टैरिफ युद्ध : अमेरिका को पड़ सकता है भारी
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के साथ ही दुनिया के लगभग समस्त देशों के साथ ट्रंप प्रशासन द्वारा टैरिफ युद्ध की घोषणा कर दी गई है।
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अमेरिका में विभिन्न देशों से होने वाले आयात पर भारी भरकम टैरिफ लगाकर एवं टैरिफ की दरों में बार-बार परिवर्तन कर तथा इन टैरिफ की दरों को लागू करने की तिथि में परिवर्तन कर ट्रंप प्रशासन टैरिफ युद्ध को किस दिशा में ले जाना चाह रहा है, इस संबंध में अब स्पष्टता का पूर्णत: अभाव दिखाई देने लगा है।
ट्रंप द्वारा कई बार घोषणा की गई है कि भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौता शीघ्र ही संपन्न किया जा रहा है। अमेरिका एवं भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने के उद्देश्य से भारतीय प्रतिनिधिमंडल अमेरिका में गया था तथा निर्धारित समय सीमा से अधिक समय तक वहां रहा एवं ऐसा कहा जा रहा है कि द्विपक्षीय समझौते के अंतिम रूप को अमेरिकी राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जा चुका है परंतु अभी तक अमेरिका द्वारा अमेरिका एवं भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते की घोषणा नहीं की जा रही है।
हालांकि, इस बीच अमेरिका द्वारा कई देशों के विरुद्ध टैरिफ की दरों को बढ़ा दिया गया है। विशेष रूप से जापान एवं दक्षिणी कोरिया से अमेरिका को आयात होने वाली वस्तुओं पर 1 अगस्त, 2025 से 25 प्रतिशत की दर से टैरिफ लगाया जाएगा। इसी प्रकार, 12 अन्य देशों से अमेरिका में होने वाले आयात पर भी टैरिफ की बढ़ी हुई नई दरें लागू किए जाने का प्रस्ताव किया गया है।
इस संबंध में अमेरिकी राष्ट्रपति ने इन 14 देशों के राष्ट्राध्यक्षों को पत्र भी लिखा है। इस सूची में भारत का नाम शामिल नहीं है। पूर्व में अमेरिका द्वारा चीन से आयात होने वाले उत्पादों पर भारी-भरकम टैरिफ की घोषणा की गई थी। चीन ने भी अमेरिका से होने वाली आयातित वस्तुओं पर लगभग उसी दर पर टैरिफ लागू करने की घोषणा कर दी थी। चीन ने विभिन्न देशों को दुर्लभ खनिज पदाथरे (रेयर अर्थ मिनरल) के निर्यात पर रोक लगा दी थी।
अमेरिका में चीन के इस निर्णय का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था जिसके दबाव में अमेरिका ने चीन के साथ व्यापार समझौता करते हुए चीन से आयात होने वाली विभिन्न वस्तुओं पर टैरिफ की दरों को तुरंत कम कर दिया। अमेरिका द्वारा इसी प्रकार का एक द्विपक्षीय व्यापार समझौता ब्रिटेन के साथ भी संपन्न किया जा चुका है।
पूर्व में, ट्रंप प्रशासन ने 90 दिवस की अवधि में 90 देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते करने की बात कही थी तथा 90 दिवस की समयावधि 9 जुलाई को समाप्त होने के पश्चात भी केवल दो देशों ब्रिटेन एवं चीन के साथ ही द्विपक्षीय व्यापार समझौता संपन्न हो सका है। भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते को अंतिम रूप दिया जा चुका है परंतु इसकी अभी तक घोषणा नहीं की गई है।
द्विपक्षीय समझौते के लिए शेष देशों पर दबाव बनाने की दृष्टि से ही इन देशों से अमेरिका को होने वाले आयात पर टैरिफ की दरों को एक बार पुन: बढ़ाए जाने का प्रस्ताव है, और इन बढ़ी हुई दरों को 1 अगस्त, 2025 से लागू करने की योजना बनाई गई है। वैश्विक स्तर पर अमेरिका द्वारा छेड़े गए इस टैरिफ युद्ध से निपटने के लिए भारत एक विशेष रणनीति के अंतर्गत कार्य करता हुआ दिखाई दे रहा है। भारत ने वैश्विक मंच पर न तो अमेरिका के टैरिफ की दरों में वृद्धि संबंधी निर्णयों की आलोचना की है, और न ही भारत में अमेरिका से आयातित वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी है। बल्कि, भारत ने तो अमेरिका से आयात होने वाली कुछ विशेष वस्तुओं पर टैरिफ को कम कर दिया है।
दरअसल, भारत इस समय विकास के उस चक्र में पहुंच गया है, जहां पर भारत को अपना पूरा ध्यान आर्थिक क्षेत्र को आगे बढ़ाने पर केंद्रित करने की आवश्यकता है। भारत को यदि वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में शामिल करना है, तो आगे आने वाले लगभग 20 वर्षों तक लगातार लगभग 8 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर को बनाए रखना अति आवश्यक है। इसलिए भारत एक विशेष रणनीति के अंतर्गत अपने आर्थिक विकास पर अपना ध्यान केंद्रित करता दिखाई दे रहा है। भारत के रूस के साथ भी अच्छे संबंध हैं, तो अमेरिका से भी अपने संबंधों को सामान्य बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील है।
हाल में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घाना, नामीबिया, अज्रेटीना, ब्राजील, त्रिनिदाद एवं टोबैगो जैसे देशों की यात्रा इस उद्देश्य से संपन्न की है ताकि दुर्लभ खनिज पदाथरे की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। इन देशों में दुर्लभ खनिज पदार्थ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। भारत में 140 करोड़ नागरिकों का विशाल बाजार उपलब्ध है, जिसे अमेरिका एवं चीन सहित विश्व का कोई भी देश नजरअंदाज नहीं कर सकता है। यदि अमेरिका एवं चीन भारत के साथ अपने संबंधों को किसी भी कारण से बिगाड़ने का प्रयास करते हैं, तो लंबी अवधि में इसका नुकसान इन्हीं का है।
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