सुमित्रानंदन पंत जयंती )
हिन्दी अकादमी के उपाध्यक्ष अशोक चक्रधर ने कहा, ’’पंत छायावादी आंदोलन के दौरान प्रकृति की सुंदरता को उकेरने वाले कवि हैं और जब प्रगतिवादी स्वर के बीच राष्ट्रीय चेतना के विमर्श में ’परिवर्तन’ शब्द कवियों ने लिखा तो ’परिवर्तन’ पर सबसे लंबी कविता उन्होंने ही लिखी।’’
उन्होंने बताया, ’’पंत को नये शब्दों को गढ़ना प्रिय था और ’सुंदर’ उनका प्रिय शब्द रहा।’’ पंत सात वर्ष की उम्र में जब चौथी कक्षा में पढ़ रहे थे, तभी से कविता लिखने लग गये थे। स्वयं कवि ने 1907 से 1918
के काल को कवि जीवन का प्रथम चरण माना है। ये कविताएं ’वीणा’ में संग्रहित हैं। वर्तमान उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के कौसानी ग्राम की मनोरम घटियों में 20 मई 1900 को जन्मे सौंदर्यवादी कवि सुमित्रनंदन पंत एक विचारक, दार्शनिक और मानवतावादी के रूप में सामने आते हैं। लेकिन 1918 से 1924 तक लिखी गयी 32 कविताओं का संग्रह ’पल्लव’ सबसे कलात्मक है।पंत का रचा हुआ संपूर्ण साहित्य सत्यम शिवम सुंदरम के आदर्शों से प्रभावित होते हुए भी समय के साथ निरंतर बदलता रहा है।
प्रारंभिक कविताओं में प्रकृति प्रेम और सौंदर्य की छटा मिलती है जिसका उत्कर्ष पल्लव में देखने को मिलता है। 1936 के बाद के कविता संग्रह ’युगांत’ और ’ग्राम्या’ में मार्क्सवाद का स्पष्ट प्रभाव देखने को मिलता है।
कवि पंकज सिंह ने पंत के बारे में कहा, ’’हिन्दी साहित्य का ’वर्ड्सवर्थ’ कहते समय हम पंत की आरंभिक कविताओं को याद करते हैं, जिसमें प्रकृति के बिंबों का अनूठा और विरल चित्रण है। उनकी प्रेम कविताएं हिन्दी
में अद्वितीय हैं और अन्यतम कविताओं में से हैं।’’
उन्होंने कहा, ’’मैं पंत को गंभीर मानवतावादी मानता हूं और जहां कहीं भी जो भी सुंदर है उसका प्रेमी मानता हूं। उनकी कविता हर जगह मौजूद सौंदर्य को संवेदना के सूक्ष्म स्तर तक जाकर सराहती है। उनकी कविता
मानवतावाद के सौंदर्य को उकेरती है।’’
पंत की उत्तरकालीन रचनाओं में अरविंद की विचारधारा की छाप देखने को मिलती है। वह सूक्ष्म भावों की अभिव्यक्ति और सचल दृश्यों के चित्रण में अद्वितीय हैं। भाषा बड़ी सशक्त एवं समृद्ध है। मधुर भावों और
कोमलकांत गीतों के लिए सिद्धहस्त हैं। 28 दिसंबर 1977 को दुनिया से कूच करने वाले पंत को 1960 में ’कला
और बूढ़ा चांद’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार और 1968 में ’चिदम्बरा’ के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। आधी सदी से भी लंबे उनके रचनाकर्म में आधुनिक हिन्दी कविता का पूरा युग समाया हुआ है।
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