विदेश नीति : भारत-रूस संबंध

Last Updated 08 Oct 2025 03:49:59 PM IST

स्वतंत्र भारत के विदेश नीति के जनक पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने गुटनिरपेक्षता को भारतीय विदेश नीति के एक मजबूत स्तम्भ के रूप में स्थापित किया।


तत्कालीन गुटनिरपेक्षता को दोनो ध्रुवों से समान दूरी के रूप में व्याख्यायित किया गया जबकि कालांतर में गुटनिरपेक्षता से तात्पर्य भारतीय हितों की रक्षा के लिए दोनो ध्रुवों से समान नजदीकी में हैं। तत्कालीन नव स्वतंत्र भारत के पास दोनो ध्रुवों में बटे विश्व में तीसरे विश्व के नेता के रूप में स्थापित होने का सुनहरा अवसर था और इस अवसर में भारत को स्थापित करने में गुटनिरपेक्षताश् ने मजबूत स्तंम्भ का कार्य किया। गुटनिरपेक्षता की इस नीति के प्रारंभिक दिनों में ही भारत के विदेश नीति की नींव को मजबूत करने में रूस (तत्कालीन सोवियत रूस) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

भारत-रूस (तत्कालीन सोवियत रूस) संबंधों की शुरूआत स्वतंत्रता के तुरंत बाद पण्डित विजय लक्ष्मी को प्रथम भारतीय राजदूत बनाकर रूस भेजने से किया गया। पण्डित विजय लक्ष्मी को नियुक्ति ही रूस के साथ संबंधों की महत्व को बयान करने के लिए काफी है। हालांकि स्टालिन के प्रारंभिक तल्खी के पश्चात डा. सर्वपल्ली राधा कृष्णन के राजदूत नियुक्त होने पर 1949 में सोवियत संघ से औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित हुआ। सोवियत संघ ने गुटनिरपेक्ष नीति को समर्थन दिया और भारत की स्वयत्त विदेश नीति की सराहना की।

1950 के दशक में भारत की मिश्रित अर्थव्यवस्था में सोवियत संघ की प्रेरणा व सहयोग से  पंचवर्षीय योजनाओं का प्रावधान किया गया। सोवियत संघ ने भारी उद्योग, विज्ञान, उर्जा तकनीकी क्षेत्रों में सहायता प्रदान की। 1955 में स्थापित भिलाई इस्पात संयंत्र इसका महत्वपूर्ण उदाहरण है। सोवियत संघ ने रक्षा सहयोग, तकनीकी शिक्षा, वैज्ञानिक अनुसंधान और अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की मदद की।

1955 में सोवियत नेता निकिता और बुल्गानिक ने भारत का दौरा किया तथा इसी वर्ष नेहरू ने भी सोवियत संघ की यात्रा की। यह दोनो देशों के बीच विश्वास और सहयोग की भावना को मजबूत किया। बैिक मंचो पर कश्मीर मुद्दे को लेकर कई बार सोवियत संघ ने संयुक्त राष्ट्र में भारत का समर्थन किया जबकि भारत ने भी कई मौको पर पश्चिमी दबाव के बावजूद सोवियत संघ की नीतियों के विरोध में मतदान नहीं किया, इस प्रकार गुटनिरपेक्ष होते हुए भी दोनो देशों के बीच सामंजस्य बना रहा।

सोवियत संघ संकट के दौर में भारत के साथ समर्पण भाव में खड़ा रहा। 1962 के भारत-चीन यूद्ध के दौरान भारत को कुटनीतिक समर्थन किया तथा हथियारों की आपूर्ति की। सोवियत संघ ने 21 जैसा लड़ाई विमान दिया तथा भारत के सैन्य अधिकारीयों को प्रशिक्षित किया। ऐसे ही 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद सोवियत संघ ने ताशकंद समझौते में (1966) में मध्यस्थ की भूमिका निभाई। 1971 में भारत और सोवियत संघ के बीच श्भारत-सोवियत मैत्री संधि (Indo Soviet Treaty of Peace, Friendship and Cooperation) पर हस्ताक्षर हुए। यह संधि 20 वर्षो के लिए थी और इसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करना था।

भारी उद्योग, इस्पात संयंत्र, बिजली परियोजनाएं, तेल रिफाइनरी और मशीन निर्माण जैसे क्षेत्रों में सोवियत तकनीक और सहायता से भारत ने कई कारखानों की स्थापना की, भिलाई स्टील प्लांट, राउरकेला और बोकारो स्टील प्लांट जैसे प्रतिष्ठान सोवियत सहायता से स्थपित किए गए। सोवियत संघ ने भारत को मिग-21 लड़ाकू विमान तकनीक ट्रांसफर के साथ दी, जो भारत में HAL द्वारा बनाए गए। भारत को T-55 और T-72 टैंक, सुखोई विमान, सतह INS Virat जैसे एयरक्राफ्ट कैरियरों के संचालन के लिए तकनीकी मदद दी गई। भारत ने सोवियत संघ से Mig-23, Mig-27 और Mig-29 जैसे उन्नत लड़ाकू विमान प्राप्त किए। पनडृब्बी संचालन और नौसेना क्षमताओं में सोवियत तकनीक और प्रशिक्षण का बड़ा यागदान रहा।

आर्थिक, सामरिक व व्यापारिक सहयोग का यह मजबूत रिश्ता सांस्कृतिक सहयोग में भी नए आयाम तक पहुचा। भारतीय फिल्में भी सोवियत संघ में काफी लोकप्रिय हुई- जैसे आवारा और श्री 420। साहित्य, शिक्षा और भाषा के क्षेत्र में भी सहयोग हुआ- कई विविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाने लगी और रूसी भाषा भारत में लोकप्रिय हुई। शीतयोद्धत्तर विश्व में सोवियत संघ विघटन (1991) के बाद भारत को अपने पुराने रणनीतिक साझेदार की जगह नए रूस के साथ संबंधों की फिर से परिभाषित करना पड़ा। 1991 में दोस्ताना संबंधों और सहयोग की संधि पर हस्ताक्षर हुए। यह संधि द्विपक्षीय सहयोग का नया आधार बनी।

भारत ने रूस को सबसे पसंदीदा राष्ट्र का दर्जा दिया। 2000 में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा के दौरान श्रणनीतिक साझेदारी की घोषण हुई। भारत ने रूस से सुखोई-30, मिग-29, टी-90 टैंक और ब््रह्मोस मिसाईल प्रणाली प्राप्त की। रूस ने भारत में कई रिएक्टर बनाने में मदद की, कुडनकुलम परमाणु संयंत्र रूस की मदद से बना। भारत ने रूस में तेल और गैस परियोजनाओं में निवेश किया (जैसे कि सखालिन-1 प्रोजेक्ट)। 2010 में द्विपक्षीय संबंधों को विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी  का दर्जा दिया गया।

वर्ष 2014 के बाद देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच व्यक्तिगत मित्रवत संबंधों ने द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत किया है। दोनों नेता नियमित रूप से द्विपक्षीय वार्ताएं, शिखर सम्मेलन और ब्रिक्स, एससीओ जैसे मंचों पर मिलते रहे है। रूस ने भारत को एस-400 मिसाईल रक्षा प्रणाली देने का समझौता किया, जिससे पश्चिमी देशों विशेषकर अमेरिका की नाराजगी भी हुई। एस-400 मिसाईल रक्षा प्रणाली की डील 2018 में की गई थी, जिसकी डिलीवरी 2021 में शुरू हुई।

यह डील भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का संकेत भी है, क्योंकि अमेरिका के प्रतिबंधों के बावजूद यह समझौता हुआ। भारत ने मेक इन इंडिया के तहत रूस के साथ संयुक्त रूप से हथियारों को निर्माण पर बल दिया है- जैसे कि AK-203 राइफल। ब्रह्मस मिसाईल, सुखोई-30 MKI और T-90 टैंकों जैसे संयुक्त रक्षा कार्यक्रम पहले से चलते आ रहे हैं, और इन्हें और बढ़ाया गया है। संयुक्त सैन्य अभ्यास (जैसे इंद्र अभ्यास) नियमित रूप से होते रहे। दोनो देशों ने 2025 तक 30 बिलियन डॉलर द्विपक्षीय व्यपार और 50 बिलियन डॉलर निवेश का लक्ष्य रखा है। रूपया-रूबल व्यपार (डॉलर के बिना व्यपार) को लेकर बात-चीत हो रही है, खासकर यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण।

भारत और रूस ने ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम में भी भागीदारी की और भारत ने रूस के सुदूर पूर्व में निवेश की प्रतिबद्धता जताई, एक लाईन ऑफ क्रेडिट (1 बिलियन डॉलर) देने की घोषणा की थी। भारत और रूस ब्रिक्स, एससीओ और जी20 जैसे मंचों पर सहयोग करते रहे है। रूस ने भारत के यूएनएस का स्थायी सदस्य बनने के प्रयासों का समर्थन किया है। हालांकि भारत-रूस के संबधों में कुछ बहुत प्रभावशाली चुनौतियॉ भी है जो कि समय समय पर समस्याए उत्पन्न करती है। भविष्य में भी यह साझेदारी आपसी हितों, विश्वास और सहयोग पर आाधारित रहकर और आर्थिक सम्पóता की ओर अनबरत रूप से बढ़ते रहने की संभावना रखती है।

अमित सोमवंशी


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment