मोदी के 'अनुशासन मंत्र' से लड़ाई होगी आसान

Last Updated 21 Mar 2020 02:08:08 AM IST

विशाल आकार और आबादी के घनत्व के कारण आशंका जताई जा रही है कि भारत कोरोना का अगला सबसे प्रमुख केंद्र बन सकता है। भारत में हर वर्ग किमी में औसतन 420 लोग रहते हैं। चीन में यह आंकड़ा 148 पर ठहर जाता है यानी आबादी का घनत्व चीन से करीब तीन गुना है।


मोदी के 'अनुशासन मंत्र' से लड़ाई होगी आसान

पिछले तीन महीनों में कोरोना का वायरस एक तूफान की तरह लगातार आगे बढ़ता गया है। यह तूफान जहां-जहां से गुजरा है, वहां-वहां खौफ का मंजर दिखाई दे रहा है। अब तक दुनिया के 180 से ज्यादा देशों में करीब ढाई लाख लोग इसके संक्रमण से जूझ रहे हैं और दस हजार से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इसने चीन से निकल कर यूरोप को अपना एपीसेंटर बना लिया है, जहां इटली में अब मौत का आंकड़ा चीन से भी ज्यादा हो गया है और शवों को दफनाने के लिए कब्रिस्तान कम पड़ने लगे हैं। बुधवार को इटली में 475 लोग और गुरुवार को 427 लोग इसके शिकार बन गए। कोरोना वायरस भारत में भी पांच जिंदगियां लील चुका है और संक्रमित लोगों का आंकड़ा दोहरे शतक को पार कर गया है।

लगातार बढ़ रहा मौत का आंकड़ा खौफ को बढ़ा रहा है और दुनिया की बेबसी को भी बयां कर रहा है। कोरोना का पहला मामला सामने आए हुए करीब-करीब 100 दिन बीत चुके हैं। लेकिन हम बस इतना पता लगा पाए हैं कि यह वायरस इंसानी शरीर पर किस तरह वार कर रहा है। इसका पलटवार यानी इलाज क्या है, इस पर अभी तक तो पूरी दुनिया खाली हाथ है। चीन, अमेरिका, इजराइल, जापान जैसे कई देश कोरोना का ‘तोड़’ ढूंढ लेने का दावा तो कर रहे हैं, लेकिन कोई भी यकीनी तौर पर अपनी ‘कामयाबी’ पर एतबार नहीं कर पा रहा है।

चीन दावा कर रहा है कि वो ऐसी दवा पर काम कर रहा है जिससे हल्के मामलों को गंभीर बनने से पहले ही ठीक कर लिया जाए। अमेरिका मलेरिया की दवा में कोरोना का इलाज ढूंढ रहा है तो लंदन के वैज्ञानिक सार्स की दवा आजमा रहे हैं। भारत में जयपुर में एचआईवी के टीके से तीन मरीजों के ठीक होने की खबर सामने आई है, तो ऑस्ट्रेलिया ने अपने टीके को ‘ब्रह्मास्त्र’ बनाने के लिए एचआईवी की दवा में मलेरिया का भी कॉम्बिनेशन कर दिया है। चीन और इटली के बाद सबसे ज्यादा परेशान ईरान भी जर्मनी की तरह कोरोना से फेफड़ों को बचाने के मिशन पर काम कर रहा है और इजराइल वायरस की जैविक संरचना का पता लगा कर खुद को दवा बनाने के बेहद करीब बता रहा है। दवा बनाने के लिए यूके की सरकार ने 440 करोड़ रुपये का फंड भी जारी कर दिया है। यूरोपियन देशों की ही 35 से ज्यादा कंपनियां कोरोना की काट ढूंढने में लगी हैं। इस सबसे इतना तो समझ में आ रहा है कि दवा ढूंढ लेने की दावेदारी को भले ही अंधेरे में तीर चलाने जैसी जुमलेबाजी से खारिज न किया जा सकता हो, लेकिन इसकी तुलना तीरंदाजी की किसी ऐसी विश्वसनीय प्रतियोगिता से भी नहीं की जा सकती जिसका लक्ष्य स्पष्ट होता है और दावेदार में से किसी-न-किसी का विजेता बनना भी तय होता है।

इसलिए फिलहाल तो समझदारी किसी जुमले के बजाय मेडिकल साइंस के आजमाए फॉर्मूले ‘प्रिवेंशन इज बेटर दैन क्योर’ पर चलने में ही दिखती है जिसके लिए हद से ज्यादा हाईजीन बनाए रखने की जरूरत है। हम जितना ज्यादा सफाई में रहेंगे, जितना खुद को आइसोलेट करेंगे, उतना ही कोरोना से बचे रहेंगे।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी देश को हर तरह की एहतियात बरतने की नसीहत दी है। रविवार को एक दिन सुबह से रात तक देश की जनता से खुद को कर्फ्यू में रखने की उनकी अपील को लॉकडाउन की घबराहट के तौर पर नहीं, बल्कि खतरे की आहट के बीच देशवासियों को सुरक्षित रखने के लिए संसाधनों की बेहतर जमावट के नजरिए से देखा जाना चाहिए।

प्रधानमंत्री मोदी की इस अपील से साफ है कि 21वीं सदी के तीसरे दशक का 12वां रविवार आने वाले समय में जनता कर्फ्यू के लिए याद किया जाएगा। जनता की ओर से, जनता के लिए, जनता का कर्फ्यू पीएम मोदी ने इसे इसी रूप में परिभाषित किया है। कारण यह है कि लोकतंत्र की परिभाषा में शामिल जनता पहली बार चिकित्सकीय सुरक्षा के किसी आंदोलन में शामिल हुई है। कोरोना के खिलाफ दुनिया भर में जारी जंग में भारत पहला ऐसा देश बन गया है जिसने एक साथ एक समय पर खुद को क्वॉरंटाइन करते हुए मुहिम से जुड़े लोगों के लिए तालियां बजाकर सम्मान देने का निर्णय लिया है।

अपनी अपील में प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना के दूसरे चरण में प्रवेश कर चुके देश को याद दिलाया है कि किस तरह चीन और पाकिस्तान से युद्ध के दौरान देशवासियों ने संकल्प और संयम की मिसाल पेश करते हुए ब्लैकआउट की चुनौती को पार किया था। वक्त उस चुनौती का गवाह बने लोगों का नये सिरे से इम्तिहान ले रहा है क्योंकि वही पीढ़ी आज उम्र के उस दौर में है जहां कोरोना से सबसे ज्यादा खतरा है।

प्रधानमंत्री की नसीहत एक और संदर्भ में बेहद अहम है। दरअसल, विशाल आकार और आबादी के घनत्व के कारण ऐसी आशंका जताई जा रही है कि भारत कोरोना का अगला सबसे प्रमुख केंद्र बन सकता है। भारत में हर वर्ग किलोमीटर में औसतन 420 लोग रहते हैं। चीन में यह आंकड़ा 148 पर ठहर जाता है यानी हमारी आबादी का घनत्व चीन से करीब तीन गुना है। इसका एक बड़ा हिस्सा उन तंग बस्तियों में रहता है, जहां पांच से लेकर आठ लोगों तक का एक छोटे-से कमरे में रहना सामान्य बात है। यहां साफ-सफाई के संसाधनों और पानी की कमी भी असामान्य बात नहीं है। लंबे समय में यह किल्लत यहां रहने वालों में स्वच्छता को लेकर असंवेदनशीलता की आदत में बदल जाती है। ऐसी हालत में अगर हम संक्रमण के तीसरे चरण में पहुंच गए तो बीमारी का सामुदायिक प्रसार होगा, मरीजों को आइसोलेट करना मुश्किल हो जाएगा और हालात बेकाबू हो जाएंगे। इसलिए हम अभी नहीं संभले तो कोरोना का असर चीन से तीन गुना तक जा सकता है।

केवल घनत्व ही नहीं, हमारी आबादी की जमावट और साफ-सफाई की आदत पर भी ध्यान देने की जरूरत है। देश की दो-तिहाई आबादी गांव में रहती है यानी हर तीन में से दो व्यक्ति गांव में रहते हैं। कई रिपोर्ट्स से हमें यह भी पता चलता है कि इस ग्रामीण आबादी का एक-चौथाई हिस्सा स्वच्छता और बीमारियों को लेकर लापरवाही बरतता है। बेशक, इसकी वजह गरीबी और अज्ञानता भी है, लेकिन मौजूदा दौर में बीमारी के लक्षण छिपाना, हाथों को नियमित साफ नहीं करना, बिना हाथ धोए बच्चों को खाना खिला देना जैसी लापरवाहियां केवल एक शख्स को नहीं, बल्कि उसके परिवार और संपर्क में आने वाली बड़ी आबादी को भी मुश्किल में डाल सकता है। इसमें रोज कमाकर खाने वालों की घर से बाहर निकलने की मजबूरी को भी जोड़ लें तो तीसरा चरण हमारे लिए दुनिया के किसी भी दूसरे देश से ज्यादा भयावह साबित हो सकता है।



हालांकि खतरे की इस आहट के बीच एक बड़ी राहत भी है। कोरोना से करीब-करीब चार महीने की जंग लड़ने के बाद चीन अब इसे रोकने में कामयाब होता दिख रहा है। बीते दो-तीन दिनों में चीन में कोरोना संक्रमण के मामले में व्यापक कमी आई है। कहने की जरूरत नहीं है कि चीन को यह जीत उसके हार नहीं मानने के असाधारण संकल्प और सामान्य संयम से आगे जाकर हद से ज्यादा राष्ट्रीय अनुशासन के दम पर ही मिली है। कोरोना को हराने का हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मंत्र भी तो यही है।

उपेन्द्र राय


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