नया ’यूक्रेन‘ न बन जाए ताइवान

Last Updated 17 Apr 2022 12:07:23 AM IST

पिछले 50 से भी ज्यादा दिनों से यूक्रेन पर बरसते रूस के गोलों के शोर के बीच एक नए युद्ध की आहट सुनाई देने लगी है।


नया ’यूक्रेन‘ न बन जाए ताइवान

आशंका है कि यूरोप के पूर्व में यूक्रेन पर जैसा आक्रमण रूस ने किया, एशिया के पूर्व में ताइवान पर कमोबेश वैसा ही कुछ करने की योजना चीन भी बना सकता है। बीते गुरुवार को एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के ताइवान दौरे को इसकी वजह बताया जा रहा है। अमेरिकी सीनेट की विदेश संबंध समिति के अध्यक्ष बॉब मेनेंडेज की अध्यक्षता वाले इस प्रतिनिधिमंडल में अमेरिकी कांग्रेस के छह अलग-अलग ओहदेदार शामिल थे। ताइवान से चीन के विवाद की आग वैसे तो दशकों से सुलग रही है, लेकिन इस प्रतिनिधिमंडल के दौरे ने इसमें नई चिंगारी लगा दी है। दौरे से बौखलाए चीन ने अगले ही दिन यानी शुक्रवार को पूर्वी चीन सागर और ताइवान के द्वीप के आसपास कई युद्धपोत, बमवषर्क विमान और लड़ाकू जेट के साथ शक्ति प्रदशर्न कर डाला। हालांकि चीन की ओर से इसे सैन्य अभ्यास बताया गया लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट तौर पर जता दिया गया कि इसकी वजह अमेरिका की ओर से भेजे गए ‘गलत संकेत’ हैं।

यह ‘गलत संकेत’ दरअसल उस कूटनीतिक व्यवस्था की ओर इशारा है जिसमें ‘वन चाइना’ पॉलिसी के तहत चीन यह अपेक्षा करता है कि अमेरिका की आधिकारिक लाइन बीजिंग में बैठी सरकार को ही चीन का असल प्रतिनिधि मानने की होनी चाहिए। वन चाइना पॉलिसी का मतलब उस नीति से है, जिसके मुताबिक चीन नाम का एक ही राष्ट्र है और ताइवान अलग देश नहीं, बल्कि उसका एक प्रांत है। चीन दुनिया पर इस पॉलिसी को एक अलग अंदाज में मानने का भी दबाव डालता है। इसके अनुसार जो देश पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी चीन के साथ कूटनीतिक रिश्ते रखना चाहते हैं, उन्हें ताइवान यानी रिपब्लिक ऑफ चाइना से अपने संबंध तोड़ने होंगे। ऐसे में चीन का कहना है कि उसे साइडलाइन कर ताइवान में अपना प्रतिनिधिमंडल भेजकर अमेरिका ने उस व्यवस्था को भंग किया है। मिलिट्री ड्रिल के साथ ही चीन ने यह भी साफ किया है कि अमेरिका को ताइवान के साथ किसी भी तरह का आधिकारिक आदान-प्रदान बंद कर देना चाहिए।

चीन की ‘वन चाइना’ पॉलिसी के जवाब में अमेरिका ताइवान रिलेशन एक्ट यानी ताइवान समझौते का जिक्र करता है। इसके तहत अमेरिका ताइवान को छोड़कर पूरे चीन को मान्यता देता है। अमेरिका दावा करता है कि शी जिनपिंग अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से बातचीत में इस समझौते के पालन पर सहमति जता चुके जिसके तहत अमेरिका ताइवान के साथ अनौपचारिक रिश्ते बना सकता है, हथियार बेच सकता है और ताइवान की रक्षा में उसकी मदद भी कर सकता है। इसी आधार पर अमेरिका ने ताइवान की स्थिति को यूक्रेन से अलग बताते हुए चीन को साफ कर दिया है कि ताइवान को लेकर उसकी नीति अलग है। सब कुछ ऐसे समय में हो रहा है जब कुछ दिन पहले ही ताइवान के रक्षा मंत्री चीन के साथ उनके देश के सैन्य संबंधों को चार दशक का सबसे बुरा दौर बता चुके  हैं। साथ में इस बात की आशंका भी कि साल 2025 तक चीन ताइवान पर हमला कर सकता है। अगर ऐसा होता है तो अमेरिका कागजों पर बनी जिस नीति का जिक्र कर रहा है, वो जल्द ही उसे जमीन पर उतारनी भी पड़ सकती है। ऐसी कई वजह हैं,  जो चीन को उस दुस्साहस के लिए प्रेरित कर सकती हैं, जो रूस ने यूक्रेन में किया है। चीन सबसे बड़ी प्रेरणा तो इसी बात से ले सकता है कि अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो से लेकर यूरोपीय यूनियन और संयुक्त राष्ट्र तक यूक्रेन पर आक्रमण को लेकर रूस का कोई ठोस नुकसान नहीं कर पाए हैं, बल्कि ये सभी रूस से एक ऐसे विवाद में उलझ गए हैं जिसका कोई छोर नहीं नजर आ रहा है।

इस लिहाज से रूस-यूक्रेन विवाद के लंबा खिंचने में चीन को अपने फायदे के साथ-साथ ताइवान पर हमले का वो ‘अवसर’ भी दिख रहा है जिसके लिए वो कई दशकों से बाट जोह रहा है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग कई मौके पर खुलेआम कह चुके  हैं कि ताइवान के साथ चीन का फिर से एकीकरण जरूर होगा। पूर्व में अलग हुए क्षेत्रों को वापस चीन में मिलाकर अपनी ताकत का लोहा मनवाना जिनपिंग की बरसों पुरानी महत्त्वाकांक्षा भी रही है। खास बात यह है कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उन्होंने ताकत के इस्तेमाल की संभावनाओं को कभी खारिज नहीं किया। इसलिए यह भी एक खुला रहस्य ही है कि ताइवान पर दुनिया उसके दावे को स्वीकार करे इसके लिए चीन पिछले करीब दो साल से ताइवान के आस-पास समुद्र में अपनी सैन्य गतिविधियों को लगातार बढ़ाता ही जा रहा है। इसी तरह चीनी विमान ताइवान की हवाई सीमा में लगातार घुसपैठ करते रह रहे हैं। घुसपैठ की इन घटनाओं से चीन और ताइवान के बीच लगातार तनाव बना हुआ है।

इस सप्ताह की शुरुआत में ताइवान में एक और दिलचस्प बात सामने आई है। ताइवान की सेना ने नागरिक सुरक्षा पर एक हैंडबुक जारी की है। इसमें यह बताया गया है कि अगर ताइवान में कोई युद्ध छिड़ता है या कोई आपदा आती है तो अपनी जान बचाने के लिए नागरिकों की प्रतिक्रिया कैसी होनी चाहिए? इस  हैंडबुक में नागरिकों की सुविधा के लिए स्मार्टफोन ऐप के माध्यम से पानी और भोजन के सामान की आपूर्ति, बमबारी से बचने के लिए शेल्टर की खोज के साथ-साथ आपातकालीन प्राथमिक चिकित्सा किट तैयार करने के टिप्स शामिल हैं। आगे चलकर इसे अस्पतालों और दैनिक जरूरतों के लिए दुकानों की सूची से अपग्रेड किए जाने की भी योजना है। ताइवान में हर नागरिक के लिए चार महीने की सैन्य सेवा अनिवार्य है और सरकार इसकी अवधि आगे बढ़ाने पर विचार भी कर रही है। सेना की ओर से बयान आया है कि इस प्रक्रिया से सुरक्षा तैयारियां सक्षम होंगी और लोगों को जीवित रहने में मदद मिलेगी। अब पहली नजर में तो यह सब कुछ किसी इमरजेंसी से निबटने की कवायद ही लगती है। ताइवान में पहले न तो ऐसी कोई हैंडबुक जारी हुई, न नागरिकों की सैन्य सेवा की मियाद बढ़ाने की जरूरत महसूस हुई। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि ताइवान ने इसे सामान्य प्रक्रिया बताया है और ऐसे कोई संकेत नहीं दिए हैं जिससे लगे कि चीन उस पर किसी आक्रमण की योजना बना रहा है। ताइवान का कहना है कि हैंडबुक जैसे तमाम उपायों की योजना तो रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले की है। लेकिन उसकी तैयारियां रूस के हमले के बाद यूक्रेन की प्रतिक्रिया से काफी मेल खाती हैं।

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटेजिक स्टडीज (आईआईएसएस) का अनुमान है कि सभी तरह के सैनिकों को मिलाकर चीन की सैन्य शक्ति 20.35 लाख सक्रिय सैनिकों की है जो ताइवान के 1.63 लाख सैनिकों की तुलना में करीब 12 गुना है। ऐसे में आमने-सामने की भिड़ंत हुई तो ताइवान बहुत कोशिश करके भी चीन के हमले को धीमा ही कर सकता है, जैसा यूक्रेन ने रूस के साथ किया है। अमेरिका का साथ ताइवान के लिए बाजी पलटे न पलटे, मगर ये स्थिति चीन और ताइवान के साथ-साथ समूचे एशिया-पैसिफिक क्षेत्र की शांति और स्थिरता को जरूर खतरे में डाल सकती है। इस शांति और स्थिरता का जिक्र अमेरिकी एनएसए जेक सुलिवन के बयान में भी आया है। चीन की मिलिट्री ड्रिल से चंद घंटों पहले ही सुलिवन ने साफ किया है कि अमेरिका ताइवान स्ट्रेट की सुरक्षा को चुनौती देने वाली किसी भी कार्रवाई पर खामोश नहीं रहेगा। करीब 50 दिन पहले का बाइडन प्रशासन का एक और बयान गौर करने लायक है। यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बीच आए इस बयान का लब्बोलुआब यही था कि जिस तरह की बात यूरोप में हो सकती है, वो इंडो-पैसिफिक में भी हो सकती है। तो क्या वो खतरा सच साबित होने जा रहा है? क्या अब ताइवान को नया ‘यूक्रेन’ बनाने की तैयारी है?

उपेन्द्र राय


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