भारतवंशियों के आए अच्छे दिन!

Last Updated 15 Dec 2019 01:07:56 AM IST

भारत में लोग भले ही अच्छे दिन का इंतजार कर रहे हों, लेकिन दुनिया के बाकी हिस्सों में पिछले कुछ वर्षों से भारतवंशियों के दिन जरूर अच्छे चल रहे हैं।


भारतवंशियों के आए अच्छे दिन!

ताजातरीन खुशखबरी ब्रिटेन से आई है, जहां के आम चुनाव में भारतीय मूल के 15 सांसद चुनाव जीतने में कामयाब हुए हैं। पिछली संसद के सदस्य रहे भारतीय मूल के सभी 12 उम्मीदवार दोबारा जीते हैं, जबकि तीन भारतवंशियों ने पहली बार जीत हासिल की है।

ब्रिटेन की संसद हाउस ऑफ कॉमन्स में कुल सदस्य 650 हैं। इस लिहाज से 15 की संख्या छोटी दिखाई देती है, लेकिन वहां के चुनावी इतिहास में 127 साल में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब भारतवंशी इतनी बड़ी तादाद में वहां की संसद का हिस्सा बनने जा रहे हैं। 1892 में भारत के ग्रैंड ओल्डमैन कहे जाने वाले दादाभाई नौरोजी ब्रिटेन में भारतीय मूल के पहले सांसद बने थे। तब किसने सोचा था कि जिस देश के हुक्मरानों ने भारतीयों को सदियों तक उनके अधिकारों से वंचित रखा, उसी देश की जनता एक दिन उन्हीं भारतीयों के वंशजों को इस तरह अपना भविष्य चुनने का अधिकार सौंपेगी।

भारतीय मूल के लोगों के नजरिये में आया यह बदलाव केवल ब्रिटेन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पिछले कुछ वर्षों में तो इसका विस्तार दुनिया भर में हुआ है। 2014 में लोक सभा चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहली बार संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन को संबोधित करने अमेरिका गए थे। तब से लेकर पिछले पांच साल में दुनिया भी की नजरों में भारत का कद और मान-सम्मान कितना बढ़ चुका है, इस फर्क को केवल हिंदुस्तानी ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में बसे भारतवंशी भी महसूस कर रहे हैं।

ब्रिटेन में भारतवंशियों की तादाद करीब 40 लाख है, लेकिन पहले कभी उन्हें चुनाव में इतना महत्त्व नहीं मिला था। आपको ऐसे कई भारतवंशी मिलेंगे जो इसका पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देते हैं। इनका मानना है कि नरेन्द्र मोदी के दौरों ने इन्हें एकजुट करने का काम किया है, जिससे इनकी ताकत को सभी पार्टियों ने महसूस किया और उन्हें अपने साथ लाने का प्रयास किया।

ब्रिटेन में लगातार दूसरी बार जीत का झंडा गाड़ने वाली कंजरवेटिव पार्टी ने तो अपने घोषणापत्र से लेकर पूरे चुनावी अभियान में भारत और भारतवंशियों को खासी अहमियत दी थी। पार्टी के नेता और दोबारा ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने जा रहे बोरिस जॉनसन ने भारत के लिए खुलकर अपना लगाव दिखाया। लेबर पार्टी से उलट उन्होंने चुनाव के दौरान कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने को भारत का अंदरूनी मामला बताया था। इसके अलावा, बोरिस जॉनसन ने नरेन्द्र मोदी की समय-समय पर न सिर्फ  तारीफ की, बल्कि अपने चुनाव में हिन्दी सामग्री का भी इस्तेमाल किया। वायरल हुए एक वीडियो में बोरिस जॉनसन की तस्वीर नरेन्द्र मोदी के साथ दिखी। वे हिन्दी बोलते दिखे, हिन्दी भाषा में वोट के लिए अपील की गई। हिन्दी गानों पर वोट मांगे गए। इतना ही नहीं, हिन्दू-सिख मतदाताओं को रिझाने के लिए बोरिस जॉनसन मंदिरों और गुरु द्वारों के चक्कर लगाते दिखे। ऐसे ही एक मंदिर के दौरे में उनकी गर्लफ्रेंड कैरी सिमॉन्ड्स साड़ी पहनी नजर आई। इसकी इंग्लैंड में ही नहीं, पूरी दुनिया में चर्चा रही। भारत विरोधी माहौल की कोई गुंजाइश नहीं जैसे बोरिस के बयान और भारत के लिए वीजा नियमों में बदलाव के ऐलान ने भी अपना रंग दिखाया।

विपक्षी लेबर पार्टी को कश्मीर पर भारत विरोधी स्टैंड लेना भारी पड़ गया। जिस देश की कुल 6.5 फीसद जीडीपी में भारतीय समुदाय की दो फीसद भागीदारी हो, वहां भारतीयों को नाराज कर लेबर पार्टी ने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया। भारतीय मूल के समूह ने भारत के साथ खड़े 40 उम्मीदवारों के पक्ष में जोरदार प्रचार कर कंजरवेटिव पार्टी के पक्ष में हवा बना दी। चुनाव जीते कंजरवेटिव पार्टी के एक सांसद ने तो दावा भी किया है कि कश्मीर मुद्दे ने कम-से-कम 10 सीटों पर उनकी जीत तय करने का काम किया है।
बोरिस जॉनसन ने तो अपना चुनावी अभियान ही पीएम मोदी की तर्ज पर लड़ा। नतीजे बता रहे हैं कि नया भारत बनाने के लिए बोरिस जॉनसन ने जिस तरह पीएम की खुलकर तारीफ की, वो उन लाखों भारतवंशियों को खूब रास आई जो मोदी को अपना रोल मॉडल मानते हैं। बोरिस जॉनसन के पहले ब्रिटेन के दो प्रधानमंत्री-डेविड कैमरन और थेरेसा मे भी मोदी मैजिक के लाभार्थी रह चुके हैं।   

उधर, कनाडा में भी प्रधानमंत्री जस्टिन ड्रूडो की सत्ता में वापसी तो हो गई है, लेकिन बहुमत नहीं मिलने से उनकी कुर्सी भी भारतीय मूल के जगमीत सिंह के आसरे है। ट्रूडो की लिबरल पार्टी को 338 सदस्यों वाले सदन में 157 सीटें मिल पाई हैं, जबकि 24 सीटें लेकर जगमीत सिंह की पार्टी न्यू डेमोक्रेटिक किंगमेकर की भूमिका में है। ट्रूडो के नये कैबिनेट में चार भारतवंशियों की मौजूदगी कनाडा में इंडियन डायस्पोरा की ताकत बताती है।

बाजी किस कदर पलट चुकी है, इसकी सबसे बड़ी मिसाल तो अमेरिका में मिलती है। जो राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पूरी दुनिया में अपनी दादागीरी के लिए चर्चित रहे हैं, वह भी मोदी मैजिक की चमक और भारतवंशियों की बढ़ती धमक के सामने नतमस्तक होते हैं। सितम्बर में ह्यूस्टन के हाउडी मोदी कार्यक्रम को ट्रंप ने जिस तरह अपना चुनावी अभियान बनाने की कोशिश की, वह दिखाता है कि भारत और भारतीयों की ताकत अब अमेरिकी चुनाव तक को प्रभावित करने की क्षमता रखती है।

व्हाइट हाउस में भारतवंशियों की मौजूदगी में दीपावली का जश्न अब नियमित आयोजन बन चुका है। इसी व्हाइट हाउस में दुनिया ने ट्रंप से पहले बराक ओबामा को भी नरेन्द्र मोदी का स्वागत गुजराती में ‘मजामा छो’ बोलकर करते देखा है। दुनिया के दूसरे नेताओं के साथ भी नरेन्द्र मोदी ने जो अनौपचारिक तालमेल बनाया है, उससे हुई ब्रांडिंग ने भारत के बारे में वैश्विक नजरिया बदल दिया है।

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी ने जितने देशों के दौरे किए हैं, वहां उनके कार्यक्रमों में भारतीय मूल के लोगों की सभाएं या मुलाकात अहम हिस्सा रही हैं। इस पहल से न केवल आपस में बंटे भारतवंशी एकजुट हुए हैं, बल्कि उनकी नई पीढ़ी भी भावनात्मक रूप से भारत के करीब आई है। साल 2014 में नरेन्द्र मोदी के अमेरिकी दौरे में जब न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वायर और मेडिसन स्क्वायर गार्डन में भारत की जयकार के नारे लगे तो इसकी गूंज व्हाइट हाउस तक सुनाई दी थी। इसलिए इसमें कोई दो राय नहीं कि इस बदलाव ने दुनिया को भारत की बढ़ती ताकत का अहसास करवाया है।

आज अलग-अलग देशों में बसे भारतवंशियों की तादाद 1.75 करोड़ है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है। केवल अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन ही नहीं, मिड्ल ईस्ट, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका में भी भारतीय मूल के लोग बड़ी संख्या में मिलते हैं, जहां इनका खासा दबदबा है। सिंगापुर के राष्ट्रपति, न्यूजीलैंड के गवर्नर जनरल और मॉरीशस व ट्रिनिडाड टोबैगो के तो कई प्रधानमंत्री भारतीय मूल के रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों का बदला माहौल इसी सिलसिले की नई कड़ी है।

उपेन्द्र राय


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