वैश्विकी : गाजा को रोटी इस्राइल को बम

Last Updated 10 Mar 2024 01:41:21 PM IST

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपना वर्तमान कार्यकाल समाप्त होने के पहले संसद में वाषिर्क संबोधन दिया जिसमें उन्होंने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी डोनाल्ड ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन को निशाना बनाया।


वैश्विकी : गाजा को रोटी इस्रइल को बम

 ‘स्टेट ऑफ द यूनियन’ संबोधन के जरिये बाइडन घरेलू और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विषय में नीति का खुलासा करते हैं। बाइडन के संबोधन से लगता है कि वह घरेलू राजनीति में विभाजन और प्रतिशोध की भावना को बढ़ावा दे रहे हैं और विदेश के मोच्रे पर युद्ध और संघर्ष को हवा दे रहे हैं। पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने बाइडन के संबोधन को घृणा और द्वेष से ओत-प्रोत बताया। अमर्यादित भाषा का प्रयोग करने पर बाइडन  ट्रंप से भी आगे निकल गए। आगामी राष्ट्रपति चुनाव में बाइडन ट्रंप के आगे लड़खड़ा रहे हैं। संबोधन के जरिये उन्होंने मतदाताओं को आस्त करने की कोशिश की है कि उम्रदराज होने के बावजूद वह देश में लोकतंत्र और वि शांति कायम रखने के प्रति कृतसंकल्प हैं।

विदेश के मोच्रे पर पुतिन अमेरिकी प्रशासन के लिए वि शांति पर सबसे बड़ा खतरा हैं। बाइडन ने उन्हें क्रूर हत्यारा, तानाशाह, युद्ध अपराधी और गुंडा बताया है। ऐसी शब्दावली का प्रयोग संभवत: केवल जर्मन तानाशाह हिटलर के खिलाफ किया गया होगा। बाइडन ने पुतिन की तुलना हिटलर से करते हुए कहा कि ‘पुतिन केवल यूक्रेन तक ही नहीं रुकेंगे बल्कि अपनी आक्रामक कार्रवाई जारी रखेंगे’। अमेरिका यूरोप को रूस से संभावित खतरे के प्रति भयभीत करना चाहता है। इसमें वह सफल होता नजर आ रहा है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने यह गैर-जिम्मेदाराना बयान दिया कि यूक्रेन में फ्रांस के सैनिक भेजे जा सकते हैं, वहीं जर्मनी के सैन्य अधिकारी क्रीमिया के राजनीतिक दृष्टि से महफूज कर्वपुल को नष्ट करने की योजना बना रहे हैं।

यह निश्चित है कि यदि कालासागर में इस पुल को नष्ट किया गया तो राष्ट्रपति पुतिन इसके लिए जिम्मेदार लोगों को सबक सिखाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। यदि इस बात के सबूत मिले कि जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस की खुफिया एजेंसियां ऐसी विध्वंसक कार्रवाई के लिए जिम्मेदार है तो रूस इन देशों को निशाना बना सकता है। राष्ट्रपति पुतिन का हालिया भाषण तीसरे वि युद्ध की आशंका को उजागर कर रहा है।

इस बीच अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने रूस के विरुद्ध प्रतिबंधों को और सख्त बनाना शुरू किया है। इसकी चपेट में भारत और चीन आ सकते हैं। हाल में रूस के विरुद्ध दुष्प्रचार अभियान तेज हो गया है। भारत में सक्रिय रूस विरोधी लॉबी ने यूक्रेन के मोच्रे पर कुछ भारतीयों के फंसने को तूल दिया है। भारतीय युवकों को झांसा देकर अन्य देशों में ले जाने के विरुद्ध कार्रवाई आवश्यक है लेकिन इसे रूस के खिलाफ भावनाएं भड़काने के लिए इस्तेमाल करना अनुचित है।

विदेश मंत्रालय से भी अपेक्षा है कि वह रूस विरोधी दुष्प्रचार के प्रति सतर्क रहे। आश्चर्य की बात है कि एक ओर रूस में भारतीयों के जाने को तूल दिया जा रहा है वहीं इस्रइल में भारतीयों के काम करने को नजरअंदाज किया जा रहा है। इस्रइल में हजारों भारतीय कार्यरत हैं। वहां के जो हालात हैं उनमें यह स्वाभाविक होगा कि कुछ भारतीय सैन्य अभियान में परोक्ष रूप से शमिल हों। यदि ऐसा नहीं भी हो तो उनकी जान-माल को अवश्य खतरा है।

रमजान के महीने में भी गाजा में नरसंहार जारी है। अमेरिका एक ओर आकाश से रोटी गिरा रहा है तो वहीं इस्रइल अमेरिका से मिले बम बरसा रहा है। अमेरिका ने गाजा में भोजन सामग्री और मानवीय सहायता मुहैया कराने के लिए अस्थायी बंदरगाह बनाने की घोषणा की है। हकीकत यह है कि सीनाई क्षेत्र से सड़क मार्ग के जरिये राहत सामग्री आसानी से पहुंचाई जा सकती है। वहां अनेक प्रवेश द्वारों पर मानवीय सहायता सामग्री से लदे सैकड़ों वाहन फंसे हैं। इस्रइली सेना ने गाजा में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दे रही है। अमेरिका एक ओर इस्रइल की इस अमानवीय नीति का समर्थन कर रहा है वहीं आकाश और जल मार्ग से खाद्य सामग्री मुहैया कराने का पाखंड भी रच रहा है।
 

डॉ. दिलीप चौबे


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