यूपी में BJP को हराना आसान काम नहीं

Last Updated 09 Mar 2024 01:37:55 PM IST

अगर आपने निकाल, कलाजंग, जांघिया, टंगी, सांडीतोड़ और बगलडूब के बारे में नहीं सुना है तो आपको बता दें कि ये पारंपरिक भारतीय कुश्ती के दांव हैं। कहा जाता है कि इनको ढंग से जानने वाले को हराना आसान काम नहीं है, लेकिन लगता है कि सियासत में बीजेपी ने इन दांवों के तोड़ भी निकाल लिए हैं।


उप्र भाजपा : साधे कई समीकरण

यूपी के पनघट की कठिन डगर में बीजेपी एक-एक कदम फूंक फूंक कर रख रही है। ये तो हर आदमी समझता है कि ‘यूपी में जाति है कि जाती ही नहीं है।’ मोदी योगी का चेहरा, राम मंदिर, राष्ट्रवाद, धारा 370, मुफ्त अनाज, महिलाओं के लिए योजनाएं आदि आदि सब मिलाकर बेहतरीन से बेहतरीन रेसिपी बना लीजिए, लेकिन यहां सियासत की हांडी में जब तक जाति का तड़का न लगे तब तक स्वाद नहीं आता। फिर सभी जातियों को साथ लाना एक तराजू में ढेर सारे मेढ़क तौलने जैसा है।

दो लोक सभा और दो दफे उत्तर प्रदेश विधानसभा जीतने के बाद बीजेपी का ये हुनर निखर गया है। मंगलवार को योगी आदित्यनाथ सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला विस्तार हुआ था। एनडीए यानी कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के घटक दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर, राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के पुरकाजी के विधायक अनिल कुमार को शपथ दिलाई गई। इनके साथ ही बीजेपी के विधान परिषद सदस्य दारा सिंह चौहान और गाजियाबाद की साहिबाबाद के विधायक सुनील शर्मा ने भी कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली।

दरअसल, शपथ तो लखनऊ के राजभवन में हो रही थी, लेकिन समीकरण उत्तर प्रदेश में पूर्व से लेकर पश्चिम तक, दलित, पिछड़ों से लेकर जाट, ब्राह्मण तक सध रहे थे। सुभासपा प्रमुख राजभर कहने को तो एक छोटी से पार्टी के नेता हैं, लेकिन अपनी जाति के मतदाताओं पर मजबूत पकड़ है। बीजेपी राजभर के बगैर चुनाव लड़ कर उससे होने वाले नुकसान का आकलन कर चुकी है। राजभर जाति का प्रभाव वाराणसी, भदोही, बलिया, जौनपुर, घोसी, लालगंज, गाजीपुर, अंबेडकरनगर, आजमगढ़, इलाहाबाद, चंदौली, फैजाबाद, बस्ती, गोरखपुर, मछलीशहर, लालगंज में है। पूर्वाचल की 16 सीटों पर सुभासपा नफा-नुकसान का सबब बन सकती है। पिछले लोक सभा चुनाव में पूर्वाचल की गाजीपुर, घोसी और जौनपुर सीट पर बीजेपी को हार मिली थी।

तीनों सीटों पर सपा-बसपा गठबंधन ने जीत का परचम लहराया था। यही वजह है कि बीजेपी एक बार फिर राजभर को अपने साथ ले आई। यहां तक कि बीजेपी और बीजेपी नेताओं के खिलाफ उनके कहे गए शब्दों को भी पार्टी ने भुला दिया। पूर्वाचल के साथ बीजेपी की नजर पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर भी थी। वहां सबसे बड़ा कांटा जयंत चौधरी नजर आ रहे थे। फिर यूपी ही क्यों तीन अन्य राज्यों में भी जाटों का प्रभाव है। जाट फैक्टर पर बीजेपी लंबे समय से काम कर रही थी। जगदीप धनखड़ को उप राष्ट्रपति बनाया। यूपी में भूपेंद्र चौधरी को अध्यक्ष बनाया, लेकिन बीजेपी का सबसे बड़ा दांव रहा पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को ‘भारत रत्न’ देना। इसके जरिए रालोद को भी एनडीए में जाने का एक बड़ा आधार मिल गया।

पश्चिमी यूपी को जाट बाहुल्य लोक सभा की कुल 27 सीटें हैं और 2019 के चुनाव में बीजेपी ने 19 सीटों पर जीत हासिल की थी। जबकि 8 सीटों पर महागठबंधन ने कब्जा किया था। यही वजह है कि रालोद को योगी मंत्रिमंडल में जगह दी गई। मुजफ्फरनगर की सुरक्षित विधानसभा सीट पुरकाजी से रालोद विधायक अनिल कुमार को जब जयंत चौधरी का फोन आया कि लखनऊ पहुंचो, नया सूट है कि नहीं? तब जाकर अनिल कुमार को पता चला कि उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया जा रहा है। अनिल कुमार के जरिए बीजेपी दलितों और जाटों के समीकरण साधना चाह रही है। इसी तरह योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली पहली सरकार में वन मंत्री रहे दारा सिंह चौहान ने 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले मंत्री पद और भाजपा से इस्तीफा देकर सपा का दामन थाम लिया। 2022 में वह मऊ जिले की घोसी से विधानसभा सदस्य चुने गए थे, लेकिन सरकार तो बीजेपी की ही बनी, वो भी मजबूत। 2019 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी को इस इलाके में आजमगढ़, लालगंज, घोसी, गाजीपुर, जौनपुर में हार मिली थी।

विधानसभा चुनाव में भी इन लोक सभा क्षेत्र वाले जिलों में प्रदर्शन खराब था। दारा सिंह चौहान की बीजेपी को खास जरूरत नहीं थी, लेकिन उनकी जाति के मतदाताओं में प्रभाव बनाए रखने लिए बीजेपी ने जबरदस्त स्वागत के साथ उनकी वापसी कराई। दारा सिंह चौहान सितम्बर 2023 के उपचुनाव में सपा के सुधाकर सिंह से 42,759 वोटों के अंतर से हार गए थे। बीजेपी ने इसके बाद उन्हें विधान परिषद भेजा। अब मंत्री भी बना दिया है। मंत्रिमंडल में सबसे ज्यादा चौंकाने वाला नाम सुनील शर्मा का था। साहिबाबाद से विधायक सुनील शर्मा तीसरी बार के विधायक हैं। सबसे पहले 15वीं विधानसभा में वह गाजियाबाद की सीट से चुनकर विधायक बने थे। उसके बाद 17वीं और 18वीं विधानसभा में वह साहिबाबाद की सीट से चुनकर विधायक हुए। सुनील शर्मा की गिनती बड़े ब्राह्मण नेताओं में होती है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गुड बुक में इनका नाम दर्ज माना जाता है। 2017 के विधानसभा चुनाव में शर्मा सबसे अधिक वोट से जीते थे। इस दौरान उनका मार्जिन तकरीबन डेढ़ लाख वोटों का था। वही 2022 की विधानसभा चुनाव में भी शर्मा ने सबसे अधिक वोट से चुनाव जीता था। इस दौरान वह करीब 2 लाख 14 हजार से अधिक मार्जिन से जीते थे। दरअसल, पिछले लोक सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 14 सीटों में से 7 सीट हार गई थी, जबकि 2009 में सभी सीटों पर भाजपा का कब्जा था।
सुनील शर्मा को मंत्री बनाकर भाजपा ब्राह्मणों को साधने की कोशिश करेगी। इस कदम का फायदा पार्टी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी मिलेगा। कुल मिलाकर राजनीति के अखाड़े में 80 को पटखनी देने के लिए बीजेपी का ‘मंत्रिमंडल विस्तार’ दांव बड़ा हथियार बन सकता है।

नवलकांत सिन्हा


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