2020 संदेश और सीख

Last Updated 26 Dec 2020 01:38:33 AM IST

जो तारीख दर्ज हो जाए वो इतिहास बन जाती है, जो भुला दी जाए वो गुमनाम याद रह जाती है। चंद दिनों बाद औपचारिक विदाई लेने जा रहे साल 2020 का हाल भी कुछ ऐसा ही है।


2020 संदेश और सीख

याद रखने के लिए तो इतिहास बनाने-बिगड़ने की कई ऐसी बातें हैं, जिन्हें कोई भूलना नहीं चाहेगा और भुलाने के लिए तमाम ऐसी रातें हैं, जिन्हें कोई याद भी रखना नहीं चाहेगा। जिस साल को सोशल मीडिया पर शौक-शौक में 20-20 का नाम दे दिया गया था, वो 20-20 मुकाबले के अंजाम की तरह ही शॉकिंग साबित होगा, यह किसने सोचा था। समूची दुनिया को अजीबोगरीब कशमकश में झूलता छोड़ कर यह एक पूरा साल आखिरकार, हमसे विदा लेने जा रहा है।

भारत के लिहाज से कोरोना की सर्द दहशत से शुरू हुआ साल किसानों के आंदोलन की तपिश के साथ खत्म हो रहा है। पूरे साल को अगर चुनौतियों की इन दोनों सरहदों से बांध दिया जाए, तो बीच के हिस्से में बीसियों ऐसी घटनाएं याद आती हैं, जिन्होंने देश और समाज के तौर पर हमारे जज्बे को परखने का कड़ा इम्तिहान लिया और कई नये सबक सिखाए। इस सबके बीच देश की मोदी सरकार के सामने जनता की उम्मीदें पूरी करने की चुनौती रही, जिस पर खरा उतरने में वो काफी हद तक कामयाब भी रही।

कोरोना महामारी की जिस त्रासदी को दुनिया ने झेला, उससे हमारा देश भी अछूता नहीं रहा। साल के शुरु आती महीने जनवरी में हमारे देश में कोरोना संक्रमण के पहले मामले का पता चला, जो साल खत्म होते-होते दिसम्बर में एक से एक करोड़ तक पहुंच गया। संक्रमण की संख्या के लिहाज से यह आंकड़ा यकीनन डराने वाला है, लेकिन देश की आबादी का हिसाब लगाया जाए तो यह एक फीसद से भी काफी कम बैठता है। दुनिया भर में बेलगाम फैली और कई देशों में तो दूसरी-तीसरी लहर के आने के बीच महामारी को इस तरह नियंत्रित रखने पर मोदी सरकार की दुनिया भर में काफी तारीफ हुई। इसमें सही समय पर लगाया गया लॉकडाउन का फैसला काफी कारगर सिद्ध हुआ। हालांकि इससे प्रवासी मजदूरों के महापलायन समेत करोड़ों दिहाड़ी कामगारों के सामने रोजी-रोटी का संकट भी खड़ा हुआ, लेकिन गरीब परिवारों के लिए मुफ्त अनाज, कोरोना की नि:शुल्क जांच और प्रवासी श्रमिकों के लिए विशेष ट्रेनों के संचालन जैसे सरकार के दूरदर्शी  फैसलों से समाज के कमजोर तबके को बड़ी ताकत मिली।

मिसाल बना ‘वंदे भारत’ मिशन
विदेशों में फंसे भारतीयों की सुरक्षित देश वापसी के लिए सरकार का ‘वंदे भारत’ मिशन तो दुनिया के दूसरे कई देशों के लिए मिसाल बना ही, साथ ही बड़ी बात यह रही कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विशेष पहल ने पूरी दुनिया को इस महामारी से निपटने के लिए एकजुट कर दिया। सार्क देशों की अगुवाई करने से लेकर अमेरिका समेत दुनिया के 150 देशों तक कोरोना से लड़ाई का सामान पहुंचाने के भारत के सफल मिशन पर प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिगत छाप ठीक उसी तरह स्पष्ट दिखाई दी, जिस तरह उनकी एक आवाज पर 135 करोड़ आबादी का देश लॉकडाउन में रहने के लिए तैयार हुआ था। सरकार की सार्थक पहल और युद्धस्तर पर छेड़े गए अभियान के कारण ही अब भारत भी जल्द ही उन देशों में शामिल हो जाएगा, जहां कोरोना के खिलाफ वैक्सीन का प्रयोग शुरू हो गया है।

कड़ी चुनौती से गुजरी सरकार
साल 2020 में कोरोना के खिलाफ मानवता की वैिक लड़ाई ही नहीं, घरेलू आर्थिक मोर्चे पर भी सरकार कड़ी चुनौती के दौर से गुजरी। हालांकि पहली तिमाही में जीडीपी की जो गिरावट 23.9 फीसद थी, वो दूसरी तिमाही में 7.5 फीसद ही रह गई। करीब 100 दिनों के लॉकडाउन से ठप पड़ी देश की आर्थिक रफ्तार अगर दोबारा पटरी पर लौट पाने में कामयाब हुई, तो इसकी वजह सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले एमएसएमई सेक्टर को मिली रियायतों के साथ ही एक लाख 20 हजार करोड़ रुपये का वो भारी-भरकम आर्थिक पैकेज भी रहा, जिसने देश के मानस को आत्मनिर्भरता के संकल्प के लिए तैयार करने का काम किया।

आत्मनिर्भरता के इस संकल्प को चीन के खिलाफ देश की सरहद सुरक्षित रखने की सरकार और सेना की मुहिम से भी प्रेरणा मिली। गलवान घाटी में जहां भारतीय सेना ने जांबाजी दिखाते हुए चीनी सैनिकों को खदेड़ कर हमारे 20 जवानों की शहादत का बदला लिया, वहीं प्रधानमंत्री मोदी के ‘लोकल के लिए वोकल’ होने के मंत्र के बाद देश में जिस तरह बड़े पैमाने पर चीनी सामान का बॉयकॉट और 100 से ज्यादा चीनी ऐप को बैन किया गया, उससे चीन की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचा। हालांकि चीन से लगी सीमा पर तनाव कम हुआ है, लेकिन विवाद अभी सुलझा नहीं है। इससे उलट पाकिस्तान से लगती देश की पश्चिमी सीमा पर आतंकवाद के लिए 2020 का साल कहर साबित हुआ। मोदी सरकार की इच्छाशक्ति से पिछले साल हटे अनुच्छेद 370 का असर इस साल जाहिर हुआ। सेना के ऑपरेशन में 110 से ज्यादा आतंकवादी मारे गए और जम्मू-कश्मीर के कई जिले आतंकवाद मुक्त हो गए। पॉलिटिकल लीडरशिप की नजरबंदी हटने के बाद जम्मू-कश्मीर की जिला परिषदों में चुनाव प्रक्रिया भी बहाल हो गई। लंबे समय के बाद इस साल जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण माहौल दिखा, जिसका श्रेय यकीनन केंद्र सरकार को जाता है।

संवैधानिक व्यवस्था के साथ ही आस्था के क्षेत्र में भी यह साल मील का पत्थर साबित हुआ। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार, अयोध्या में भव्य राम मंदिर का रास्ता भी साफ हो गया। प्रधानमंत्री मोदी ने भूमिपूजन कर मंदिर की आधारशिला रख दी। अगले 35-40 महीनों में राम मंदिर के पूर्ण होने का अनुमान है। हालांकि सबका साथ, सबका विकास और सबका विास की नीति पर काम कर रही सरकार के सामने साल खत्म होने से पहले किसानों का विास जीतने की चुनौती खड़ी हो गई है। कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी सुधार की नीयत से लाए गए सरकार के तीन नए कानूनों के विरोध में किसान पिछले एक महीने से कड़कड़ाती ठंड में भी विरोध का झंडा उठाए हुए हैं,  और कई दौर की बातचीत के बाद भी गतिरोध दूर नहीं हो पाया है।

बहरहाल, कोरोना महामारी हो या आंदोलन तेज करने की किसानों की तैयारी, या फिर ऐसी ही कोई दूसरी दुारी, 2020 का साल भारत ही नहीं, दुनिया की उम्मीदों पर भी भारी पड़ा है। हालांकि हमारे लिए यह गर्व की बात होनी चाहिए कि ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में भी देश वि बंधुत्व और दुनिया की मदद करने की अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटा। जून के महीने में जब कोरोना का तांडव अपने शिखर पर था, तब ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कही गई बात याद आती है, जो बीत रहे साल का सबक और आने वाले नये साल की सीख का काम कर सकती है। प्रधानमंत्री मोदी ने तब कहा था कि भारत का इतिहास चुनौतियों से भरा रहा है और संकट के समय भारत के संस्कार विास देते हैं। इसलिए चुनौती एक आए या पचास, इससे कोई साल खराब नहीं हो जाता। 2021 के लिए इससे बेहतर संदेश और क्या हो सकता है?          

उपेन्द्र राय


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