वर्ल्ड कप क्रिकेट : ऑस्टेलियाई चकाचौंध में टूटा भारतीय सपना

Last Updated 21 Nov 2023 01:38:27 PM IST

हर भारतीय का सपना था कि कप्तान रोहित शर्मा नरेन्द्र मोदी स्टेडियम में एक लाख दर्शकों के कोलाहल के बीच आईसीसी क्रिकेट विश्व कप ट्रॉफी को चूमते नजर आएं।


वर्ल्ड कप क्रिकेट : ऑस्टेलियाई चकाचौंध में टूटा भारतीय सपना

इस सपने की चाहत देशवासियों में रोहित शर्मा की अगुआई वाली भारतीय टीम ने लीग चरण और फिर सेमीफाइनल में शानदार प्रदर्शन करके पैदा की थी, लेकिन ऑस्ट्रेलियाई प्रदर्शन की चकाचौंध में हम एक बार फिर अपने लक्ष्य से भटक गए। इस तरह पिछले 12 वर्षो से आईसीसी ट्रॉफी से चली आ रही भारतीय टीम की दूरी को एक बार फिर खत्म नहीं किया जा सका। ऑस्ट्रेलिया ने चैंपियनों वाले अंदाज में खेलकर भारत को छह विकेट से फतह करके छठी बार आईसीसी क्रिकेट विश्व कप पर कब्जा जमा लिया।

विराट कोहली के तीन शतकों से सबसे ज्यादा 765 रन, भारतीय कप्तान रोहित शर्मा के एक शतक से बनाए 597 रनों और मोहम्मद शमी के सबसे ज्यादा 24 विकेट लेने से यह तो साफ है कि टीम ने खिताब तक पहुंचने के लिए अपना सबकुछ झोंक दिया, लेकिन खिताब जीतने के लिए फाइनल में जिन अतिरिक्त प्रयासों की जरूरत होती है, टीम लगता है कि वहां मात खा गई। ऐसा लगता है कि इस तरह की जंग फतह करने के लिए जिस तरह की मानसिकता की जरूरत होती है, उसमें हम कहीं-न-कहीं थोड़े पीछे रह गए। भारतीय टीम के फाइनल में किए गए प्रयासों में यदि दिमाग थोड़ा और बेहतर इस्तेमाल किया गया होता तो इस टूर्नामेंट में 40 दिन तक अजेय रहने वाली टीम को इस तरह हार का सामना नहीं करना पड़ता।

इस अभियान के दौरान भारतीय टीम से कुछ ऐसी गलतियां हुई, जिन्होंने बाजी को पलट दिया। भारत ने ओपनर गिल का जल्दी विकेट के बाद भी रोहित ने आक्रामक रूप अपनाए रखा और भारत ने नौ ओवरों में 66 रन बना लिए। इसमें रोहित का अहम योगदान तो था ही, विराट भी ऑस्ट्रेलिया के स्ट्राइक गेंदबाज मिचेल स्टार्क के एक ओवर में लगातार तीन चौके लगाकर स्टेडियम के तापमान को चरम पर पहुंचा चुके थे।

इसके बाद दसवें ओवर में मैक्सवेल आए और उनका रोहित ने पहली तीन गेंदों पर एक छक्का और एक चौका लगाकर स्वागत किया, लेकिन यहीं रोहित अपने ऊपर संयम रखने के बजाय चौथी गेंद को भी उड़ाने का प्रयास किया और हेड ने 11 मीटर पीछे दौड़कर जिस शानदार कैच से रोहित की पारी को खत्म किया, उससे भारतीय टीम की लय तो गई ही, ऑस्ट्रेलिया के तेवर भी दिखने लगे।

भारतीय कोच द्रविड़ ने कहा कि भारत को तीन झटके लग जाने के बाद एक साझेदारी बनाकर पारी को संवारने की जरूरत थी और इस काम को विराट और लोकेश राहुल ने अच्छे से किया। पर टीम की दिक्कत यह रही कि जब भी रन गति बढ़ाने के लिए वह गई तो विकेट निकल जाने से टीम फिर बैकफुट पर आ गई। मुझे लगता है कि भारतीय टीम ने अपने ऊपर जरूरत से ज्यादा दवाब बना लिया और इसकी कीमत उसे हार क रूप में चुकानी पड़ी। असल में विराट और लोकेश राहुल के खेलते समय कभी लगा ही नहीं कि टीम दबाव से बाहर निकलना भी चाहती है या नहीं। यह सही है कि यह जोड़ी स्कोर बोर्ड को लगातार चलाए तो रख रही थी।

पर चौकों पर अंकुश लगाने से टीम पर दबाव बढ़ता ही जा रहा था, जिसकी वजह से ही पांचवें गेंदबाज की जिम्मेदारी निभा रहे मैक्सवेल, ट्रेविस हेड और मार्श किफायती गेंदबाजी कर गए। कमेंटरी के दौरान सुनील गावस्कर भी पूछ रहे थे कि आप यदि इन तीन गेंदबाजों को भी टारगेट नहीं पाएंगे तो रन बनेंगे कैसे। भारतीय गेंदबाजों की दिक्कत यह रही कि उन्हें 241 रन के साधारण से लक्ष्य को बचाना था।

ऑस्ट्रेलिया के 46 रन पर तीन विकेट निकल जाने के बाद भी भारतीय टीम दवाब इसलिए नहीं बना सकी कि वह यदि विकेट के लिए जाती तो तेजी से रन बनने की संभावना बनी रहती। अब आप देखें कि रविंद्र जडेजा की गेंदबाजी पर स्लिप में फील्डर लेने की स्थिति में नहीं थे और इसे लिए बिना विकेट मिलने की उम्मीद कम थी। इस पसोपेश में मैच धीरे-धीरे भारत की पकड़ से दूर जाता चला गया। इसके अलावा भारत ने दूसरी पारी में गेंदबाजी की और इसका भी उसे खामियाजा भुगतना पड़ा। असल में सुबह विकेट सूखा होने की वजह से धीमा था, इस कारण गेंद बल्ले पर रुककर आ रही थी पर जब ऑस्ट्रेलिया ने बल्लेबाजी की तो ओस पड़ने के कारण एक तो विकेट अच्छा हो गया और गेंद बल्ले पर अच्छे से आने लगी। वहीं भारतीय स्पिनरों की गेंद ने स्पिन लेना बंद कर दिया।

इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत के विश्व कप नहीं जीत पाने का हर देशवासियों  को अफसोस है। पर इस हार पर रोते रहने से कुछ हासिल होने वाला तो नहीं है। इसलिए अगले साल जून में वेस्टइंडीज और अमेरिका में होने वाले टी-20 विश्व कप पर फोकस करके आईसीसी ट्रॉफी के 12 साल से चले आ रहे सूखे को खत्म किया जा सके। इसके लिए कोच को लेकर जो भी फैसला करना है, वह जल्द किया जाए। क्योंकि द्रविड़ का करार इस विश्व कप तक ही था। साथ ही रोहित शर्मा भी 36 से ऊपर हैं, इसलिए उनकी कप्तानी को लेकर भी फैसला जल्द कर लिया जाए। हां, तब तक फाइनल क हार से मायूस होने के बजाय विश्व कप में हासिल कीं दस जीतों से संतुष्टि प्राप्त की जाए।

मनोज चतुर्वेदी


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