‘हाथ’ मिलेंगे तो हारेगा कोरोना

Last Updated 15 Mar 2020 12:11:51 AM IST

दो महीने से चीन के लिए चैलेंज बना हुआ कोरोना वायरस अब पूरी दुनिया का सिरदर्द बन गया है।




‘हाथ’ मिलेंगे तो हारेगा कोरोना

131 देशों में 1,26,000 लोगों को बीमार करने और 5 हजार से ज्यादा लोगों के इसका शिकार बनने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इसे महामारी मान लिया है। हमारे देश में भी कोरोना से दो मौत हो चुकी है और मरीजों का आंकड़ा शतक की ओर बढ़ने लगा है। क्या आम और क्या खास? ब्रिटेन, स्पेन और ऑस्ट्रेलिया के मंत्री से लेकर हॉलीवुड और एनबीए तक कोरोना की चपेट में हैं। अनहोनी की आशंका को भांपते हुए भारत सरकार ने कोरोना को आपदा घोषित कर दिया है।

पिछली बार दुनिया पर ऐसा खतरा साल 2009 में मंडराया था, जब स्वाइन फ्लू को महामारी घोषित किया गया था। उस समय दुनिया में कई लाख लोग मारे गए थे। 11 साल पहले स्वाइन फ्लू का वायरस भी कोरोना वायरस की ही तरह बिल्कुल नया था, आसानी से लोगों को संक्रमित कर रहा था और आपसी संपर्क पर सवार होकर दुनिया की ‘सैर’ कर रहा था। क्योंकि अभी तक कोरोना वायरस का कोई इलाज नहीं ढूंढा जा सका है, इसलिए फिलहाल इसके विस्तार को रोकना ही इसका इकलौता एंटीडोट है। कोरोना के कहर से पूरी दुनिया में कर्फ्यू जैसे हालात हो गए हैं। चीन के बाहर कोरोना का सबसे ज्यादा कहर इटली पर बरपा है। महामारी ने इटली को इस कदर अपनी चपेट में ले लिया है कि दुनिया के ‘टूरिज्म कैपिटल’ के नाम से मशहूर इस देश की पहचान आज ‘टेरर कैपिटल’ के रूप में होने लगी है। साल भर पर्यटकों की चहल-पहल से गुलजार रहने वाले इस देश में एक तरह से तालाबंदी हो गई है। खौफ इतना है कि 6 करोड़ लोग घरों में कैद हैं और दवा और राशन की दुकानों को छोड़कर सब कुछ बंद है। जर्मनी ने भी बड़े जमावड़े वाले आयोजनों को रद्द कर दिया है। खाली पड़े स्टेडियम में फुटबॉल मैच खेला जा रहा है। पोलैंड और स्विट्जरलैंड में अभी तक कोई मौत नहीं हुई है, लेकिन इसके डर ने वहां भी सड़कों को वीरान कर दिया है।

दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क अमेरिका में कोरोना से 40 मरीजों की मौत के बाद नेशनल इमरजेंसी की घोषणा कर दी गई है। हालात की गंभीरता को देखते हुए अमेरिका ने ब्रिटेन और आयरलैंड को छोड़कर सभी यूरोपीय देशों के नागरिकों के लिए अपने देश में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी है। दुनिया के सबसे ताकतवर शख्स का चुनाव अभियान भी कोरोना के सामने बौना साबित हो रहा है। भारत में भी इटली, ईरान, दक्षिण कोरिया और जापान के नागरिकों का वीजा निलंबित कर दिया गया है। जहां-जहां कोरोना फैला है, वहां बहुत जरूरी नहीं होने पर यात्रा नहीं करने की एडवायजरी जारी हो गई है। दिल्ली समेत कई राज्यों में कोरोना को महामारी मान लिया गया है। इसके अलावा भी कई राज्यों में स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए हैं और सरकारी आयोजनों के साथ ही भीड़ जुटाने वाले आईपीएल, आईफा जैसे सालाना जलसों को या तो रद्द कर दिया गया है या फिर आगे बढ़ा दिया गया है। सामाजिक दूरी बनाने के इस अभियान की सबसे बड़ी मार तो अर्थव्यवस्था पर पड़ रही है।

आईएमएफ से लेकर ओईसीडी और ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स से मूडीज एनालिटिक्स तक अर्थव्यवस्था की जानी-मानी संस्थाओं का अनुमान है कि कोरोना से ग्लोबल इकोनॉमी में एक से डेढ़ फीसद का स्लोडाउन आ सकता है। दुनिया की सभी टॉप-5 इकोनॉमी किसी-न-किसी रूप में इसकी कीमत चुकाएंगी। आर्थिक मंदी के बीच ग्लोबल जीडीपी के 2.4 फीसद रहने की उम्मीद थी मगर कोरोना वायरस के कारण अब मूडीज ने यह अनुमान घटाकर 1.7 प्रतिशत कर दिया है। वहीं अमेरिका की विकास दर को घटाकर 1.5 फीसद कर दिया गया है। यानी पिछले 126 हफ्तों से विस्तार का ‘अमेध’ कर रही दुनिया की सबसे बड़ी ‘अर्थव्यवस्था के घोड़ों’ को भी कोरोना से खतरा है। साल 2003 में अमेरिका को सार्स से जितना नुकसान हुआ था, कोरोना वायरस उससे सात गुना तक नुकसान पहुंचा सकता है। कोरोना की सबसे बड़ी मार झेल रहे चीन के लिए भी विकास दर को 5.2 से घटाकर 4.8 फीसद कर दिया गया है। जापानी अर्थव्यवस्था में गिरावट की आशंका नहीं है, तो बढ़ोतरी की उम्मीद भी नहीं है। साल 2009 से लगातार आर्थिक विकास देख रहे जर्मनी की ग्रोथ स्टोरी पर भी कोरोना ब्रेक लग सकता है।
भारत की विकास दर भी 0.1 फीसद गिरकर 5.3 पर आ सकती है। पिछले महीने ही मूडीज ने इसके 5.4 फीसद तक रहने का अनुमान लगाया था। पहले से ही सुस्ती की गिरफ्त में चल रहे फार्मा, ऑटो, पर्यटन, इलेक्ट्रॉनिक्स, कंज्यूमर गुड्स, पॉल्ट्री, जूलरी, हैंडीक्राफ्ट, कपड़ा, स्टील और एग्रोकेम उद्योग को आने वाले दिनों में और दबाव झेलने के लिए तैयार रहना होगा।  अर्थव्यवस्था का हाल स्टॉक मार्केट की चाल से समझ आता है जो बता रहा है कि मरीज बदहाल है। पिछला हफ्ता भारत ही नहीं, दुनिया भर के बाजारों के लिए अब तक का सबसे बुरा सपना साबित हुआ है। सेंसेक्स 9.2 फीसद तक गिरा है, जबकि निफ्टी का दायरा भी 9 फीसद तक सिकुड़ा है। अमेरिकी बाजार तो इससे दोगुने तक यानी करीब-करीब 18 फीसद तक गोता लगा चुके हैं।

वॉल स्ट्रीट ने इस हफ्ते 33 साल की सबसे बड़ी गिरावट देखी है। गुरु वार को डाउ जोंस 9.99 फीसद, नैस्डेक 9.43 फीसद और एसएंडपी 9.51 फीसद तक गिर गया। सेंटीमेंट बिगड़ने से सेंसेक्स ने भी गुरु वार को 52 हफ्ते का निचला स्तर छू लिया। शुक्रवार को तो अफरा-तफरी ऐसी रही कि बाजार कुल 5,400 अंक उतरा-चढ़ा। कोरोना का वायरस केवल 15 मिनट में 12 ट्रिलियन की पूंजी साफ कर गया। यह इस मायने में हैरतअंगेज है कि साल 2008 की मंदी में दुनिया भर के बाजारों को 30 से 50 फीसद तक गिरने में जहां दो साल लग गए थे, वहीं कोरोना के डर से यह काम केवल एक महीने में हो गया है। केवल पिछले हफ्ते को ही देखें, तो जापान में टोक्यो स्टॉक एक्सचेंज का निक्केई 16 फीसद तक टूट गया, जबकि रूस, ब्राजील, फ्रांस, जर्मनी, अज्रेटीना और ब्रिटेन के बाजार 20 फीसद तक गिरे हैं। बाजार की यह घबराहट दरअसल भरोसे की गिरावट है। मंगल ग्रह को अब और तब जीतने का दावा करने वाली दुनिया कोरोना का ‘अमंगल’ टालने की दवा नहीं ढूंढ पाई है। रिसर्च के लिए तकरीबन हर प्रभावित देश पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं। इजराइल ने बेशक कोरोना का वैक्सीन ईजाद करने का दावा किया है, लेकिन बाकी दुनिया इस पर यकीन नहीं कर पा रही है। हालांकि इस मामले में सबसे ज्यादा तबाही झेल चुके चीन की कामयाबी जरूर राहत दे रही है। ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि चीन एक मरीज के शरीर से कोरोना वायरस को अलग करने में सफल रहा है और उसके रिसर्चरों ने तकनीक के जरिए कोरोना वायरस की जीनोम सिक्वेंसिंग और उसकी पहचान का काम पूरा कर लिया है।

सरल शब्दों में यह कोरोना की जड़ को पहचान लेने जैसा है। चीन ने इस जानकारी को दूसरे देशों से साझा भी किया है ताकि जल्द-से-जल्द इसका टीका तैयार किया जा सके। लेकिन दुनिया पर छाए संकट से लड़ने की सबसे बड़ी हौसला-अफजाई एक बार फिर हमारे देश से ही हुई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस दिशा में बड़ी पहल की है। दुनिया को ‘नमस्ते’ की अहमियत की याद दिला चुके प्रधानमंत्री ने इस बार  अपनी-अपनी सरहदों में सिमट गए देशों को हिम्मत बंधाई है और कोरोना के खिलाफ साथ खड़े होने की सलाह दी है। इसकी शुरु आत के लिए उन्होंने सार्क देशों के बीच वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का सुझाव दिया है, जिसे पाकिस्तान समेत सदस्य देशों ने तुरंत मंजूर भी कर लिया है। संकेत साफ है-कोरोना के ‘इलाज’ में सामाजिक दूरी ही नहीं, बल्कि साथ मिलकर लड़ाई भी जरूरी है। क्योंकि ये समस्या किसी एक देश की नहीं बल्कि पूरे विश्व की हो चुकी है। लिहाजा कोरोना के राक्षस पर विजय पाने के लिए पूरी दुनिया को एक विशेष रणनीति के साथ मुकाबले के लिए तैयार होना पड़ेगा।

उपेन्द्र राय


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