डर के आगे है 2020

Last Updated 04 Jan 2020 01:53:29 AM IST

आशावादी सोच तो यह है कि आज जब ज्यादातर देशों में जबरदस्त मंदी का ‘परचम’ है, तब भी भारत में इसका असर कम है। बेशक, आर्थिक विकास हिचकोले खा रहा हो, मगर हमारे पास इसे दोबारा पटरी पर लाने का हौसला भी है, और हुनर भी। जरूरत बस इस बात की है कि इम्तिहान की इस घड़ी में देश का माहौल न बिगड़े। विज्ञान बताता है कि अच्छी नींद हमें तरोताजा रखने और बेहतर नतीजों के लिए तैयार करती है, जबकि साधारण ज्ञान कहता है कि अच्छी नींद के लिए अच्छा माहौल जरूरी होता है। क्या मंदी को लेकर पसरी नकारात्मकता का हम इसी सोच के साथ सामना नहीं कर सकते कि नींद के इसी मंत्र को जपकर हमारा आर्थिक तंत्र अब न केवल जागने वाला है, बल्कि स्वस्थ आर्थिक माहौल का गवाह भी बनने वाला है


डर के आगे है 2020

2020 का आगाज हो चुका है। बीते साल हमने नाउम्मीदी खत्म होने की उम्मीद को बेचैनी में बदलते देखा था। ये बेचैनी नए साल में नई बरकत में बदलेगी, इसका भरोसा ही हमें 21वीं सदी के तीसरे दशक की मजबूत बुनियाद रखने का हौसला दे सकता है। घटती जीडीपी, औद्योगिक उत्पादन का ऋणात्मक इंडेक्स, चरम पर पहुंच चुकी बेरोजगारी, उद्योगपतियों में कथित डर का माहौल और कमजोर होता कन्ज्यूमर सेंटीमेंट, कहने का मतलब यह कि तरक्की के जिस पहिए को आगे बढ़ना था, वह पिछले साल के ज्यादातर हिस्से में रिवर्स गियर में ही उलझता रहा।  नये साल में सकारात्मक माहौल के लिए अब इस पहिये का नई रफ्तार पकड़ना कोई मजबूरी नहीं, बल्कि जरूरी हो गया है। आशावादी सोच तो यह है कि आज जब ज्यादातर देशों में जबरदस्त मंदी का ‘परचम’ है, तब भी भारत में इसका असर कम है। बेशक, आर्थिक विकास हिचकोले खा रहा हो, मगर हमारे पास इसे दोबारा पटरी पर लाने का हौसला भी है, और हुनर भी। जरूरत बस इस बात की है कि इम्तिहान की इस घड़ी में देश का माहौल न बिगड़े। विज्ञान बताता है कि अच्छी नींद हमें तरोताजा रखने और बेहतर नतीजों के लिए तैयार करती है, जबकि साधारण ज्ञान कहता है कि अच्छी नींद के लिए अच्छा माहौल जरूरी होता है। क्या मंदी को लेकर पसरी नकारात्मकता का हम इसी सोच के साथ सामना नहीं कर सकते कि नींद के इसी मंत्र को जपकर हमारा आर्थिक तंत्र अब न केवल जागने वाला है, बल्कि स्वस्थ आर्थिक माहौल का गवाह भी बनने वाला है। लेकिन उम्मीद के इस माहौल में भी दो ऐसी बड़ी चिंताएं हैं, जिन्हें लंबे समय तक टाला नहीं जा सकता। एक डॉ. मनमोहन सिंह की चिंता जिसे उन्होंने बीते साल नवम्बर के आखिरी हफ्ते में सार्वजनिक किया था। नेशनल इकॉनोमी कॉन्क्लेव में उन्होंने कहा था कि मौजूदा दौर में समाज में डर का माहौल है, जिसे आत्मविास में बदलने की जरूरत है। दूसरे शब्दों में यही चिंता देश के नामचीन उद्योगपति राहुल बजाज की जुबां से बयां हुई है। राहुल बजाज ने तो देश के गृह मंत्री से सीधे तौर पर कहा कि उद्योग जगत के लोग मौजूदा सरकार से डरते हैं। जब यूपीए-2 की सरकार थी, तो वो किसी की भी आलोचना कर सकते थे, लेकिन आज के माहौल में उन्हें भरोसा नहीं है कि सरकार खुले तौर पर अपनी आलोचना पसंद करेगी।

आरबीआई की सतर्क टिप्पणी
देश की सेहत को लेकर इसी तरह की सतर्क टिप्पणी रिजर्व बैंक की हालिया रिपोर्ट में भी दिखती है। रिजर्व बैंक की दिसम्बर की रिपोर्ट बताती है कि 2019-20 में आर्थिक विकास की दर दयनीय रूप से 5 फीसद रहने वाली है, जो अप्रैल के उसके ही अनुमान 7.2 फीसद से काफी कम है। 2019 के सितम्बर में इंडियन इंडस्ट्रियल आउटपुट बीते 8 साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया। लेकिन लगता है कि यह काफी नहीं था क्योंकि अक्टूबर में तो यह आंकड़ा -4.3 फीसद दर्ज किया गया।

चिंता का एक पहलू बेरोजगारी भी है। केंद्र सरकार का पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) कहता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्क फोर्स में नये लोगों के शामिल होने की दर कम हुई है। ग्रामीण महिलाएं इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुई हैं। 2004-05 में वर्क फोर्स में इनकी हिस्सेदारी 58 फीसद थी,जो 2011-12 में गिरकर 15 फीसद हुई और फिर 2017-18 आते-आते ऋणात्मक 5 फीसद हो गई। 2011-12 और 2017-18 के बीच के छह साल में ही 62 लाख लोगों की नौकरियां चली गई यानी अब समस्या नौकरी पाने से ज्यादा नौकरी बचाने की हो गई है। उपभोक्ताओं और अर्थव्यवस्था का रिश्ता भी डांवाडोल दिख रहा है, जिसके असर से उद्योगपति की सोच भी प्रभावित हो रही है। कन्ज्यूमर इंडेक्स का हर हाल में 100 से ऊपर रहना जरूरी माना जाता है, लेकिन बीते 6 साल में यह 89.9 के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है। रिजर्व बैंक के नवम्बर के सर्वे में कन्ज्यूमर सेंटीमेंट इंडेक्स (सीएसआई) गिरकर 85.7 रह गया जो 2011 के बाद का न्यूनतम स्तर है।

पुरानी चुनौतियां ‘बेताल’ की तरह नये साल की पीठ पर चढ़ी हुई है, तो नई संभावनाएं भी कई सवालों  के जवाब बनकर सामने आई हैं। नाउम्मीदी के बीच उम्मीद की एक किरण तो भारत के शेयर बाजार हैं, जहां बीते साल करीब 15 फीसद की तेजी दर्ज हुई। साल के आखिरी पखवाड़े में सेंसेक्स 41,809.96 के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। उम्मीद है कि बाजार का यह सेंटीमेंट 2020 में और तेजी पकड़कर 50 हजार के स्तर को भी पार कर सकता है।

ऑटो सेक्टर बनेगा एक्सीलेटर
साल 2019 में जिस ऑटो सेक्टर को अर्थव्यवस्था की रफ्तार थामने वाला ब्रेक बताया गया, उसे ही 2020 में इकोनॉमी का एक्सीलेटर बताया जा रहा है। केंद्र सरकार का इन्सेन्टिव के ऐलान और नकदी संकट को हल करने की पहल का ऑटो सेक्टर को फायदा मिलने वाला है। इलेक्ट्रिक गाड़ियों की खरीद को लोन चुकाने में ब्याज पर 1.5 लाख रु पये की अतिरिक्त टैक्स योग्य आमदनी में छूट का भी फायदा मिलेगा। सरकार का बड़े पैमाने पर वाहन खरीद का फैसला और व्यावसायिक वाहनों में नई मांग निकलने से ऑटो सेक्टर में अच्छा माहौल बनता दिख रहा है।

बैंकों में एनपीए अब भी बड़ी समस्या है, हालांकि इससे निपटने में आंशिक सफलता भी मिली है। एक तरफ सरकार ने ऋण लागत कम करने की नीति लागू की है, वहीं इस बात का भी ध्यान रखा जा रहा है कि इससे ऋण बांटने की प्रक्रिया भी प्रभावित न हो। फिलहाल, बैंकों के सामने 16 कंपनियों के 2.4 ट्रिलियन बैड लोन को रिकवर करने की चुनौती है। इसके इलाज के लिए केंद्र  सरकार ने बैंकों में जो 70 हजार करोड़ की रकम लगाई है, उसके नतीजे इस साल देखने को मिल सकते हैं।

आर्थिक मोर्चे पर गुड न्यूज सरहद पार से भी आ सकती है। दुनिया के दूसरे बाजारों की तरह भारत भी अमेरिका और चीन के ट्रेड वार का शिकार हुआ। हालांकि सरकार की ओर से कॉरपोरेट टैक्स घटाकर इस ट्रेड वार का फायदा लेने की कोशिश भी हुई। शुरु आती तौर पर तो शेयर बाजार ने उछल-उछल कर सरकार की इस पहल का स्वागत किया, मगर जल्द ही यह मिश्रित नतीजे में बदल गया। अब उम्मीद की जा रही है कि उस पहल से पूंजी निवेश  और निर्यात में बढ़ोतरी होगी जिसका फायदा 2020 में देखने को मिलेगा।

पिछले वित्तीय वर्ष में देश में 9.56 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का रिजर्व था। इसमें से 1.76 लाख करोड़ रु पये केंद्र सरकार को दे दिए गए। राहत की बात यह है कि इसके बावजूद देश के हाथ में अब भी विपरीत परिस्थितियों से निपटने के लिए मोटी रकम है। इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था के पास मंदी की मार झेलने का माद्दा भी है। भारत अगर इस दौर को पार कर लेता है, तो 7 से 8 फीसद विकास की गति वाली रफ्तार कोई अजूबा नहीं रह जाएगी।

रीयल एस्टेट के सुधरेंगे हालात

रीयल एस्टेट सेक्टर के लिए भी यह साल बेहतरीन बताया जा रहा है। रीयल सेक्टर का देश की जीडीपी में अभी 6 से 8 फीसद योगदान है। माना जा रहा है कि नये साल में यह बढ़कर 10 से 12 फीसद तक पहुंच सकता है। दिल्ली-एनसीआर में रीयल सेक्टर को डूबने से बचाने के लिए केंद्र सरकार हजारों करोड़ की मदद का पैकेज लेकर सामने आई है।
एनसीआर में पीएम आवास योजना के तहत सस्ते आवासीय प्रोजेक्ट में अधूरे पड़े करीब 50 लाख घर बनाने के लिए नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन का आगे आना बड़ी पहल है, जिसका असर इस साल दिख सकता है। अगर कॉरपोरेशन योजना के 50 फीसद प्रोजेक्ट्स भी अपने हाथ में ले ले तो बड़े पैमाने पर एलआईजी और ईडब्ल्यूएस प्रोजेक्ट्स पूरे होंगे और रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।



हमेशा की तरह कृषि की स्थिति मौसम पर ही निर्भर रहने वाली है, और इसमें बहुत अधिक सुधार की उम्मीद नहीं दिखती। फिर भी मंदी के दौर में कृषि ने जो योगदान दिया है, उससे उम्मीद बरकरार है। सरकार ने किसानों को आर्थिक मदद देकर उनका मनोबल बढ़ाने की कोशिश की है, जिसका सकारात्मक असर देखने को मिल सकता है।

एक क्षेत्र ऐसा भी है, जिससे जुड़ी खबर भारतीय अर्थव्यवस्था के लिहाज से बेशक, ज्यादा महत्त्वपूर्ण न हो, लेकिन उपलब्धि के लिहाज से खासी अहम है। भारत इस साल चंद्रयान-3 की सफलता के लिए काम करेगा जो अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में देश की पहचान को नया आयाम देने का काम करेगा।

इस सबके बीच अगर सरकार विज्ञान, रक्षा, सामाजिक और कॉरपोरेट क्षेत्र में निवेशकों की उत्सुकता बनाए रखने में सफल रहती है, तो 2019 के ‘टेस्ट’ से गुजरने के बाद 2020 में भारतीय अर्थव्यवस्था भी 20-20 क्रिकेट की रफ्तार से आगे बढ़ सकती है।

उपेन्द्र राय


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