जासूसी पर सवाल, कैसे हो पड़ताल?

Last Updated 25 Jul 2021 12:05:40 AM IST

पेगासस जासूसी कांड ने दुनिया भर की सरकारों को एक नई परेशानी में डाल दिया है। भारत में भी इसे लेकर काफी हो-हल्ला मचा हुआ है।


जासूसी पर सवाल, कैसे हो पड़ताल?

विपक्षी दलों के हंगामे के कारण संसद मानसून सत्र के पहले सप्ताह में एक दिन भी ठीक से कामकाज नहीं कर पाई है। पेगासस इजरायल की सर्विलांस कंपनी एनएसओ का सॉफ्टवेयर है और दावा किया जा रहा है कि इसके जरिए दुनिया भर में जासूसी का नेटवर्क काम कर रहा है। फ्रांस के मीडिया संगठन फॉरबिडेन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल को इस नेटवर्क से लीक हुए 50 हजार फोन नंबरों का डाटा मिला। चूंकि डाटा बेस संख्या के लिहाज से बहुत बड़ा और दायरे के हिसाब से 45 से ज्यादा देशों के कारण अंतरराष्ट्रीय था, इसलिए इसकी पड़ताल के लिए दुनिया के 16 मीडिया संस्थानों को अप्रोच किया गया। फिर इन संस्थानों के रिपोर्टरों का एक समूह बना जिसकी पड़ताल में पाया गया कि कम-से-कम 14 देशों के मौजूदा या पूर्व राष्ट्राध्यक्षों समेत कई महत्त्वपूर्ण शख्सियत जासूसी के दायरे में हैं, और इनसे लीक हुई जानकारी काफी संवेदनशील हो सकती है। लीक हुए नंबरों में करीब 300 से ज्यादा नंबर भारत से हैं जिससे अंदेशा है कि कई नेताओं, मंत्रियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और यहां तक कि पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त और पूर्व सीबीआई चीफ जैसे अधिकारियों तक के फोन की जासूसी की गई है।

इस मामले में सॉफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी एनएसओ ने अपनी सफाई में दो महत्त्वपूर्ण बातें कही हैं। पहली सॉफ्टवेयर बनाने के मकसद को लेकर है, जो उसके मुताबिक अपराधियों और आतंकवादियों को ट्रैक करना है। दूसरा ये कि वो अपना सॉफ्टवेयर व्यक्तिगत खरीदारों को नहीं, बल्कि देश की सरकारों को ही बेचती है यानी अगर पेगासस सॉफ्टवेयर से कोई जासूसी कर सकता है, तो वो सरकारें ही कर सकती हैं।  

अब ये तो वो जानकारियां हैं, जो इस मामले में दिलचस्पी रख रहे हर शख्स तक पहुंच चुकी हैं। हंगामा उस जवाब की तलाश को लेकर है, जिन पर अभी भी पर्दा डला हुआ है। जासूसी वाली लिस्ट में अपने राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का नंबर आने पर फ्रांस ने जांच बैठा दी है। यूरोप के ज्यादातर देश इसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। विवाद की ‘मातृभूमि’ होने के कारण इजरायल ने भी पड़ताल शुरू कर दी है। भारत में अभी कोई जांच तो शुरू नहीं हुई है, लेकिन विपक्ष सुप्रीम कोर्ट की निगरानी वाली कमेटी से लेकर जेपीसी जांच के लिए आवाज बुलंद कर रहा है। लेकिन केंद्र सरकार में जांच को लेकर ज्यादा उत्साह नहीं दिख रहा है। उल्टे सरकार की ओर से जवाब देने के लिए सबसे पहले आगे आए नये आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इसकी टाइमिंग पर ही सवाल उठा दिया कि मानसून सत्र से पहले इस लिस्ट का सामने आना भारतीय लोकतंत्र को बदनाम करने की साजिश है। उसी दिन शाम होते-होते सामने आई दूसरी लिस्ट में अिनी वैष्णव का नाम भी सामने आ गया, हालांकि यह नाम जिस समय लिस्ट में शामिल था, तब वैष्णव न मंत्री थे और न ही किसी राजनीतिक दल से जुड़े थे, तब वो ब्यूरोक्रेट थे। लेकिन लिस्ट में प्रह्लाद पटेल जैसे मंत्री और स्मृति ईरानी के सहायकों के नाम जरूर शामिल हैं। लीक हुए नंबरों पर सरकार की ओर से दूसरी सफाई देने के लिए पूर्व आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मोर्चा संभाला और इसे भारत विरोधी एजेंडा बताया। इसके बाद सरकार/बीजेपी की ओर से इस मामले में दो और सफाई जुड़ी हैं। पहली ये कि जिन्हें अपना फोन हैक होने का शक है, वो इसे फोरेंसिक जांच के लिए दे दें,  इससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। और दूसरी ये कि लीक हुए नंबर इंटरनेट से उठाए गए हैं, जिसके लिए एमनेस्टी इंटरनेशनल के कथित बयान को आधार बनाया गया। हालांकि बाद में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ही नंबरों की वैधता प्रमाणित करते हुए इस दावे को खारिज कर दिया। बहरहाल, अब स्थिति यह है कि सरकार की ओर से इस मामले पर जवाब तो आ रहे हैं, लेकिन ये जवाब इस अहसास को मजबूत बना रहे हैं कि सरकार मूल सवाल के सीधे जवाब से बच रही है कि सरकार ने पेगासस सॉफ्टवेयर खरीदा या नहीं?

सरकार से इस सवाल पर और पारदर्शिता की जरूरत महसूस की जा रही है। लिस्ट में शामिल नाम और इन नामों को लिस्ट में शामिल करने की टाइमिंग भी स्थिति को पेंचीदा बना रही है। विपक्षी आरोप लगा रहे हैं कि लिस्ट में जो नाम शामिल हैं, वो कहीं-न-कहीं या तो सरकार के मुखर विरोधी रहे हैं या सरकार की छवि निर्माण के लिहाज से महत्त्वपूर्ण हैं। फिर जिस समय उनका नाम लिस्ट में शामिल हुआ, उसके आस-पास ही देश से जुड़ा कोई-न-कोई महत्तवपूर्ण घटनाक्रम भी है, चाहे वो चुनाव हो या अदालतों में चल रहा देश के भविष्य से जुड़ा कोई अहम फैसला? कांग्रेस ने 2017-18 में नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के बजट में 300 फीसद के इजाफे पर सवाल उठा कर इस विवाद को नया एंगल दे दिया है। कांग्रेस को लगता है कि इसी अवधि में पेगासस की खरीद हुई है, और अतिरिक्त बजट इसी खरीद पर खर्च हुआ है।  

इधर सरकार की दलीलों में यहबात भी सामने आई है कि लॉफुल इंटरसेप्शन एक जांची-परखी प्रक्रिया है-कानूनी तरीके से फोन की निगरानी या टैपिंग देश में बरसों से चली आ रही है। यह बात सच भी है। पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े की यादें अगर धुंधली पड़ गई हों, तो उन्हें ताजा करने के लिए मौजूदा सीएम अशोक गहलोत से लेकर बीएस येदियुरप्पा और नीरा राडिया के नाम सरकार बचाने से लेकर सरकार गिराने के विवाद में जुड़ते रहे हैं। इस मामले पर चल रही कई बहसों में ये नाम आगे किए जा रहे हैं, हालांकि यह तर्कसंगत बिल्कुल नहीं है। दोनों मामलों में बुनियादी फर्क है। एक टैपिंग से जुड़ा है, दूसरे के तार हैकिंग से जुड़े हैं, जिस पर देश का कानून भी बिल्कुल स्पष्ट है। साल 2000 से प्रभावशील आईटी एक्ट का सेक्शन 69 सरकार को अधिकार देता है कि अगर देश की सुरक्षा, शालीनता, नैतिकता या किसी अपराध को रोकने के लिए उसे जरूरी लगता है, तो वो इंटरसेप्शन कर सकती है। लेकिन स्पाईवेयर के जरिए  इंटरसेप्शन अवैध है, और इसीलिए यह कानून का उल्लंघन है। इसे साइबर क्राइम की श्रेणी में रखा जाता है।

लॉफुल इंटरसेप्शन को लेकर शंकाएं लंबे समय से बरकरार हैं। दो साल पहले भी लोक सभा में एक सवाल में जवाब में पेगासस का मामला उठा था। तब भी व्हाट्सएप कॉल और मैसेज की टैपिंग के लिए इस सॉफ्टवेयर के उपयोग के सवाल पर कानून के दायरे में निगरानी की बात सामने आई थी। लेकिन यह जवाब तब भी नहीं मिल पाया था कि क्या हमारी सरकार एनएसओ की क्लाइंट है, और इस नाते क्या वो भी पेगासस सॉफ्टवेयर का उपयोग करती है?

पेगासस से जुड़े मामले पर सच का सामने आना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि इससे कई संवेदनशील सवाल जुड़े हैं। एनएसओ की तरफ से साफ किया गया है कि जरूरी नहीं कि 50 हजार के डाटा बेस में हर नंबर की हैकिंग हुई हो। लेकिन इससे यह भी नहीं कहा जा सकता कि किसी भी नंबर की हैकिंग नहीं हुई। टोरंटो की सिटिजन लैब को भेजे गए 67 नमूनों में से 37 के हैकिंग की पुष्टि हुई है। ऐसे ही कई सवाल हैं, जैसे 50 हजार नंबरों का भारी-भरकम डाटा बेस कहां से मिला, इसकी पुख्ता जानकारी नहीं है। इन नंबरों में से जिन 1,571 नंबरों को लेकर जानकारी साझा की जा रही है, उनके चयन का आधार क्या था? ये नंबर 45 देशों से संबंधित हैं, लेकिन भारत के मानसून सत्र की पूर्व-संध्या पर ही क्यों लीक हुए? देर शाम तक इन नंबरों को लीक करने के पीछे क्या कोई खास वजह थी? इस मामले में किसी भी तरह की हिस्सेदारी से सरकार के इनकार के बाद तो इन सवालों की पड़ताल और भी जरूरी हो गई है। देश को यह जानकारी मिलनी ही चाहिए कि भारत से जुड़ी जानकारियां जुटा रही ताकतें कौन हैं,  और उनका असली मकसद क्या है?

उपेन्द्र राय


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment