वैश्विकी : सार्थक हस्तक्षेप की अपेक्षा
लेबनान के सशक्त गुट हिजबुल्लाह के सर्वोच्च नेता हसन नसरुल्ला के बहुप्रतीक्षित भाषण का दुनिया भर में विश्लेषण किया जा रहा है।
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नसरुल्ला ने इस्रइल के खिलाफ पूरे पैमाने पर युद्ध छेड़ने की घोषणा नहीं की लेकिन उनके संबोधन में इस्रइल, अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के लिए चेतावनी शामिल है। उन्होंने अपने कार्ड नहीं खोले जिससे गाजा संकट के समाधान के रास्ते अभी खुले हुए हैं। अमेरिका यदि इस्रइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को काबू रखने में सफल होता है, तो एक क्षेत्रीय युद्ध को रोका जा सकता है। इस क्षेत्रीय युद्ध की परिणति विश्व युद्ध में भी हो सकती है जिसे हर देश टालना चाहेगा। जहां तक विश्व जनमत का सवाल है, इजराइल लड़ाई हार चुका है। इस्रइल की छवि आत्म-रक्षा के लिए संकल्पबद्ध मजबूत देश के रूप में नहीं, बल्कि निदरेष लोगों की हत्या पर आमादा युद्ध पिपासु देश के रूप में हो रही है। इस्रइल का सबसे बड़ा पैरोकार अमेरिका भी इस निर्मम नरसंहार में दोषी ठहराए जाने से बचने की कोशिश कर रहा है। युद्ध के मोच्रे पर इस्रइल की समस्या यह है कि वह अपने अभियान को अधूरा नहीं छोड़ सकता।
उग्रवादी संगठन हमास का भूमिगत आधारभूत ढांचा अभी बरकरार है। हमास ने भूमिगत सुरंगों का जाल फैला रखा है जिसमें कई महीनों तक प्रतिरोध जारी रखने की युद्ध और अन्य आवश्यक सामग्री मौजूद है। हमास को यह भी उम्मीद है कि यदि इस्रइली सेना निर्णायक वार करेगी तो हिजबुल्लाह युद्ध के मैदान में कूद पड़ेगा। गाजा में यदि संघर्ष विराम होता है तो इस्रइल के बंधकों के रूप में ट्रंप कार्ड हमास के पास रहेगा। बंधकों की रिहाई की एवज में हमास इजराइल की जेलों में बंद अपने लड़ाकुओं की रिहाई की मांग रखेगा। गाजा का घटनाक्रम क्या रूप लेगा, अभी यह स्पष्ट नहीं है। हमास के समर्थन में यमन और इराक के शिया सशक्त गुटों के सामने आने से संघर्ष का क्षेत्र फैलने की आशंका है।
गाजा के घटनाक्रम ने भारतीय विदेश नीति के लिए भी नई चुनौती पेश की है। भारत काफी सीमा तक अपनी संतुलन पर आधारित नीति को कायम रख सका है। लेकिन इस्रइल के हिंसक रवैये के कारण
भारत के लिए इसके खिलाफ बोलने का समय आ गया है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत के मतदान को लेकर कूटनीतिक खेमों में सवाल खड़े किए जा रहे हैं। भारत ने जार्डन और अरब देशों द्वारा रखे गए युद्ध विराम और इजराइल की आलोचना करने संबंधी प्रस्ताव पर मतदान में भाग नहीं लिया। इसके पहले प्रस्ताव पर कनाडा की ओर से रखे गए संशोधन के पक्ष में भारत ने मतदान किया। कनाडा के संशोधन में सात अक्टूबर को इस्रइल में हुए आतंकी हमले के लिए हमास को सीधे रूप से चिह्नित करने का प्रावधान था। भारतीय प्रतिनिधि इस विश्व मंच पर कनाडा से यह सवाल कर सकता था कि वह अपनी भूमि पर भारत विरोधी आतंकवादी गुटों को नजरंदाज क्यों कर रहा है। भारतीय प्रतिनिधि को अपने वक्तव्य में कहना चाहिए था कि कनाडा आतंकवाद के बारे में यह दोहरा रवैया क्यों अपना रहा है।
कुछ विश्लेषकों के अनुसार गाजा प्रकरण में विदेश मंत्री जयशंकर ने निराश किया है। आतंकवाद के खिलाफ जीरो टोलरेंस का मंत्र दोहराने का यह समय नहीं है। प्रासंगिक मुद्दा यह है कि इस्रइल को गाजा में और खूनखराबा करने से कैसे रोका जाए। इसके मद्देनजर जयशंकर भारत के रुख में आवश्यक बदलाव कर सकते हैं। भारत के लिए चिंता की बात यह है कि दुनिया में कोई देश गाजा संकट में के समाधान के लिए उसकी ओर नहीं देख रहा है। राजनीतिक हलकों में आजकल यह चुटकुला प्रचलित है कि ‘भारत ग्लोबल साउथ का ऐसा नेता है जिसका कोई अनुयायी नहीं है।’
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फिलिस्तीन के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा गया है। इसका तकाजा है कि वह एक न्यायसंगत समाधान के लिए सक्रिय भूमिका में आएं।
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