भारत-अमेरिकी संबंधों का ’मजा मा‘ दौर

Last Updated 16 Feb 2020 12:56:34 AM IST

डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति होने के बाद पहली बार भारत आ रहे हैं। दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र और सुपर पॉवर की दोस्ती को जमाना देखता रहा है।


भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प (फाइल फोटो)

24 और 25 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति  डोनाल्ड ट्रम्प की यही दोस्ती बुलंदियों का आसमान छूने जा रही है। दो दिन के दौरे में ट्रंप सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गृह राज्य गुजरात की राजधानी अहमदाबाद जाएंगे जहां दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम के उद्घाटन के बाद एक खास कार्यक्रम में शामिल होंगे। इस कार्यक्रम का नाम हाउडी मोदी की तर्ज पर ‘केम छो ट्रंप’ रखा गया है।

गत सितम्बर में प्रधानमंत्री मोदी जब अमेरिका गए थे, तो उनके सम्मान में ह्यूस्टन में ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम रखा गया था, जिसमें 50 हजार से ज्यादा अप्रवासी भारतीय शामिल हुए थे। हाउडी मोदी में उमड़ी भीड़ को देखकर ट्रंप अचंभित हुए थे। ‘केम छो ट्रंप’ के लिए जब वह मोटेरा स्टेडियम पहुंचेंगे, तो उनके सम्मान में वहां दोगुनी भीड़ मौजूद होगी। इसके अलावा, एयरपोर्ट से साबरमती आश्रम के 22 किमी. लंबे रोड-शो में भी लाखों शामिल होंगे। जाहिर है 50 हजार की भीड़ देखकर रोमांचित हो जाने वाले ट्रंप के लिए लाखों लोगों की मौजूदगी एक हैरान करने वाला अनुभव होगा, जैसा उन्होंने अपने ट्वीट में जिक्र किया है।

ट्रंप की हैरानी को थोड़ी देर के लिए अलग रख दिया जाए, तो भारत के लिए ये तथ्य जरूर हैरान करने वाला रहेगा कि जिस दौर में भारत और अमेरिका के संबंध नए शिखर छू रहे थे, उसी दौर में भी ट्रंप भारत आने का वक्त नहीं निकाल पाए। पिछले साल उन्हें गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनाने की कोशिश भी हुई थी, लेकिन किसी वजह से बात नहीं बन पाई थी। अब जब कार्यकाल के आखिरी साल में ट्रंप भारत आने के लिए तैयार हुए हैं तो इसके लिए आपसी संबंधों की गरमाहट के साथ ही अमेरिका में चुनाव की आहट को भी वजह बताया जा रहा है।

वैसे इसकी शुरुआत पिछले साल सितम्बर में ही हो गई थी जब ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में हजारों एनआरआई की मौजूदगी में ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’ का नारा लगा था। भारत के दौरे पर ट्रंप उस जुड़ाव को और मजबूत करना चाहेंगे। साउथ एशियन एडवोकेसी ग्रुप के आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका में साल 2019 में भारतीय मूल के लोगों की संख्या करीब 38 फीसद तक बढ़ी है और अब यह 50 लाख के करीब पहुंच गई है। इसमें करीब 20 फीसद गुजराती मूल के हैं। ‘केम छो ट्रंप’ के जरिए ट्रंप की नजर इन्हीं मतदाताओं पर है। दुनिया में सबसे खर्चीला चुनाव अमेरिका में होता है और गुजराती मतदाता वोट के साथ पैसे से भी ट्रंप की मदद कर सकते हैं। इस सबके बीच मौजूदा दौर में गुजरातियों के बीच सबसे बड़ा चेहरा माने जाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी साथ खड़े हों, तो यह ट्रंप-कार्ड भी साबित हो सकता है।

दौरे से पहले ट्रंप ने भारत के साथ ट्रेड डील को लेकर सकारात्मक संकेत भी दिए हैं। अमेरिका चीन के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। साल 2018 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 142.6 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड स्तर तक रहा था। भारत स्टील और एल्यूमीनियम उत्पादों पर अमेरिका के लगाए गए भारी टैक्स में राहत के साथ-साथ कृषि, ऑटोमोबाइल,ऑटो और इंजीनियरिंग उत्पादों के लिए नए बाजार की तलाश में है। दौरे से ऐन पहले जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस यानी जीएसपी की लिस्ट से हटाया जाना भारत के लिए किसी झटके से कम नहीं है। इससे भारत को अमेरिका की तरफ से निर्यात पर मिलने वाली भारी-भरकम छूट से हाथ धोना पड़ेगा। लिहाजा, उसकी कोशिश रहेगी कि अमेरिका वह सुविधा उसको दोबारा बहाल करे। दूसरी ओर, अमेरिका की कोशिश है कि उसके कृषि, डेयरी, चिकित्सा उपकरण और विनिर्माण उत्पादों के लिए भारत अपने बाजार को ज्यादा खोले। लंबे समय से दोनों देश इस दिशा में काम भी कर रहे हैं।

ट्रंप के इस दौरे को ‘केम छो ट्रंप’ का नाम दिया गया है। आम तौर पर इस सवाल का जवाब गुजराती में ‘मजा मा’ दिया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि ट्रंप इस वक्त अमेरिका में ठीक ऐसे ही दौर से गुजर रहे हैं। महाभियोग प्रस्ताव में क्लीन चिट के बाद ट्रंप राजनीतिक रूप से मजबूत हुए हैं। 49 फीसद अप्रूवल रेटिंग के साथ अमेरिका में उनकी लोकप्रियता आसमान छू रही है। इस नए अवतार में ट्रंप का कद अपनी पार्टी से भी बड़ा हो गया है और राष्ट्रपति पद के दूसरे कार्यकाल के लिए अब वह खुद एजेंडा तय करने की स्थिति में आ गए हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए भारत में भी कमोबेश ऐसी ही परिस्थितियां हैं। अपने-अपने देश में दोनों के व्यक्तिगत करिश्मे और लोकप्रियता को अलग भी रख दिया जाए तो आर्थिक फायदों और दुनिया पर अपनी छाप छोड़ने के दोनों देशों के पास समान अवसर दिखते हैं। ट्रंप का भारत दौरा इस लक्ष्य की ओर मजबूत शुरु आत का जरिया बन सकता है। भारत के लिए एशिया में आर्थिक विकास की धुरी बनने के साथ ही रणनीतिक मोर्चे पर भी ट्रंप सरकार से ज्यादा-से-ज्यादा सहूलियत हासिल करने का यह सबसे मुफीद समय है।
एशिया में भारत के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी चीन की अर्थव्यवस्था इस समय ढलान पर है। ट्रेड वार के बाद चीन के साथ अमेरिका के व्यापारिक संबंध अभी भी सामान्य नहीं हो पाए हैं। इस बीच कोरोना वायरस ने चीन के व्यापारिक हितों पर जबर्दस्त चोट की है। इसके कारण चीन के बंदरगाह बंद पड़े हैं, निर्माण की इकाइयां ठप हैं और दुनिया के हर देश ने चीनी उत्पादों के लिए अपने दरवाजे बंद कर लिए हैं। चुनौतियों में घिरा चीन इस समय वैश्विक व्यापार से लगभग बाहर है और भारत इस खाली जगह को भरने का स्वाभाविक दावेदार दिखता है।

रणनीतिक मोर्चे पर भी चीन को साधे रखने के लिए ट्रंप भारत को जरूरी मानते हैं। ट्रंप के भारत दौरे पर चीन के मद्देनजर दो बड़े रक्षा समझौतों को अंतिम रूप भी दिया गया है। नेवी के लिए 24 एमएच-60 ‘रोमियो ‘सीहॉक मैरीटाइम मल्टी-मिशन हेलिकॉप्टर और सेना के लिए छह एएच-64 ई अपाचे अटैक हेलिकॉप्टरों का 25,000 करोड़ रु पये का सौदा होना है। यह रक्षा डील एक ओर अमेरिका के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद है, तो दूसरी ओर इससे हिंद महासागर में भारत के रणनीतिक हित जुड़े हुए हैं। चीन को हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर में रोकने के लिए ही अमेरिका और भारत ने ऑस्ट्रेलिया और वियतनाम से हाथ मिलाया है। चीन के साथ ही मिडिल ईस्ट के तनाव से भी अमेरिका के लिए भारत की अहमियत बढ़ी है। ईरान और भारत के रिश्ते बरसों पुराने और काफी मजबूत हैं और बाकी दुनिया की तरह अमेरिका भी इस बात को बखूबी जानता है।

ट्रंप का ये दौरा दक्षिण एशिया में पाकिस्तान पर दबाव बनाए रखने के नजरिये से भी खास है। कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। नौ फरवरी को रियाद में इस्लामिक सहयोग संगठन की बैठक में कश्मीर को लेकर सऊदी अरब का रु ख भी पाकिस्तान के खिलाफ गया है। तीन-तीन मुलाकातों के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भले ही ट्रंप से मध्यस्थता की बात कहलवाने में कामयाब हो गए हों, लेकिन भारत सीधे और सख्त शब्दों में इस पेशकश को खारिज कर चुका है। वैसे भी कश्मीर के मुद्दे पर अमेरिका कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के साथ दिखा है। उम्मीद है कि भारत दौरे पर ट्रंप इस मसले पर एक बार फिर अपना पक्ष साफ कर देंगे। महंगाई, अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी के सवालों से घिरे पाकिस्तान के लिए लंबे समय से इधर कुआं, उधर खाई के हालात बने हुए हैं। एफएटीएफ में ब्लैकलिस्टेड होने का खतरा और हाफिज सईद को सजा देने के मामले में भी उसकी जोरदार किरकिरी हो रही है।

बहरहाल, इस समय दुनिया की निगाहें अहमदाबाद पर टिकी हैं। यह देखना वाकई दिलचस्प होगा कि ‘केम छो ट्रंप’ पर ट्रंप का जवाब क्या होता है, क्योंकि इस जवाब से न केवल भारत और अमेरिका, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया, मिडिल ईस्ट के साथ दुनिया का भविष्य जुड़ा है।

उपेन्द्र राय


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