2024 के चुनावी संग्राम का शंखनाद

Last Updated 27 Mar 2022 12:13:42 AM IST

बीजेपी और दूसरे राजनीतिक दलों में क्या फर्क है? आखिर क्या वजह है कि सियासी मैदान में बीजेपी की कामयाबी का ग्राफ दूसरी पार्टयिों की तुलना में ज्यादा ऊंचा और कहीं ज्यादा विश्वसनीय दिखाई देता है।


2024 के चुनावी संग्राम का शंखनाद

पिछले सात-आठ वर्षो में बीजेपी की अनगिनत सफलताओं के साथ-साथ ऐसे कई सवालों का भी खूब विस्तार हुआ है। दरअसल, इसकी एक बड़ी वजह बीजेपी की कार्य-संस्कृति है जो पार्टी के शीर्ष पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के आने के बाद पहले से भी ज्यादा असरदार और सुनियोजित हो गई है। उत्तर प्रदेश का ही उदाहरण ले लीजिए। दूसरी राजनीतिक पार्टयिां जहां अभी भी अपनी हार की समीक्षा ठीक से नहीं कर पाई हैं, वहीं बीजेपी ने 2024 के लोक सभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं। योगी मंत्रिमंडल का शपथग्रहण दरअसल इन तैयारियों का शंखनाद ही है। इसे 2024 के चुनावी संग्राम की व्यूह रचना भी कह सकते हैं।

शुक्रवार को जब टीम योगी की तस्वीर खुलकर दुनिया के सामने आई, तो सरकार के गठन में हो रही देरी के सवाल का जवाब भी सामने आ गया। दरअसल, नई सरकार चलाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए जो मंत्रिमंडल गढ़ा गया है उसमें जातीय समीकरण और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व का ऐसा संतुलन साधा गया है, जो 2024 की सियासी राह में बीजेपी के सफर को सुविधाजनक और सफल बना सके। विधानसभा चुनाव में मिला जनादेश ही अगर लोक सभा चुनाव में भी बरकरार रहता है, तो बीजेपी को राज्य की 80 में से 51 सीटें मिल सकती हैं। 2014 में यह संख्या 71 और 2019 में 63 थी यानी विधानसभा चुनाव में मिली जीत भले ही ऐतिहासिक हो लेकिन 2024 के लिए अभी मेहनत की जरूरत है।

इस मंत्रिमंडल में उस मेहनत का खाका दिखाई देता है। सरकार चलाने के लिए जो सोशल इंजीनियरिंग की गई है, उसे लोक सभा चुनाव की तैयारियों की सबसे मजबूत आधारशिला कहा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समाज के सभी वगरे को साथ लेकर आगे बढ़ने की बात करते रहे हैं। इसी आदर्श को ध्यान में रखते हुए योगी आदित्यनाथ की कैबिनेट तैयार की गई है। खास बात यह है कि इसमें मिशन-2024 को देखते हुए ओबीसी और दलितों को अच्छा-खासा प्रतिनिधित्व दिया गया है। इस वर्ग की उत्तर प्रदेश के कुल वोटों में 50 प्रतिशत से ज्यादा की हिस्सेदारी है, और हर राजनीतिक दल इन्हें अपने पाले में लाना चाहता है। वैसे तो बीजेपी के पास वंचित वर्ग से आने वाले कई चेहरे हैं, लेकिन यहां दो नामों का जिक्र विशेष रूप से करना चाहूंगा क्योंकि इन्हें कैबिनेट में लेने के दूरदर्शी मायने हैं। पहला नाम केशव प्रसाद मौर्य का है, जिन्हें हार के बावजूद दोबारा डिप्टी सीएम बनाया गया है, और दूसरे हैं स्वतंत्र देव सिंह जिन्हें प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष रहते हुए भी कैबिनेट में लाया गया है। यह एक लंबी राजनीति का संकेत है। दरअसल, उत्तर प्रदेश में चुनाव चाहे विधानसभा का हो या लोक सभा का, पिछड़े वर्ग की राजनीति के लिए बीजेपी को दूसरे दलों का मुंह देखना पड़ता रहा है। इस बार विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इस वर्ग की कल्याणकारी योजनाओं के दम पर लाभार्थी वर्ग का एक बड़ा हिस्सा अपने पक्ष में किया है। अब बीजेपी लोक सभा में इस प्रयोग को आजमा कर देखना चाहती है। बेबी रानी मौर्य भी ऐसा ही एक नाम है, जिन्हें आने वाले दिनों में मायावती के विकल्प के रूप में और जाटव समाज में बीजेपी के चेहरे के रूप में देखा जा रहा है।

टीम योगी में ब्राह्मणों के साथ जो सोशल इंजीनियरिंग की गई है, उसने एक साथ मिशन-2024 के कई आयाम खोल दिए हैं। दिनेश शर्मा की जगह बृजेश पाठक को डिप्टी सीएम बनाने से यह संदेश गया है कि बीजेपी की जीत की धुरी का काम करने वाला संघ भी अब अपनी रीति-नीति को लेकर लचीला हो रहा है। बृजेश पाठक 2014 में बीएसपी के टिकट पर लोक सभा चुनाव हारे थे और अपना पहला चुनाव कांग्रेस से जीते थे। बीजेपी में तो उनकी एंट्री 2017 में हुई है और केवल पांच साल में डिप्टी सीएम की कुर्सी तक उनका पहुंचना बताता है कि अब संघ भी इस बात पर तैयार हुआ है कि मौजूदा दौर की चुनावी राजनीति में नेताओं की जमीनी पकड़ उनकी वैचारिक पृष्ठभूमि से कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो गई है। बृजेश पाठक को दिनेश शर्मा की जगह डिप्टी सीएम बनाया गया है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि पार्टी दिनेश शर्मा को अधर में छोड़ने जा रही है। मेरा मानना है कि बीजेपी अब उन्हें एक बड़ी भूमिका में देख रही है और यह भूमिका प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष की हो सकती है।

तीसरा महत्त्वपूर्ण फैसला अरविंद शर्मा को लेकर है, जिनका मंत्री बनाया जाना ब्राह्मण वोटरों को खुश करने से ज्यादा योगी मंत्रिमंडल पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजन की छाप का संकेत है। अरविंद शर्मा प्रधानमंत्री मोदी के विश्वासपात्रों में से एक हैं और 2021 में बीजेपी में शामिल होने के बाद से विधान परिषद के सदस्य होने के साथ ही प्रदेश बीजेपी के उपाध्यक्ष भी हैं। उनके यूपी पहुंचने के बाद से ऐसी खबरें रही हैं कि उन्हें कैबिनेट में शामिल करने को लेकर मुख्यमंत्री योगी और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में कुछ अनबन है, लेकिन अब जबकि कैबिनेट में उनकी आधिकारिक तौर पर एंट्री हो गई है, तो वो तमाम शक-शुबहे ही खत्म नहीं हुए हैं, बल्कि बड़ा संदेश यह भी गया है कि जिस तरह मोदी-योगी ने एक टीम के रूप में विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की है, वही सामंजस्य लोक सभा में भी बीजेपी को फतह दिलाने का काम करेगा।

2024 की तैयारियों का संदेश केवल शपथ ग्रहण के मंच से ही नहीं दिया गया है। मंत्रियों की लिस्ट में शामिल नामों के साथ ही मंच के दूसरी ओर इस ऐतिहासिक पल के गवाह बनने आए अति महत्त्वपूर्ण मेहमानों की सूची पर भी ध्यान देने की जरूरत है। यूपी के इतिहास में शायद पहली बार किसी मुख्यमंत्री के शपथग्रहण समारोह में उद्योगपतियों की ऐसी उपस्थिति देखी गई है। यह इस बात का संकेत है औद्योगिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पहले कार्यकाल में जो काम किए हैं, अब उन्हें और तेजी से मंजिल तक पहुंचाया जाएगा और राज्य में लंबे समय से चली आ रही बेरोजगारी की समस्या से युवाओं को राहत दी जाएगी। 2024 के लिए नौजवानों की लामबंदी का यह स्पष्ट संदेश है, लेकिन क्या केवल एक सुगठित मंत्रिमंडल बना लेने भर से बीजेपी के लिए 2024 में विजय की राह प्रशस्त हो जाएगी? शायद नहीं। उसके लिए जमीन पर काम करने और नतीजे देने की भी जरूरत होगी। और यह उस कार्य संस्कृति के ही बूते संभव होगा जिसका जिक्र मैंने लेख की शुरुआत में किया है। राज्य और केंद्र, दोनों जगह जब सरकार और संगठन मिलकर काम करेंगे, तो जमीन पर बदलाव भी दिखेगा। शंखनाद इस बदलाव की शुरु आत का ही संकेत है।

उपेन्द्र राय


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