सामयिक : ’ऑपरेशन सिंदूर‘ और बाकी देश
भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का इतिहास लंबा और जटिल रहा है। दोनों देशों के बीच कश्मीर को लेकर दशकों से चला आ रहा विवाद समय-समय पर हिंसक संघर्ष का कारण बनता रहा है।
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अप्रैल, 2025 में पहलगाम में आतंकी हमले के बाद दोनों देशों के बीच तनाव एक बार फिर चरम पर पहुंच गया। इस हमले में 26 पर्यटकों की जान गई जिसके लिए भारत ने पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया। इसके जवाब में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ किया जिसमें पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में आतंकी ठिकानों पर हवाई हमले किए गए। इस संदर्भ में अमेरिका के जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में युद्ध मामलों की विशेषज्ञ प्रो. क्रिस्टीन फेयर ने एक टीवी साक्षात्कार में संघर्ष के कारणों, परिणामों और भविष्य की संभावनाओं पर चर्चा की।
प्रो. फेयर ने बताया कि पाकिस्तान की सेना और उसका खुफिया तंत्र लंबे समय से आतंकी संगठनों जैसे लश्कर-ए-तैयबा आदि को समर्थन देता रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि ये संगठन न केवल कश्मीर में सक्रिय हैं, बल्कि पाकिस्तान के आंतरिक सुरक्षा परिदृश्य में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनके अनुसार, पाकिस्तानी सेना इन संगठनों को ‘रणनीतिक संपत्ति’ के रूप में देखती है, जो भारत के खिलाफ छद्म युद्ध छेड़ने में उपयोगी हैं। पहलगाम हमले के जवाब में भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया जिसमें भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान में नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया।
इस ऑपरेशन को भारत ने अपनी आत्मरक्षा का अधिकार बताया जबकि पाकिस्तान ने अपनी संप्रभुता पर हमला करार दिया। प्रो. फेयर ने इस ऑपरेशन को भारत की बदलती रणनीति का हिस्सा बताया। कहा कि भारत अब पहले की तरह केवल कूटनीतिक जवाब तक सीमित नहीं रहा, बल्कि सैन्य कार्रवाई के जरिए आतंकवाद के खिलाफ कड़ा संदेश भी देना जानता है। हालांकि, उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि ऑपरेशन सिंदूर जैसे कदम आतंकवाद को पूरी तरह खत्म नहीं कर सकते क्योंकि पाकिस्तान की सेना के लिए भारत के खिलाफ संघर्ष ‘अस्तित्वगत’ है। यह उनके वजूद का सवाल है।
भारत का डर दिखा-दिखा कर ही पाकिस्तान अनेक देशों से आर्थिक मदद मांगता रहा है। प्रो. फेयर ने पाकिस्तानी सेना की भारत के प्रति कार्यशैली पर किताब भी लिखी है। इस साक्षात्कार में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पाकिस्तान की सेना अपने देश की नीति-निर्माण प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाती है। कहा कि पाकिस्तानी सेना भारत को अपने अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा मानती है, और इस धारणा को बनाए रखने के लिए आतंकी संगठनों का इस्तेमाल करती है। प्रो. फेयर के अनुसार, उनकी यह नीति न केवल भारत के लिए खतरा है, बल्कि पाकिस्तान के आंतरिक स्थायित्व को भी कमजोर करती है। उन्होंने यह भी बताया कि पाकिस्तानी सेना के लिए कश्मीर विवाद केवल एक क्षेत्रीय मुद्दा भर नहीं है, बल्कि उनकी वैचारिक और रणनीतिक पहचान का भी हिस्सा है।
प्रो. फेयर ने कहा कि पाकिस्तान की सेना तब तक आतंकवाद को समर्थन देती रहेगी, जब तक कि उसे भारत के खिलाफ अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका मिलता रहेगा। भारत की हालिया सैन्य कार्रवाइयों जैसे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिया है कि भारत अब पहले की तरह निष्क्रिय नहीं रहेगा। साक्षात्कार में प्रोफेसर फेयर ने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल की रणनीति की भी चर्चा की। उन्होंने डोवाल को ऐसे रणनीतिकार के रूप में वर्णित किया जो भारत की सुरक्षा नीति को आक्रामक और सक्रिय दिशा में ले जा रहे हैं। प्रो. फेयर ने कहा कि डोवाल की ‘सक्रिय रक्षा’ की नीति ने भारत को पाकिस्तान के खिलाफ अधिक प्रभावी बनाया है।
ऑपरेशन सिंदूर इस नीति का उदाहरण है, जिसमें भारत ने न केवल आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया, बल्कि पाकिस्तान को कूटनीतिक और सैन्य रूप से भी जवाब दिया। हालांकि, प्रो. फेयर ने यह भी चेतावनी दी कि आक्रामकता के भी जोखिम हैं। उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान, दोनों ही परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं, और किसी भी सैन्य टकराव का बढ़ना दक्षिण एशिया में व्यापक विनाश का कारण बन सकता है। उनके अनुसार, भारत को अपनी रणनीति में संतुलन बनाए रखना होगा ताकि वह आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपना सके लेकिन साथ ही स्थिति को पूर्ण युद्ध की ओर बढ़ने से भी रोक सके।
10 मई, 2025 को भारत और पाकिस्तान ने युद्धविराम की घोषणा की, जिसे अमेरिका की मध्यस्थता से संभव माना गया। हालांकि, भारत ने इसे ‘द्विपक्षीय समझौता’ बताया और अमेरिकी हस्तक्षेप को कमतर करने की कोशिश की। प्रो. फेयर ने इस युद्धविराम को अस्थायी करार दिया। उन्होंने कहा कि जब तक पाकिस्तानी सेना अपनी नीतियों में बदलाव नहीं करती, तब तक इस तरह के तनाव बार-बार सामने आएंगे। उन्होंने यह भी भविष्यवाणी की कि पाकिस्तान भविष्य में फिर से भारत के खिलाफ आतंकी हमले कर सकता है क्योंकि यह उसकी रणनीति का हिस्सा है। प्रो. फेयर के अनुसार अंतरराष्ट्रीय समुदाय विशेष रूप से अमेरिका इस क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए महती भूमिका निभा सकता है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका की मध्यस्थता हमेशा दोनों देशों को स्वीकार्य नहीं होती खासकर भारत के लिए जो कश्मीर को अपना आंतरिक मामला मानता है।
प्रो. क्रिस्टीन फेयर का टीवी साक्षात्कार भारत-पाकिस्तान संघर्ष की जटिलताओं को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है। उनके विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि यह संघर्ष केवल दो देशों के बीच का विवाद नहीं है, बल्कि इसके गहरे ऐतिहासिक, वैचारिक और रणनीतिक आयाम हैं। पाकिस्तानी सेना की आतंकवाद समर्थक नीतियां और भारत की आक्रामक जवाबी रणनीति इस क्षेत्र में स्थायी शांति की राह में बड़ी बाधाएं हैं। हालांकि, प्रो. फेयर का यह भी मानना है कि दोनों देशों के बीच संवाद और कूटनीति के रास्ते पूरी तरह बंद नहीं हुए हैं। यदि पाकिस्तान अपनी नीतियों में बदलाव लाता है और भारत संतुलित रु ख अपनाता है, तो भविष्य में तनाव को कम करने की संभावना बनी रह सकती है। लेकिन इसके लिए दोनों पक्षों को न केवल अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करना होगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ सहयोग भी करना होगा।
(लेख में विचार निजी हैं)
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