शहबाज शरीफ पर मेहरबान बाइडन

Last Updated 31 Mar 2024 01:32:30 PM IST

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने कार्यकाल की समाप्ति के पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को एक पत्र लिखा है जिसके बहुत दूरगामी परिणाम होंगे। आमतौर पर यह होता है कि दो देशों के नेताओं के बीच टेलीफोन पर बात होती है।


शहबाज शरीफ पर मेहरबान बाइडन

बाइडन ने यह पत्र लिखकर भारत सहित अन्य क्षेत्रीय देशों को यह संदेश दिया है कि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच नजदीकी रिश्तों का नया दौर शुरू हो रहा है। यह भी गौर करने वाली बात है कि इस पत्र को इस्लामाबाद स्थित अमेरिकी दूतावास ने सार्वजनिक किया है। पत्र में सबसे महत्त्वपूर्ण बातंयह है कि बकौल बाइडन अमेरिका और पाकिस्तान क्षेत्रीय और विश्व मामलों पर ‘राजनीतिक सहयोग’ जारी रखेंगे। यह शब्दावली भारत के लिए चिंता का विषय बन सकती है। यह सब उस समय हो रहा है जब आम चुनाव के पहले अमेरिका भारत को लोकतंत्र का उपदेश दे रहा है।

अमेरिका के रणनीतिक लक्ष्य साफ हैं। वह पाकिस्तान में चीन को बेदखल करना चाहता है तथा ईरान के खिलाफ उसे खड़ा करना चाहता है। यह भी स्पष्ट है कि इमरान खान को सत्ता से हटाने में अमेरिका ने बड़ी भूमिका निभाई है। इमरान की पार्टी के नेताओं के अनुसार अमेरिका शहबाज शरीफ की सरकार को कठपुतली की तरह इस्तेमाल करना चाहता है। अपनी सारी राजनीतिक नादानियों के बावजूद इमरान खान ने पाकिस्तान में स्वतंत्र विदेश नीति पर अमल करने की कोशिश की थी। इसी सिलसिले में वह रूस की यात्रा पर भी गए थे। यही उनकी राजनीतिक पतन का एक कारण बनी। राजनीतिक उथल-पुथल के दौर में पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष आसिम मुनीर और खुफिया एजेंसी आईएसआई प्रमुख ने वाशिंगटन में अमेरिकी अधिकारियों से बातचीत की थी। सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि इसी दौरान पाकिस्तान के भावी राजनीतिक परिदृश्य का लेखा-जोखा लिया होगा।

पिछले कुछ दिनों के दौरान पाकिस्तान में चीन के आर्थिक हितों पर हमले हुए हैं जिनमें इसके प्रशिक्षितकर्मी मारे गए हैं। इसके साथ ही अमेरिका की ओर से यह भी स्पष्ट किया गया है कि वह ईरान-पाकिस्तान-तेल गैस पाइपलाइन के पक्ष में नहीं है। अपनी खस्ता आर्थिक हालात से उबरने के लिए पाकिस्तान को आईएमएफ और र्वल्ड बैंक से कर्ज की दरकार है। अमेरिका के प्रभाव वाली ये वित्तीय संस्थाएं पाकिस्तान को तभी कर्ज देंगी जब वह अमेरिका के रणनीतिक हितों को पूरा करे। फिलहाल, अमेरिका इस बात की सावधानी बरत रहा है कि वह भारत के साथ अपने व्यापक रणनीतिक संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव न पड़ने दे। यही कारण है कि पाकिस्तान में भारत के साथ व्यापारिक संबंध बहाल करने पर चर्चा शुरू हो गई है। भारत में इस समय चुनाव का मौसम है, इसलिए ुउपमहाद्वीप में बदलते हुए शक्ति समीकरण पर खास तवज्जो नहीं दी जाएगी। चुनाव के बाद नई सरकार अपना रवैया और प्राथमिकता तय करेगी।

इस बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यूक्रेन के विदेश मंत्री कुलेबा की भारत यात्रा को बहुत चतुराई के साथ हैंडल किया। पहले यह आशंका व्यक्त की जा रही थी कि रूस को कुलेबा की भारत यात्रा नागवार गुजरेगी। इस यात्रा के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने जो विज्ञप्ति जारी की उसमें रूस का उल्लेख तक नहीं है।

अगले कुछ महीनों के दौरान पश्चिमी एशिया के संकट का केंद्रबिंदु ईरान बनेगा। गाजा की तबाही के दौर में ईरान अमेरिका के राडार में धुंधला पड़ गया था। अब अमेरिका और इस्रइल को फिर से यह चिंता सता रही है कि ईरान को परमाणु संस्थाएं खुलासा कर रहीं हैं कि ईरान के पास करीब एक दर्जन परमाणु बम बनाने का परिष्कृत यूरेनियम उपलब्ध है। इसमें हर हफ्ते इजाफा भी हो रहा है। यह वह रेडलाइन है जिसे पार करने की अमेरिका इजाजत नहीं देगा।

इस रणनीतिक लक्ष्य को पूरा करने में पाकिस्तान की निर्णायक भूमिका होगी। शिया-सुन्नी मजहबी विभाजन को तूल देकर अमेरिका, सऊदी अरब, कतर, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन जैसे देशों के साथ ईरान विरोधी मोर्चा कायम कर सकता है। हालांकि हाल में ईरान ने रूस और चीन के साथ मिलकर इस क्षेत्र में बड़े पैमाने का नौ-सैनिक अभ्यास किया है। इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आने वाले दिनों में समुद्र में आग लग जाए।

डॉ. दिलीप चौबे


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