वैक्सीन पर लड़ाई, भारत ने राह दिखाई
दुनिया में कोरोना वायरस का संक्रमण शुरू हुए अब एक साल से ज्यादा वक्त बीत गया है।
वैक्सीन पर लड़ाई, भारत ने राह दिखाई |
इस एक साल में लगभग हर देश ने कोरोना के दंश को झेला, लाखों जिंदगियों को गंवाया और कभी न भुलाए जा सकने वाले दर्द के अनगिनत किस्सों को जिंदगी का हिस्सा बना लिया। क्या अमीर, क्या गरीब, क्या गोरा, क्या काला, क्या जवान, क्या उम्रदराज- कोरोना वायरस ने बिना भेदभाव के घाव दिया। लेकिन जो दर्द दुनिया को साथ लाया, उसका इलाज अब दुनिया को बांट रहा है। मर्ज पकड़ में आने के बाद मानवता का फर्ज भुलाया जा रहा है, बेमानी तर्क अमीर-गरीब के फर्क पर भारी पड़ रहे हैं।
मंगलवार से इंग्लैंड में कोरोना वैक्सीन लगने का काम शुरू होना दुनिया के लिए यकीनन बड़ी राहत लेकर आया है। यह एक तरह से समूची मानवता को बचाने की मुहिम का आगाज है, बाकी देशों की इस उम्मीद की बुनियाद है कि आज नहीं तो कल, अब बहुत जल्द उसका नंबर भी आएगा। लेकिन इस मुहिम पर बेहद करीब से नजर रख रहे एक संगठन के दावे ने इस उम्मीद को तोड़ दिया है। पीपुल्स वैक्सीन अलायंस नाम के इस संगठन ने चिंता जताई है कि वैक्सीन भले अभी आई हो, लेकिन इस पर कब्जा जमाने की होड़ में अमीर देश काफी आगे निकल चुके हैं और हो सकता है कि गरीब देशों तक यह वैक्सीन अगले साल के अंत तक भी न पहुंचे। जब ऐसा होगा, तब भी इस बात का अंदेशा रहेगा कि 10 में से केवल एक गरीब देश को यह वैक्सीन मिल पाएगी। ऐसे देशों की संख्या 70 के आसपास हो सकती है यानी इन 70 में से 63 देश ऐसे हो सकते हैं, जहां कोरोना के खौफ से गरीब जिंदगियां अगले साल तक भी पटरी पर नहीं लौट पाएंगी। चौंकाने वाले इस खुलासे को जिस संगठन ने किया है वो फ्रंटलाइन एड्स, ग्लोबल जस्टिस नाऊ, एमनेस्टी इंटरनेशनल और ऑक्सफॉम जैसी नामी संस्थाओं से मिलकर बना है, इसलिए इस दावे को बेहद गंभीरता से लिया गया है।
कुछ आंकड़े तो बेहद हैरान करने वाले हैं, जैसे कि सबसे कारगर समझी जाने वाली फाइजर/बायोएनटेक वैक्सीन की 96 फीसद खेप पहले ही पश्चिमी देशों के हिस्से में जा चुकी हैं। 95 फीसद असरदार मानी जा रही मॉडर्ना वैक्सीन का भी यही हाल है। इन वैक्सीनों की कुल 53 फीसद खपत को तो दुनिया के केवल 14 अमीर देश पहले ही अपने हिस्से में कर चुके हैं। कनाडा ने तो वैक्सीन का इतना जमावड़ा कर लिया है कि जो वैक्सीन अब शायद गरीब देशों तक कभी नहीं पहुंच पाएगी, अपने हर नागरिक को वो ऐसे पांच डोज दे सकता है। विडंबना देखिए कि गरीब देश कितने भी हाथ-पैर मार लें, फिर भी वो कोरोना की काट समझी जा रही इन दोनों वैक्सीनों को हासिल नहीं कर पाएंगे क्योंकि एक तो अब इसका बड़ा हिस्सा अमीर देशों के गोदामों में पहुंच गया है, फिर दोनों वैक्सीन काफी महंगी भी हैं और इनकी मारक क्षमता को बनाए रखने के लिए जरूरी माइनस 70 डिग्री तापमान वाली अधोसंरचना विकसित करने में ही कई गरीब देशों का दिवाला निकल जाएगा।
दूसरे देशों की क्या बात करें, हमारे यहां भी फाइजर के इस्तेमाल को इजाजत मिलना मुश्किल दिख रहा है, क्योंकि स्वास्थ्य मंत्रालय इतनी जल्दी कोल्ड चेन की क्षमता बढ़ाने के काम को बेहद चुनौतीपूर्ण मानकर चल रहा है। लेकिन बाकी 70 देशों की तरह 135 करोड़ की हमारी आबादी को परेशान नहीं होना पड़ेगा, क्योंकि हमारी सरकार ने समय रहते जो कदम उठाए, उससे हम वैक्सीन के मामले में न केवल आत्मनिर्भर हो गए हैं, बल्कि दुनिया की उम्मीद का केंद्र भी बन गए हैं। भारतीय दवा कंपनियां एक-दो नहीं, बल्कि एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड जैसी आठ ऐसी वैक्सीन तैयार कर रही है, जो महंगी नहीं हैं, और ट्रायल में इनके नतीजे भी उत्साहजनक हैं।
सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने एस्ट्राजेनेका की 5 करोड़ डोज तैयार कर ली हैं, जो कोरोना वैक्सीन के लिहाज से दुनिया की किसी भी दवा उत्पादक कंपनी से बहुत ज्यादा है। शायद इसीलिए ऑस्ट्रेलिया के बैरी ओ फैरेल समेत कई विदेशी राजनयिक कहने के लिए मजबूर हुए हैं कि वैक्सीन तो कई देश बना रहे हैं, लेकिन दुनिया की जरूरत केवल भारत ही पूरी कर सकता है। हमारे वैज्ञानिकों के साथ इसका काफी श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सक्रियता को भी जाता है, जिन्होंने एक तरफ वैक्सीन बना रहे संस्थानों का दौरा कर चुनौतीपूर्ण समय में वैज्ञानिकों की हौसलाअफजाई की तो दूसरी तरफ सभी मुख्यमंत्रियों से मुलाकात और सर्वदलीय बैठक कर कोरोना से लड़ने में राजनीतिक सहमति बनाने की रणनीतिक सफलता भी हासिल की है। इस कवायद के बाद प्रधानमंत्री ने इशारा भी किया है कि भारत बहुत जल्द मोबाइल तकनीक से दुनिया का सबसे बड़ा कोविड टीकाकरण शुरू करेगा। इसके लिए बस ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की सहमति मिलने का इंतजार है और उम्मीद है कि इस टीकाकरण के पहले चरण में ही 30 करोड़ बुजुगरे, गंभीर बीमारी वाले लोगों और कोरोना वॉरियर्स को जीवनरक्षक डोज मिल जाएगा।
इस लिहाज से हम अमेरिका से एक कदम आगे हैं, जहां नव-निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सरकार गठन के पहले 100 दिनों में 100 मिलियन अमेरिकियों यानी 10 करोड़ लोगों को टीकाकरण का वादा किया हुआ है। अमेरिका कोरोना से बुरी तरह प्रभावित रहा है। वहां मौत का आंकड़ा तीन लाख को पार कर गया है। इसके बावजूद अमेरिकियों को वैक्सीन के उपयोग के लिए खाद्य एवं दवा प्रशासन (एफडीए) की औपचारिक मंजूरी का इंतजार है। हालांकि एफडीए की एक सलाहकार समिति ने आपातकालीन परिस्थितियों में फाइजर/बायोएनटेक वैक्सीन के इस्तेमाल की इजाजत दे दी है। इस सबके बीच चीन ऐसे समय में भी चालबाजी से बाज नहीं आ रहा है। दुनिया में ‘मौत का मर्ज’ बांटने के बाद अब चीन उसके इलाज में भी सौदेबाजी कर रहा है। जिस तरह कोरोना का फैलाव आज तक रहस्य बना हुआ है, उसी तरह चीन ने किस तरह कोरोना पर लगाम और वैक्सीन का इंतजाम किया, यह भी राज की बात है। खबरें हैं कि चीन ने साइनोवैक वैक्सीन विकसित की है, जिसका चीनी जनता पर जुलाई से ट्रायल किया जा रहा है। इसके नतीजे असरकार ही कहे जाएंगे, क्योंकि शनिवार तक डब्ल्यूएचओ के डैशबोर्ड पर चीन कोरोना संक्रमण के मामलों में 79वें नंबर पर पहुंच गया है। इस वैक्सीन की खासियत बताई जा रही है कि ऑक्सफोर्ड वैक्सीन की तरह इसे भी सामान्य तापमान पर स्टोर किया जा सकता है यानी अमीर-गरीब की लड़ाई में चीन इसे विकासशील देशों में पहुंचाकर कमाई भी कर सकता है और कोरोना फैलाने के ‘पाप’ से हाथ भी धो सकता है। चीन ठीक ऐसा ही कर भी रहा है। उसने इंडोनेशिया तक अपनी डोज पहुंचा दी है और तुर्की, ब्राजील, चिली जैसे देशों के साथ डील भी कर ली है। वैक्सीन की सौदेबाजी को चैरिटी की शक्ल देने के लिए चीन अफ्रीका महाद्वीप को दो अरब डॉलर और लैटिन अमेरिका एवं कैरिबियाई देशों को एक अरब डॉलर का कर्ज भी दे रहा है।
बहरहाल, चीन की सौदेबाजी और अमीर देशों की खेमेबाजी के बीच भारत दुनिया की उम्मीदों का केंद्र बना है। उम्मीद की जानी चाहिए कि शुरुआती लापरवाहियों के बावजूद कोरोना से लड़ाई के इन निर्णायक क्षणों में डब्ल्यूएचओ भी भारत से सीख लेकर अपनी जिम्मेदारियों को समझेगा। हालांकि डब्ल्यूएचओ ने ‘कोवैक्स’ नाम के अपने वैश्विक वैक्सीन कार्यक्रम के जरिए 189 देशों में कोविड वैक्सीन के समानुपातिक बंटवारे की अपील की है, लेकिन इतने भर से काम नहीं चलेगा। उसे वैक्सीन बना रही दवा कंपनियों को अपना फायदा पीछे रखकर लोगों की जिंदगी बचाने के लिए दवा का फॉर्मूला साझा करने के लिए तैयार करना होगा, जिससे कई देशों में एक साथ दुनिया की जरूरत के हिसाब से वैक्सीन तैयार की जा सके। दुनिया को भी समझना होगा कि मानवता को बचाने के इम्तिहान में एकता ही आखिरकार सबसे बड़ा रामबाण साबित होगी, क्योंकि कोरोना पीड़ित एक भी शख्स का बचा रहना संक्रमण की नई चुनौती की गंभीर शुरु आत बन सकता है।
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