वैश्विकी : एफबीआई चीफ की दिल्ली ‘दबिश’
अमेरिका का दारोगा दबिश देने दिल्ली आ रहा है। वहां की संघीय जांच एजेंसी एफबीआई के निदेशक क्रिस्टोफर ए.रे (Christopher Wray) की भारत यात्रा खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की कथित साजिश को लेकर छिड़े विवाद के बीच हो रही है।
![]() एफबीआई के निदेशक क्रिस्टोफर ए.रे |
रणनीतिक साझेदारी का तकाजा तो यह था कि पन्नू को एफबीआई अधिकारी लाकर भारतीय अधिकारियों को सौंप देते लेकिन एफबीआई चीफ उल्टे भारतीय जांच एजेंसियों को कठघरे में खड़ा करने के लिए संदिग्ध दस्तावेज से लैस होकर आ रहे हैं। कूटनीतिक हलकों में चर्चा है कि अमेरिका एक आतंकी के बचाव में इतनी कवायद क्यों कर रहा है। यात्रा के ठीक पहले अमेरिका की संसद में ‘सीमा पार दमन’ (ट्रांसलेशनल रिप्रेसन) के मुद्दे पर सुनवाई हुई। पश्चिमी देश रूस, चीन और ईरान जैसे देशों पर आरोप लगाते रहे हैं कि उनके खुफिया एजेंट अन्य देशों में असंतुष्ट नेताओं और बुद्धिजीवियों की हत्याएं करते रहे हैं। लगता है कि अमेरिका ने इन देशों की सूची में भारत का नाम भी शामिल कर लिया है। अमेरिका की भारत विरोधी मीडिया तो मानकर चल रही है कि भारतीय एजेंसियों ने पन्नू की हत्या की साजिश रची जिसे एफबीआई ने नाकाम कर दिया। भारत में भी एक वर्ग ने अमेरिकी दुष्प्रचार को फैलाने का काम किया।
एफबीआई चीफ और भारतीय अधिकारियों के बीच विचार-विमर्श में अपनाए गए रवैये से ही तय होगा कि भारत-अमेरिका संबंध भविष्य में किस रास्ते पर जाएंगे। यह मामूली मनमुटाव है या एक दूसरे के प्रति घोर अविश्वास है, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा। कुछ विश्लेषक अमेरिका के इस पुलिसिया हथकंडे को मोदी सरकार के खिलाफ मुहिम के रूप में ले रहे हैं। यह सब भारत में सत्ता परिवर्तन अथवा मोदी सरकार पर दबाव बनाने के लिए किया जा रहा है, ऐसी भी चर्चा है। कुछ विश्लेषकों ने हाल के घटनाक्रम की तुलना दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल से की है।
इंदिरा गांधी हमेशा देशवासियों को अमेरिका की खुफिया एजेंसी-सीआईए-के खतरों के प्रति आगाह करती रही थीं। उनकी हत्या के पीछे और कौन-सी ताकतें थीं, इसका खुलासा होना बाकी है। वास्तव में अमेरिका के अनेक पूर्व सीआईए अधिकारी भारत सहित विभिन्न देशों में तख्तापलट और राजनीतिक नेताओं की हत्या करने के बारे में खुलासा करते रहे हैं। लेकिन इन सूचनाओं को आम तौर पर अफवाह मान कर खारिज कर दिया जाता है। सीआईए के एक पूर्व अधिकारी ने तो यह तक कहा था कि भारत के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए वैज्ञानिक होमी भाभा की हत्या कराई गई थी। उल्लेखनीय है कि होमी भाभा एक विमान दुर्घटना में मारे गए थे। यह सामान्य दुर्घटना थी या सुनियोजित साजिश, इस संबंध में भारत की ओर से कभी गंभीर जांच नहीं कराई गई। सीआईए अधिकारी ने दिवंगत प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्री की मौत को लेकर भी ऐसा ही कुछ कहा था।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के सामने अब यह अवसर है कि वे एफबीआई के साथ आंख में आंख मिलाकर बात करें। बचाव की मुद्रा छोड़कर अब आक्रामक रुख अपनाने की जरूरत है। भारत की जांच एजेंसियों के पास अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन सहित पश्चिमी देशों में भारत विरोधी गतिविधियों के बारे में ठोस जानकारी होगी। अमेरिकी अधिकारी से दोटूक पूछने का यह समय है कि अमेरिकी सरकार इन्हें रोकने के लिए क्या कर रही है?
अच्छा तो यह होगा कि इस अधिकारी से यह कहा जाए कि पहले पन्नू को सौंपो, फिर आगे बात होगी। अमेरिकी प्रशासन चीन को काबू में रखने के लिए भारत को अपने साथ रखने की रणनीति पर चल रहा है, लेकिन यूक्रेन में रूस विरोधी अभियान में शिकस्त और गाजा नरसंहार के कारण दुनिया में अमेरिका विरोधी लहर के मद्देनजर बाइडन प्रशासन अब चीन के प्रति नरम रुख अपना रहा है। इससे भारत और क्वाड की उपयोगिता फिलहाल कम हो गई है। यही कारण है कि अमेरिका जिस बात को पहले दबे लहजे में कहता था, उसे अब खुलकर बोलने की मुद्रा में है। स्वतंत्र विदेश नीति की मांग है कि भारत इस ब्लैकमेल को पूरी तरह खारिज कर दे। इस बीच, भारत और रूस के संबंधों में नया उभार आया है जो राष्ट्रपति पुतिन की मोदी प्रशंसा से भी स्पष्ट है।
| Tweet![]() |