विकास, विश्वास, बदलाव की ताल

Last Updated 28 May 2022 06:26:52 AM IST

वर्तमान केंद्र सरकार दो दिन बाद अपने दूसरे कार्यालय के तीन साल पूरे कर लेगी। स्वाभाविक ही है कि इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लगातार दूसरी पारी खेल रही सरकार का विभिन्न मोर्चो पर मूल्यांकन किया जाए। पहली पारी से इस कार्यकाल की तुलना हो, सफलताओं और विफलताओं को एक-दूसरे के बरक्स तौला जाए, तीन वर्षो में देश की तरक्की का विश्लेषण हो और सामने खड़ी चुनौतियों को लेकर देश की तैयारियों का आकलन भी हो। बेशक, ये सब चिर-परिचित प्रक्रियाएं हैं, लेकिन लोकतंत्र को चलायमान बनाए रखने के लिए यह अभ्यास भी अपरिहार्य है।


विकास, विश्वास, बदलाव की ताल

साल 2014 का जनादेश, जिसने मोदी को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के शीर्ष पर पहुंचाने का काम किया, उसके पीछे कई वजहें गिनाई गई-एक नेता के रूप में मोदी का व्यक्तिगत करिश्मा, संघ के कैडर के जमीनी प्रयास, तत्कालीन यूपीए सरकार की विफलताएं आदि। पांच वर्ष बाद जब साल 2019 के चुनाव हुए तो यूपीए सरकार वाला पहलू अस्तित्वहीन हो चुका था। फिर भी जीत ने मोदी का वरण किया, साल 2014 के जनादेश से भी बढ़कर। इस जीत के भी कई कारण गिनाए जा सकते हैं, लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण कारण बना मोदी सरकार का पांच साल का प्रदशर्न। इस दौरान सरकार ने जन-कल्याण की बहुत सी योजनाओं का खाका ही नहीं खींचा, बल्कि उन पर ईमानदारी से अमल भी किया। अब जबकि सरकार दूसरी पारी में तीन साल की यात्रा पूरी कर रही है, तो इस सफर को सफल बनाने में तीन बड़े कारक उभर कर सामने आए हैं-विकास, विश्वास और बड़े बदलाव।

स्पष्ट दिखे बदलाव
एक देश के तौर पर परिवर्तन के लिहाज से तीन साल का समय कोई बड़ा अंतराल नहीं होता, लेकिन मोदी सरकार के कार्यकाल के तीन साल को देखा जाए तो तीन बड़े बदलाव स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। सबसे बड़ा बदलाव तो बेहिचक देश के लिए बढ़ा जनता का जुड़ाव है। आज जनता खुद बढ़कर रिफॉर्म को गति दे रही है और ब्यूरोक्रेसी भी उन रिफॉर्म को जमीन पर उतारने में पूरी शक्ति से जुटी है। मोदी 1.0 में स्वच्छ भारत अभियान में हमने शायद इसकी झलक मात्र देखी थी, क्योंकि मोदी 2.0 में लोकल फोर वोकल और आत्मनिर्भर अभियान का संकल्प पूरा करने के लिए हम देश की जनता का कल्पनातीत समर्पण देख रहे हैं। बीते गुरु वार को हैदराबाद में इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के 20 वर्ष पूरे होने के कार्यक्रम में खुद प्रधानमंत्री ने इस बदलाव को रेखांकित किया। सरकार की सरोकारी सोच के समानांतर जनभागीदारी और आत्मनिर्भरता का सबसे बड़ा मेल हमें दिखाई दिया कोरोना महामारी के खिलाफ देश की लड़ाई में। एक साल में कोरोना वैक्सीन के 160 करोड़ डोज और 80 करोड़ लोगों को निरंतर मुफ्त भोजन उपलब्ध करवाकर देश अभूतपूर्व आत्मविश्वास से भरा दिख रहा है। जनमानस का उत्साह यही संकेत दे रहा है कि कोविड-19 से पूरी तरह पार पाने के बाद देश नई शक्ति, नई ऊर्जा के साथ दुनिया का नेतृत्व करता दिखेगा। ऐसा अटूट विश्वास भारत ही नहीं, विश्व में भी दुर्लभ है।

बदलाव का संदेश देने में भारत सफल
देश के अंदर ही नहीं, विदेश मंत्री एस जयशंकर के नेतृत्व में भारत को लेकर दुनिया के बाहर भी धारणा बदली है, जिसे हम मोदी 2.0 का दूसरा बड़ा बदलाव कह सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के मार्गदशर्न और जयशंकर की अगुवाई में भारत पिछले तीन साल में दुनिया को बदलाव का संदेश देने में कामयाब हुआ है कि अब उसकी भी राष्ट्रीय हितों से प्रेरित एक स्वतंत्र विदेश नीति है, और पश्चिमी देश उसे अपनी कठपुतली समझने का भ्रम न पालें। यूक्रेन युद्ध के बीच पश्चिम की पाबंदियों को दरकिनार करते हुए रूस से दोस्ती निभाने की नीति हो या मानवाधिकार का मुद्दा उठाकर भारत को असहज करने की अमेरिकी कोशिश का मुंहतोड़ पलटवार, अफगानिस्तान संकट हो या एलएसी पर चीनी घुसपैठ और पाकिस्तान पोषित आतंकवाद पर पश्चिम के पाखंड की पोल खोलना, मालदीव-श्रीलंका-नेपाल में चीन की चाल को नाकाम करना हो या सीएए के मुद्दे पर इस्लामिक देशों के बीच आम राय कायम कर पाकिस्तान को अलग-थलग करना या फिर कोरोना महामारी के बीच वैक्सीन मैत्री को विदेश नीति का आधार बनाना हो, कमोबेश हर वैश्विक मसले पर भारत अपनी छाप छोड़ने और साख बढ़ाने में कामयाब रहा है।   

पिछले तीन साल में प्रधानमंत्री मोदी ने जिस कुशलता से बीजेपी की वैचारिक प्रतिबद्धताओं को पूरा करने वाले फैसले लिए हैं, वो उनके दूसरे कार्यकाल का तीसरा सबसे महत्त्वपूर्ण बदलाव है। यह सब कुछ मोदी हैं, इसीलिए मुमकिन हो सका वरना इस तरह की राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाना हर राष्ट्र प्रमुख के बूते की बात नहीं। इसमें ‘तीन तलाक’ की प्रथा को अपराध घोषित करने वाला विधेयक पारित होना; नागरिकता अधिनियम में संशोधन; जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को रद्द करना और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण प्रारंभ होने को रखा जा सकता है। इसी क्रम में गैर-कानूनी गतिविधियों की रोकथाम वाले अधिनियम यूएपीए को मजबूत करना भी शामिल किया जा सकता है, जिसने एजेंसियों को एक व्यक्ति को आतंकवादी के रूप में नामित करने और उसकी संपत्तियों को जब्त करने का अधिकार दिया।

रफ्तार को गति देने वाले फैसले
जाहिर तौर पर मोदी 2.0 में हुए इन बदलाव से देश काफी बदला है, लेकिन मोदी 1.0 की तुलना में कितना बदला है? पहले कार्यकाल का विश्लेषण करें तो बेशक, सरकार के ज्यादातर फैसले प्रत्यक्ष तौर पर देश की रुकी हुई रफ्तार को गति देने से प्रेरित थे, लेकिन उनमें परोक्ष रूप से कहीं-न-कहीं सरकार को मजबूती प्रदान करने के लिए राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास भी था। इसमें समाज के सभी वर्गो को विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के अंतर्गत लाने के साथ-साथ नोटबंदी और जीएसटी जैसे आर्थिक कदम भी शामिल थे। चुनावी राजनीति में सरकार को इसका लाभ भी मिला। साल 2019 में देश की जनता ने सरकार में जैसा भरोसा दिखाया, उसने सत्ता में मजबूती की सरकार की चिंता को लगभग खत्म कर दिया। इसलिए दूसरे कार्यकाल में हम देख रहे हैं कि सरकार का पूरा जोर अब देश की मजबूती की ओर है। सरकार अब पहले कार्यकाल की तरह पांच या दस साल के लिए नहीं, बल्कि 25 साल की दीर्घ अवधि के लिए लक्ष्य तय कर रही है। अमृत महोत्सव इसका प्रमाण है।

लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं कि सरकार ने पूर्व में जो लक्ष्य तय किए थे, वे सब पूरे हो गए हैं। पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था, साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करना, हर परिवार के लिए पक्का आवास मुहैया करवाने जैसे लक्ष्य अभी भी मंजिल की बाट जोह रहे हैं। देश को खुले में शौच से मुक्ति, कुपोषण से छुटकारा, शिक्षा-स्वास्थ्य-रोजगार के न्यूनतम मानकों की प्राप्ति भी सरकार के लिए चुनौती बनी हुई है। विपक्ष इन सवालों को लेकर अक्सर सरकार पर हमलावर दिखता है। बेशक, ‘सरकार साधक और विपक्ष बाधक’ जैसे राजनीतिक नारों, महामारी के कारण बेहद विपरीत परिस्थितियों में गुजरे दो साल की सहानुभूति या बेहद कमजोर विपक्ष का सरकार को लाभ मिला हो, फिर भी वाजिब सवालों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता।

अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का सवाल
अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना ऐसा ही सवाल है, जो बचे हुए दो साल के कार्यकाल में सरकार का सबसे कड़ा इम्तिहान लेने वाला है। कोविड महामारी की बरकरार चुनौती के बीच देश का आर्थिक भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि आत्मनिर्भर कार्यक्रम और स्टार्टअप और नवाचार की पहल कितनी सफल होती है। इस अवधि में खेती-किसानी को लाभ का धंधा बनाना और युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर तलाशना भी निश्चित रूप से सरकार की प्राथमिकता में रहने वाले हैं। बीते दिनों की कुछ घटनाओं के बाद सांप्रदायिक सौहार्द को लेकर देश ही नहीं, विदेश में भी सवाल उठे हैं। इसके कारण देश की छवि के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक तरक्की को हो रहे नुकसान को लेकर भी सरकार को सतर्क रहना होगा।

इन चुनौतियों के बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार की सबसे बड़ी ताकत बने हुए हैं। देश की जनता उन्हें ऐसे नेता के रूप में देखती है जो देश के कल्याण और बेहतरी के लिए सच्चे और निस्वार्थ भाव से प्रतिबद्ध हैं। विखंडित विपक्ष का आपसी अविश्वास भी देश की इकलौती आशा के रूप में प्रधानमंत्री मोदी की स्थिति को मजबूत करने में मदद करता है। राजनीतिक क्षेत्र में भी आठ साल से अक्षुण्ण अपनी लोकप्रियता के दम पर मोदी बीजेपी की चुनावी जीत की सबसे बड़ी उम्मीद हैं। रहा सवाल देश चलाने का, तो हर सरकार की अपनी सोच होती है लेकिन उसका उद्देश्य देश और देशवासियों की समृद्धि का ही होता है। प्रधानमंत्री के रूप में अब तक के कार्यकाल का विश्लेषण करें तो नरेन्द्र मोदी अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से इस उद्देश्य की कसौटी पर खरे उतरे हैं।

उपेन्द्र राय


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