‘लॉक’ रखने से ही ‘डाउन’ होगा कोरोना

Last Updated 28 Mar 2020 12:33:23 AM IST

दुनिया के दूसरे देशों में जो हो रहा है, वो हमारे लिए भी सबक होना चाहिए। इटली, स्पेन, ब्रिटेन, अमेरिका स्वास्थ्य सुविधाओं के लिहाज से अव्वल देश कहलाते हैं। इसके बावजूद यहां कोरोना के तांडव में कोई कमी नहीं है। हालांकि इसकी एक वजह यह भी है कि इनमें से किसी देश ने सामाजिक दूरी बरतने की एहतियात को गंभीरता से नहीं लिया और जब लिया तब तक बहुत देर हो चुकी थी


‘लॉक’ रखने से ही ‘डाउन’ होगा कोरोना

कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई अब ‘वन वर्सेज ऑल’ बन चुकी है। एक तरफ बेलगाम वायरस और दूसरी तरफ बेबस विश्व। चीन का दम निकालने के बाद यह ‘निरंकुश’ वायरस अब यूरोप में तबाही मचा रहा है। बारहमासी चहल-पहल वाले इटली और स्पेन जैसे देशों को इसने चंद हफ्तों में कब्रिस्तान में बदल दिया है। एक सदी पहले तक जिस ब्रिटेन का सूरज कभी अस्त नहीं होता था, आज उसी अंग्रेजी सल्तनत का राजकुमार कोरोना के सामने पस्त है। इसकी आहट इतनी डरावनी है कि दुनियाभर को अपनी ताकत से डराने वाला अमेरिका तक सहमा हुआ है। हमारे देश में भी घुसपैठ के बाद अब इसका दायरा चिंताजनक तरीके से लगातार बढ़ता जा रहा है।

बोतल से निकले जिन्न की तरह कोरोना अपने साथ मौत की सुनामी लेकर चल रहा है और इससे पार पाना ठीक वैसा ही लग रहा है जैसे किसी सुनामी को बोतल में भरना। लाइलाज होने से महामारी में बदल चुके कोरोना की फिलहाल एक ही कमजोरी है और वो है इससे दूरी। देश में लगभग कर्फ्यू वाला संपूर्ण लॉकडाउन करने का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ऐलान इसी दिशा में एक जरूरी कदम है। यह भी गौर करने वाली बात है कि दुनिया के लिए जो बीमारी मेडिकल पहेली बनी हुई है, उसकी गुत्थी सुलझाने के लिए प्रधानमंत्री ने ऐसे प्रतीकों की मदद ली है जिसे आमजन अच्छे से समझते हैं। कोरोना की रावण से तुलना और लॉकडाउन को घर के आगे खिंची लक्ष्मण रेखा बताकर प्रधानमंत्री ने देशवासियों को सरल शब्दों में संदेश दिया है कि समस्या कितनी विकराल है।

लॉकडाउन के पहले तीन दिनों का अनुभव बताता है कि देश ने अपने प्रधानमंत्री की अपील पर चलना भी शुरू कर दिया है। वरना तो अलग-अलग राज्यों में पहले से घोषित लॉकडाउन का खुलकर माखौल उड़ता दिख रहा था। बार-बार समझाने के बावजूद जब हालात नहीं सुधरे तो प्रधानमंत्री को दखल देना पड़ा। पिछले तीन महीने के अनुभव को देखते हुए कोरोना को काबू करने का जो कारगर तरीका सामने आया है वो है इसकी चेन को तोड़ना। इंसानी शरीर में इसका वायरस 14 से 21 दिनों तक रहता है यानी इसका ‘कुचक्र’ तोड़ने के लिए 21 दिनों तक इंसान का इंसान से संपर्क चक्र रोकना ही एकमेव उपाय है।

कोरोना को रोकने की प्रधानमंत्री की इस पहल की तारीफ विपक्ष से लेकर वि स्वास्थ्य संगठन तक कर रहा है। यही वजह है कि भारत इसकी शुरु आत के छह हफ्ते बाद भी दूसरे देशों की तुलना में बेहतर स्थिति में है। लेकिन यह इस बात की भी गारंटी नहीं है कि बाकी दुनिया की तुलना में भारत पर इसका असर कम पड़ेगा। हमें मानकर चलना होगा कि देश में ‘सावधानी घटी तो दुर्घटना घटी’ वाले हालात बन सकते हैं। अमेरिका और ब्रिटेन के बारे में अनुमान है कि वहां की 50 से 60 फीसदी तक की आबादी कोरोना की चपेट में आएगी। यदि हम इस आंकड़े को बेहद सीमित रखते हुए 10 फीसद तक रोकने में भी सफल हो जाते हैं तो भी करीब-करीब 15 करोड़ लोगों का इससे प्रभावित होने का खतरा है।
 

नहीं कोई शॉर्ट कट
हमें समझना होगा कि न तो यह संख्या छोटी है, न इसे हासिल करने का दूसरा कोई शॉर्ट कट तरीका है। जिस चीन और अमेरिका को हम पैमाना मान रहे हैं, उनकी तुलना में हमारी आबादी का घनत्व कई गुना ज्यादा है। चीन से तीन गुना और अमेरिका से करीब-करीब तेरह गुना। हालात बहुत बेहतर भी रहे तो भी हर पांच में से कम-से-कम एक मरीज की बीमारी तो गंभीर स्तर वाली होगी यानी 15 से 20 लाख लोगों को गंभीर हालत में अस्पताल में पहुंचाना होगा जिसके लिए इतनी बड़ी तादाद में बेड और वेंटिलेटर की जरूरत पड़ेगी। इंडियन सोसायटी ऑफ क्रिटिकल केयर मेडिसिन के आंकड़े बताते हैं कि देश में करीब 70 हजार आईसीयू बेड और 40 हजार वेंटिलेटर हैं। इसका भी बहुत बड़ा हिस्सा बड़े शहरों और निजी अस्पतालों में है। अब आप खुद अंदाजा लगा लीजिए कि हमारे सामने कितनी बड़ी मेडिकल इमरजेंसी खड़ी होने जा रही है।

सवाल उठता है कि हम इसके लिए कितने तैयार हैं? केवल स्वास्थ्य सेवाओं के नजरिए से ही नहीं, देश की सामाजिक संरचना के लिहाज से भी। रोज कमाकर खाने वाली देश की 80 फीसद आबादी के लिए एक तरफ कुआं, दूसरी तरफ खाई वाले हालात थे। बाहर निकलें तो कोरोना का प्रहार और घर बैठें तो भुखमरी की मार। ऐसे मुश्किल वक्त में सरकार ने जनकल्याण के जो कदम उठाए हैं उनकी तारीफ की जानी चाहिए और शायद इसी वजह से प्रधानमंत्री मोदी का संपूर्ण लॉकडाउन का फैसला केवल साहसिक ही नहीं, दूरदर्शी भी दिखाई देने लगा है। 

हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए 15 हजार करोड़ रु पये का प्रावधान जांच सुविधाएं बढ़ाने, आईसीयू में बेड और वेंटिलेटर की संख्या में इजाफा करने और मेडिकल के साथ ही पैरामेडिकल स्टाफ की ट्रेनिंग में बड़ा बदलाव ला सकता है। इससे भी आगे बढ़कर सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत एक लाख सत्तर हजार करोड़ का बूस्टर डोज देकर समाज के आखिरी व्यक्ति तक को अकेला न छोड़ने की अपनी संवेदनशीलता का परिचय दिया है। इस बूस्टर डोज के लिए सरकार ने किसान, दिहाड़ी मजदूर, महिलाओं और गरीबों तक भरपूर अन्न और धन पहुंचाने के लिए अपना खजाना खोला है। वैसे तो राहत का यह पैकेज मुकम्मल दिखाई देता है, लेकिन अगर सरकार कोरोना के इलाज को भी आयुष्मान भारत के तहत ले आए तो इससे गरीब परिवारों को और राहत मिल जाएगी।  

प्रधानमंत्री कई बार मौजूदा दौर की तुलना युद्ध से कर चुके हैं और मैदान में डटकर लोगों का इलाज कर रहे स्वास्थ्यकर्मिंयों को वॉर वॉरियर्स यानी युद्ध सेनानी बता चुके हैं। ऐसे स्वास्थ्यकर्मिंयों के सम्मान और उनकी हौसला-अफजाई के लिए प्रधानमंत्री ने देश से जनता कर्फ्यू के दौरान थाली-ताली और घंटी-शंख बजाने की अपील की थी। इससे एक कदम आगे जाकर प्रधानमंत्री ने बूस्टर डोज में चिकित्साकर्मिंयों को 50 लाख रु पये का लाइफ इंश्योरेंस कवर भी दिया है जिससे वो और उनके परिवार चिंता और डर से मुक्त हो सकें।

आर्थिक लक्ष्य और कोरोना
गुरु वार को जी-20 देशों की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान भी प्रधानमंत्री मोदी का यही मानवीय चेहरा दिखाई दिया जब उन्होंने इस समस्या के बीच मानव को ही आर्थिक लक्ष्यों से आगे रखने की अपील की। कोरोना से लड़ने की उनकी इस अपील को जमीन पर उतारने के लिए जी-20 देशों में 50 खरब डॉलर की सहायता राशि देने पर सहमति बनी है, जो इस महामारी से लड़ने में बड़ी मददगार साबित होगी।


 
इस मौके पर प्रधानमंत्री का कहना कि हमारी अर्थव्यवस्थाएं भले ही मजबूत हों, हमारी व्यवस्थाएं चरमरा चुकी हैं-भी काफी वाजिब दिखता है। इसका संदर्भ बेशक, वि स्वास्थ्य संगठन की प्रासंगिकता को लेकर हो, लेकिन इसका एक सिरा जी-8 के मजबूत कहे जाने वाले देशों से भी जुड़ता है। जी-8 के सदस्य देशों  अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, जर्मनी, जापान, इटली और कनाडा को दुनिया की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था होने का गुमान रहा है, लेकिन कोरोना ने इन सबको घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया है। आशंका है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को होने वाले 1.5 फीसद नुकसान में से केवल अमेरिका का ही हिस्सा करीब चार ट्रिलियन डॉलर तक होगा। यह इतनी बड़ी राशि है कि इसके सामने कई देशों की कुल जीडीपी भी बौनी पड़ जाए। अमेरिका भले ही लॉकडाउन न करके दुनिया को आज भी अपनी अकड़ दिखा रहा हो, लेकिन कोरोना से लड़ने के लिए उसे भी अपने इतिहास का सबसे बड़ा राहत पैकेज देने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इसलिए जो दुनिया के दूसरे देशों में हो रहा है, वो हमारे लिए भी सबक होना चाहिए। इटली, स्पेन, ब्रिटेन, अमेरिका स्वास्थ्य सुविधाओं के लिहाज से अव्वल देश कहलाते हैं। इसके बावजूद यहां कोरोना के तांडव में कोई कमी नहीं है। हालांकि इसकी एक वजह यह भी है कि इनमें से किसी देश ने सामाजिक दूरी बरतने की एहतियात को गंभीरता से नहीं लिया और जब लिया तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अमेरिका तो अब भी तालाबंदी को अपनी शान के खिलाफ मान रहा है, वो भी तब जब कोरोना के मामलों के लिहाज से अमेरिका की लकीर चीन से भी बड़ी हो गई है और वो इटली और स्पेन की राह पर आगे बढ़ रहा है। लॉकडाउन की लकीर खींचकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश को इसी बेपरवाही से सचेत किया है।

उपेन्द्र राय


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