लाइलाज बना अमेरिका का यह मर्ज

Last Updated 29 May 2022 12:03:12 AM IST

दुनिया भर में मानवाधिकार को लेकर अपनी चिंताओं का ढिंढोरा पीटने वाला अमेरिका अपने ही देश के नागरिकों के जीने का अधिकार सुरक्षित नहीं रख पा रहा है।


लाइलाज बना अमेरिका का यह मर्ज

बीते मंगलवार को टेक्सास प्रांत में हुई गोलीबारी की घटना में 19 बच्चों और स्कूल के दो टीचरों की मौत ने अमेरिका के पाखंड की पोल खोल कर रख दी है। इस घटना को अमेरिकी स्कूलों में पिछले एक दशक की सबसे भयानक गोलीबारी बताया जा रहा है। साल 2012 में इसी तरह के एक हादसे में कनेक्टिकट में सैंडी हुक के एक प्राइमरी स्कूल में 20 बच्चों और 6 स्टाफ की मौत हुई थी। उस घटना के बाद भी अब तक 2,858 अमेरिकी बच्चे स्कूली शूटआउट में या तो मारे गए या घायल हुए हैं।

टेक्सास की वारदात इसी साल अमेरिकी स्कूलों में शूटआउट की 27वीं घटना है। पूरे अमेरिका का हिसाब लगाया जाए, तो साल के शुरु आती पांच महीने पूरे होने से पहले ही वहां 215 ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया जा चुका है जिनमें बंदूक या इसी तरह के दूसरे आग उगलने वाले हथियारों का प्रयोग किया गया है। पिछले पूरे साल में ऐसी 693 घटनाएं हुई थीं। गौर करने वाली बात यह है कि ये तमाम घटनाएं वो ‘मास शूटिंग’ हैं, जिनमें कम-से-कम चार लोग मारे गए या घायल हुए। इसमें चार से कम संख्या में जान गंवाने के मामले को जोड़ दिया जाए तो यह आंकड़ा किस ‘ऊंचाई’ तक पहुंचेगा, इसकी कल्पना मात्र से भी सिहरन हो उठती है। बस, इतना जान लेना काफी होगा कि अमेरिका में पिछले पचास साल में 14 लाख से ज्यादा लोग बंदूक से होने वाली हिंसा में मारे जा चुके हैं। एक तुलना बात को और स्पष्ट कर देगी। साल 2002 से 2011 के दशक पर हुई एक स्टडी बताती है कि इस अवधि में हर साल आतंकी वारदातों में 31 लोग मारे गए, जबकि गन कल्चर की वजह से हुई मौत का आंकड़ा 11 हजार लोगों का निकला।

इस गन कल्चर से जुड़े ऐसे तमाम आंकड़े हैं जो खुद को दुनिया के सबसे सभ्य समाज बताने वाले अमेरिकी दावे की धज्जियां उड़ाते हैं। अमेरिका में दुनिया की 4% आबादी रहती है, लेकिन दुनिया की लगभग आधी पिस्तौलें और राइफलें वहां पंजीकृत हैं। पिछले 20 साल में अमेरिका में बंदूकों की खपत में 3 गुना की वृद्धि हुई है। अकेले साल 2021 में ही अमेरिकियों ने लगभग 2 करोड़ आग्नेयास्त्र खरीदे, जो इतिहास में दूसरी सबसे बड़ी बिक्री है। इसका नतीजा यह निकला है कि अमेरिका में अब बंदूकों की संख्या इंसानों से ज्यादा हो गई है। प्रति 100 अमेरिकी नागरिकों पर हथियारों का औसत 120.5 है यानी अमेरिका का हर नागरिक औसतन एक से ज्यादा पिस्टल या बंदूक रखता है। यह आंकड़ा दुनिया के किसी भी दूसरे देश से कहीं ज्यादा है। स्विस रिसर्च प्रोजेक्ट स्मॉल आर्म्स सर्वे 2018 के अनुसार टॉप-5 में शामिल बाकी देशों में यमन में यह औसत 52.8, सर्बिया और मोंटेगुमरो में 39.1 और ऊरु ग्वे एवं कनाडा में 34.7 का है।  

बंदूकें अमेरिकी समाज में किस तरह खुलेआम मौत बांट रही हैं, उसकी एक झलक सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन यानी सीडीसी के डाटा से मिलती है। इसके अनुसार साल 2019-2020 में एक साल में पिस्टल-बंदूक से होने वाली मौत 34 फीसद तक बढ़ी हैं। पिछले एक दशक में यह 75 फीसद का इजाफा है। इस डाटा के मुताबिक 53 अमेरिकी रोजाना बंदूक या गन की हिंसा के शिकार बन रहे हैं। 79 फीसद हत्याओं में बंदूक का इस्तेमाल हो रहा है जो कनाडा (37%), ऑस्ट्रेलिया (13%) और इंग्लैंड (4%) के मुकाबले कई गुना ज्यादा है। इन आंकड़ों से बनने वाली तस्वीर इस बात की तस्दीक करती है कि गोलियों से भून देना अमेरिका के लिए एक ऐसी रस्म बन गई है जहां लोग दुनिया के किसी भी दूसरे देश की तुलना में अधिक अभ्यस्त हो चुके हैं। सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात तो यह है कि अमेरिकियों ने खुद ही अभिशप्त रहने वाली यह जिंदगी चुनी है। साल 2020 के लिए गॉलप का एक सर्वे बताता है कि अमेरिका के लिए ‘नासूर’ बनने के बावजूद गन कल्चर के खिलाफ सख्त कानून के लिए समर्थन पिछले छह साल के न्यूनतम स्तर पर रहा।

बेशक, 52 फीसद लोगों ने कड़े कानून का समर्थन किया, लेकिन 35 फीसद लोग यथास्थिति बनाए रखने के पक्ष में रहे, जबकि 11 फीसद ने कानून में और ढिलाई की भी पैरवी की। अमेरिका के कुल 50 राज्यों में से कैलिफॉर्निया, कनेक्टिकट, हवाई, मैरीलैंड, मैसाचुसेट्स, न्यू जर्सी, न्यूयॉर्क और वाशिंगटन में बंदूकें या गन बैन हैं जबकि मिनेसोटा और वर्जीनिया में इन हथियारों पर किसी तरह का बैन नहीं है, पर राज्यों की ओर से इन्हें रेग्युलेट किया जा सकता है। कुल मिलाकर यह संख्या केवल 10 होती है यानी बचे 40 राज्यों में नागरिकों को हथियार रखने की खुली छूट है। यह फर्क राजनीतिक स्तर पर भी दिखता है जहां 91 फीसद डेमोक्रेट सांसद कड़े कानून के पक्ष में हैं, जबकि केवल 24 फीसद रिपब्लिकन इसके समर्थन में हैं यानी बेकसूर अमेरिकियों के इस तरह जान गंवाने पर दुनिया 2437 जो चर्चा और चिंता कर रही है, उसकी अहमियत ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना’ से ज्यादा कुछ नहीं है।

यह कितना हास्यास्पद है कि अमेरिका ने 21 साल की उम्र से पहले शराब खरीदने को तो गैर-कानूनी बना रखा है लेकिन मिलिट्री राइफल रखने के लिए 18 साल के बाद खुली छूट दे रखी है। खुद अमेरिकी शासन का एक बड़ा वर्ग इन घटनाओं को किस नजरिए से देखता है, इसका अंदाजा टेक्सास के अटॉर्नी जनरल केन पैक्सटन और सीनेटर टेड क्रूज के बयानों से लग जाता है। भविष्य में ऐसी घटनाओं की रोकथाम के लिए पैक्सटन ने हथियारों पर पाबंदी की पैरवी के बजाय स्कूली बच्चों की सुरक्षा के लिए शिक्षकों को ही हथियार रखने की सलाह दी है, तो सीनेटर क्रूज ने भी साफ कर दिया कि हथियारों से संबंधित कानूनों में सुधार ऐसे अपराधों को रोकने का तरीका नहीं है। शायद इसी सोच की वजह से इस गुरु वार को अमेरिकी सीनेट में घरेलू आतंकवाद विधेयक और बंदूक नीति का प्रस्ताव पारित नहीं हो पाया जिसके कारण अमेरिका में बड़े पैमाने पर गोलीबारी की घटना पर रोक लगाने की एक और कोशिश नाकाम हो गई।

अमेरिका में जो हो रहा है, उसे कई लोग साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर का मसला मानते हैं। लेकिन इन घटनाओं के व्यापक दायरे को देखते हुए यह दलील सभी मामलों पर फिट नहीं बैठ सकती। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी यह सवाल उठाया है कि दूसरे देशों में भी मानसिक स्वास्थ्य की समस्या है, वहां भी घरेलू विवाद हैं, लेकिन बार-बार इस तरह से वहां गोलीबारी नहीं होती जैसे अमेरिका में होती है। जिस देश ने अपने चार-चार राष्ट्रपतियों-अब्राहम लिंकन, जेम्स ए गारफील्ड, विलियम मैककिनले और जॉन एफ केनेडी को बंदूक से हुई हिंसा में गंवाया हो, वहां ये बेबसी थोड़ा हैरान जरूर करती है क्योंकि जो अमेरिका दूसरे देशों में घुसकर वार करता हो, वो अपने घर में लाचार कैसे हो सकता है?

वजह दरअसल दूसरी है और बाइडेन भी उससे अनजान नहीं हैं।  बाइडेन ही क्यों, उनसे पहले के कई अमेरिकी राष्ट्रपति सब कुछ जानते हुए भी इस पर लगाम नहीं लगा पाए। दरअसल, अमेरिका में महामारी में तब्दील हो चुके गन कल्चर के पीछे की ताकत वहां की गन लॉबी है जिसे कथित रूप से कंट्रोल करता है एनआरए यानी नेशनल राइफल एसोसिएशन। एनआरए बंदूकों पर किसी भी तरह के नियंत्रण के खिलाफ है और इस बात की वकालत करता है कि ज्यादा बंदूकें अमेरिका को सुरक्षित बनाती हैं। इसकी मेंबरशिप को लेकर अलग-अलग दावे सामने आते हैं। खुद एसोसिएशन का दावा है कि साल 2012 में सैंडी हुक स्कूल में मास शूटिंग की प्रतिक्रिया के रूप में उसकी सदस्य संख्या 50 लाख तक पहुंच गई थी, लेकिन कुछ विश्लेषक इसे 30 लाख के आसपास ही मानते हैं। हालांकि इस बारे में कोई दो राय नहीं है कि एनआरए इस समय अमेरिका का सबसे बड़ा स्पेशल इंटरेस्ट लॉबी बन चुका है। साल 2020 में उसने अमेरिका की गन नीति को अपने पक्ष में रखने के लिए अनिधकृत रूप से करीब 250 मिलियन डॉलर खर्च किए थे। आधिकारिक रूप से भी एसोसिएशन अमेरिकी नीति को प्रभावित करने के लिए सालाना तीन मिलियन डॉलर खर्च करने की बात स्वीकारता है। एक तरह से यह अमेरिकी जनप्रतिनिधियों को अपने देश के नागरिकों की जान का सौदा करने के लिए तैयार किया गया आधिकारिक खर्च है।

हकीकत यह है कि खेल इससे कई गुना बड़ा है जिसने न केवल दुनिया के दूसरे सबसे बड़े लोकतंत्र की राजनीतिक व्यवस्था को भ्रष्ट कर दिया है, बल्कि उसे बार-बार दुनिया के सामने शर्मसार भी किया है। अमेरिका इस मामले में भारत से सीख ले सकता है जहां लोकतंत्र और जीने के अधिकार, दोनों की सुरक्षा के लिए न केवल दुनिया के सबसे कठोर कानून हैं, बल्कि उनका पर्याप्त ईमानदारी से प्रभावी अमल भी होता है। इस्तेमाल करना तो दूर, भारत में हथियार रखना ही बड़ी बात है क्योंकि गहन पड़ताल और बैकग्राउंड चेक के बाद ही हथियार रखने का लाइसेंस मिलता है। हालांकि कानून से इतर सवाल नजरिए के उस फर्क का भी है जो अपने नागरिकों के चेहरों पर सुरक्षित भविष्य की चमक को सिक्कों की खनक के मुकाबले ज्यादा कीमती समझता है।

उपेन्द्र राय


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