मीडिया : उसकी शादी और हमारी खिसियाहट
एक अरबपति के पुत्र के ‘प्रीवेडिंग समोराह’ चल रहे थे। दुनिया के बड़े सेठ, बड़ा मीडिया, हॉलीवुड से लेकर बॉलीवुड तक के सारे तोप-तमंचे आमंत्रित थे। सब फिल्मी गानों पर नाचते-गाते नजर आते थे।
मीडिया : उसकी शादी और हमारी खिसियाहट |
दुनिया की सबसे महंगी गायिका ‘रिहाना’ ने भी नाचा-गाया। कहते हैं कि इसके लिए उसे पचहत्तर करोड़ रुपये दिए गए। उसे इतने तो बाकियों को भी कुछ मिले ही होंगे। समारोह में सभी नाचे-गाए। दूल्हा-दुल्हन तो नाचे ही उसके माता-पिता भी नाचे लेकिन सब फिल्मी गानों पर ही नाचे। नाचते हुए उन्होंने ऐसे स्टेप लिए जैसे किसी फिल्म के लिए डांस सीन दे रहे हों, जिनको किसी डांस डायरेक्टर ने सिखाया हो।
एक बार फिर सिद्ध हुआ कि आप कितने भी अमीर हों आपकी ‘कल्चर’ की हद भी कुल मिला कर ‘फिल्मों की नकल’ ही है। शायद इसीलिए सब कुछ किसी बड़े बजट की फिल्म के नाच-गाने के सीन की तरह फिल्माया गया। ऐसे अति महंगे व भव्य सीनों में शामिल होने के लिए दुनिया के बड़े से बड़े सेठ-बिल गेट्स से लेकर मार्क जुकरबर्ग तक लाइन लगाए! कहते हैं कि कोई ढाई हजार प्रकार के व्यंजन उपलब्ध रहे और आने-जाने के लिए जहाज, लक्जरी बसें व गाड़ियां रहीं। ‘जाम नगर’ का हवाई अड्डा कुछ दिन के लिए ‘अंतरराष्ट्रीय अड्डे’ में बदल दिया गया ताकि दुनिया के बड़े सेठ सीधे ‘जाम नगर’ उतर कर, समारोह में शामिल हों।
इससे पहले कई एंकरों ने समारोह के हीरो, अरबपति के छोटे पुत्र (भावी वर) द्वारा विकसित एक बड़े चिडियाघर की ‘सफारी’ को भी गद्गद् भाव से लाइव कवर किया जिसमें उसी युवा ने प्रसन्न भाव से अपने ‘पशु प्रेम’ की गाथाएं कहीं कि वे संकटग्रस्त जानवरों को बचा के यहां लाते हैं, उनका इलाज कराते हैं और रखते हैं। यहां सैकड़ों हाथी हैं। शेर हैं। अजगर आदि हैं। उनकी देख-रेख के लिए डाक्टर हैं। जानवरों का खाना बनाने के लिए रसोइये हैं। इस सबके लिए वे एक बड़ा बजट रखते हैं। यह सब करने से उनको बड़ा सुकून मिलता है। वे मानते हैं कि पशु की सेवा भगवान की सेवा है। एक सवाल के जवाब में इस युवा ने बताया कि उनके भाई उनके लिए ‘राम’ की तरह हैं और बहन ‘देवी’ है..जब ‘प्री वैडिंग सेरेमनी’ का यह जलवा रहा तो असली शादी कैसी होगी, इसका अनुमान सहज लगाया जा सकता है। ‘जब रात है ऐसी मतवाली तो सुबह का आलम क्या होगा..।’ इस सबके बावजूद, इस तमाशे की चकाचक में अरबपति के ‘दंभ’ की जगह एक प्रकार की ‘विनम्रता’ और ‘उदात्तता’ भी प्रसारित होती रही।
एक जाने-माने समाज चिंतक ने इसे ‘शादी नंबर वन’ कहते हुए सटीक कटाक्ष किया कि इस तमाशे की ‘जनोन्मुखता’ ने जता-बता दिया पैसे की ताकत बड़े से बड़े तिम्मन खां को भी नचा सकती है..सोशल मीडिया में कइयों ने इसे पैसे का ‘निर्लज्ज नर्तन’ और ‘बर्बादी’ कहा। कुछ ने इसे भी ‘जस्टीफाई’ किया कि किसी के पास है तो वह दिखाएगा ही..। इसी बहाने कुछ को भरपेट खाना मिल गया..कौन न चाहेगा कि सेठ हो तो ऐसा हो जो बांट के खाए। कुछ खाए कुछ खिलाए। फिल्म ‘जाने भी दो यारो’ के एक सीन की तरह जिसमें नसीरुद्दीन शाह केक खाते व हंसते हुए कहता जाता है : कुछ खाओ कुछ फेंको..सोशल मीडिया के युग में ‘आत्मरति’ भी ‘आत्मगौरव’ में बदल चुकी है। ‘पॉजिटिव मूल्य’ बन चुकी है, जो खुल्ला कहती है कि ‘दिखो और दिखाओ’ वरना ‘मर जाओ’..। इसलिए भी हर कोई अपने आपको एक ‘शो’ या ‘तमाशे’ में तब्दील कर और कैमरे में कैद कर ‘फेसबुक’, ‘इंस्टाग्राम’ या ‘यूट्यूब’ आदि के ‘साइबर आर्काइव’ में डाल कर उसे ‘ट्रेंड सेटर’ बना कर अपने को ‘अमर’ बनाता है, जिसकी फिर नकल की जाती है।
शायद इसीलिए, सोशल मीडिया में अनेक युवा आजकल अपने बड़े भाई को ‘राम’ कहने लगे हैं। ‘मानस’ का ‘आदर्श परिवार’ ‘जेन जी’ तक पहुंच गया है। बहुत सी सेलीब्रिटीज ने कभी ‘डेस्टीनेशन वेडिंग’ का फैशन चलाया तो मिडिल क्लास ने भी वैसा ही किया। अब लगुन सगाई की जगह ‘प्री वेडिंग’ का भी फैशन चलेगा। ‘शादी’ भारतीय संस्कृति का चूडांत निदर्शन है। जैसा पैसा, वैसा निदर्शन! नई पूंजी की लीला है ही ऐसी कि वह अपनी ‘आलोचना’ को भी हमारी ‘खिसियाहट’ में बदल देती है। पूंजी की इस लीला को देख हमें तो ‘कम्युनिस्ट मेनीफेस्टो’ के ‘बुजुर्वा इपॉक’ की लाइनें याद आती हैं जिनमें मार्क्स एंगेल्स ने कहते हैं कि पूंजी की मार से ‘वो सब जो ठोस है पिघल कर भांप बन जाएगा..।’ यही हो रहा है। इसे देखना-चौंकना या खिसियाना कैसा?
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