इंडिया गठबंधन : बिखर तो नहीं जाएगा
जब से पटना, बेंगलुरु और मुंबई में प्रमुख विपक्षी दलों की महत्त्वपूर्ण बैठकें हुई और ‘इंडिया’ गठबंधन की घोषणा हुई तब से विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं और समर्थकों में उत्साह की लहर दौड़ गई थी क्योंकि पिछले नौ वर्षो से राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा विपक्षी दलों पर हावी रही है। पर पिछले दिनों ‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल कुछ दलों के प्रवक्ताओं ने एक दूसरे पर ऐसी तीखी टिप्पणियां की हैं, जिससे गठबंधन में दरार पड़ सकती है।
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आगामी विधानसभा चुनावों में मध्य प्रदेश की कुछ सीटों को लेकर कांग्रेस और समाजवादी दल की जो बयानबाजी हुई हैं, वो ‘इंडिया’ गठबंधन के भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है। हालांकि मध्य प्रदेश में कमलनाथ ने जो कड़ी मेहनत की है, उससे हवा कांग्रेस के पक्ष में बह रही है। शायद इसी आत्मविश्वास के कारण कांग्रेस को समाजवादी पार्टी की कोई अहमियत नजर नहीं आई पर अगर यही रवैया रहा तो लोक सभा के चुनाव में ‘इंडिया’ गठबंधन कैसे मजबूती से लड़ पाएगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि विपक्षी दल तीसरी बार भी नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की राह आसान कर देंगे? पिछले नौ वर्षो में विपक्ष ने तमाम हमले सत्तारूढ़ दल पर किए पर फिर भी कामयाबी नहीं मिली।
ज्यादातर हमले प्रधानमंत्री मोदी की सार्वजनिक घोषणाओं, नीतियों और कार्यपण्राली पर हुए। जैसे मोदी की 2014 की घोषणाओं को याद दिलाना कि दो करोड़ नौकरी हर साल कब मिलेगी, कि 2022 तक सबको पक्के घर मिलने का वादा क्या हुआ? कि 15 लाख सबके खातों में कब आएंगे? कि सौ स्मार्ट सिटी क्यों नहीं बन पाई? कि मां गंगा मैली की मैली क्यों रह गई? कि विदेशों से काला धन वापस क्यों नहीं आया? इसके अलावा, मोदी के अडाणी समूह से संबंधों को लेकर भी संसद में और बाहर बार-बार सवाल पूछे गए। आम आदमी पार्टी ने मोदी की डिग्रियों को लेकर सवाल खड़े किए। आरबीआई की जानकारी के अनुसार पिछले नौ वर्षो में बैंकों का 25 लाख करोड़ रुपये बट्टे खाते में चला गया। आम जनता के खून-पसीने की कमाई की ऐसी बर्बादी और लाखों करोड़ रुपये के ऋण लेकर विदेश भागने वाले नीरव मोदी जैसे लोगों के बारे में भी सवाल पूछे गए। मोदी सरकार पर सीबीआई, ईडी और आयकर जैसी एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप लगातार लगते रहे हैं। इन एजेंसियों की विपक्षी नेताओं के खिलाफ इकतरफा कार्रवाई और चुनावों के पहले उन पर छापे और गिरफ्तारियों को लेकर भी पूरा विपक्ष उत्तेजित रहा।
किसान आंदोलन की उपेक्षा और सैकड़ों किसानों की शहादत और गृह राज्य मंत्री के बेटे का लखीमपुर में आंदोलनकारी किसानों पर कातिलाना हमला भी मोदी सरकार पर हमले का सबब बना। ओलंपिक पदक विजेता महिला खिलाड़ियों के यौन शोषण के आरोपों पर मोदी सरकार की चुप्पी और बाद में उन्हें पुलिस के जोर पर धरने से हटाने को लेकर भी सरकार की बार-बार खिंचाई की गई। मणिपुर में भारी हिंसा के बावजूद प्रधानमंत्री का महीनों तक वहां न जाना भी बड़े विवाद का कारण बना है। ऐसे तमाम गंभीर सवालों पर प्रधानमंत्री का लगातार चुप रह जाना और एक बार भी संवाददाता सम्मेलन न करना लोकतंत्र के करोड़ों मतदाताओं को आज तक समझ में नहीं आया।
उधर हर चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी का आक्रामक प्रचार और विपक्षियों को भ्रष्ट बता कर हमला करना जबकि दूसरी तरफ प्रधानमंत्री द्वारा ही बार-बार भ्रष्ट बताए गए विपक्षी नेताओं को भाजपा में शामिल करवा कर उनके साथ सत्ता में भागीदारी करना भी बड़े विवाद का कारण रहा है। इस सब से देश में ऐसा माहौल बना कि विपक्ष इसे अघोषित आपातकाल कहने लगा किंतु स्थानीय राजनीति पर अपनी पकड़ छोड़ने को कोई क्षेत्रीय दल तैयार न था। इसलिए विपक्ष के दल जहां भाजपा पर निशाना साधते रहे हैं वहीं दूसरी तरफ आपस में एक दूसरे पर छींटाकशी करने से भी बाज नहीं आए। यही कारण है कि दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के समर्थन का दावा करने वाले विपक्ष के नेता अपने-अपने क्षेत्रों में तो कामयाब हुए पर राष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार को चुनौती नहीं दे पाए। आज भी जनाधार वाले तमाम विपक्षी दल एकजुट होकर चुनाव नहीं लड़ पा रहे हैं। इसलिए केंद्र में सत्ता पाने का उनका सपना पूरा नहीं हो पा रहा है।
विपक्ष को इस अंधकार से निकालने की पहल कुछ प्रांतीय नेताओं ने की और उनके प्रयास से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, बिहार, राजस्थान, झारखंड, पंजाब, छत्तीसगढ़, झारखंड, दिल्ली, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में विपक्ष की सरकारें बनीं। दूसरा काम ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के माध्यम से राहुल गांधी ने किया। जिन राहुल को भाजपा और संघ परिवार ने ‘पप्पू’ सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी उन्हीं राहुल ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में हर आम आदमी को गले लगा कर अपनी छवि में चार चांद लगा दिए। मीडिया से डरे बिना हर दिन सैकड़ों संवाददाताओं के तीखे सवालों के सहजता से उत्तर दिए। संसद में मोदी सरकार पर इतना कड़ा हमला बोला कि उनकी सांसदी ही खतरे में पड़ गई पर राहुल के इस नये तेवर और कर्नाटक विधानसभा में कांग्रेस की जीत ने राहुल गांधी को ऐसे आत्मविश्वास से भर दिया कि वे बांहें फैला कर हर विपक्षी दल को ‘इंडिया’ गठबंधन में जोड़ सके। इसी से भारतीय लोकतंत्र में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ पर जिस जोर-शोर से ‘इंडिया’ गठबंधन की घोषणा हुई थी, वो गर्मी अब धीरे-धीरे शांत होती जा रही है, ऐसा प्रतीत होता है।
पिछले दिनों ‘इंडिया’ गठबंधन के सहयोगी दल तृणमूल कांग्रेस पर कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने जो हमला बोला उससे गठबंधन में दरार पड़ने का संदेश गया। उधर मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस द्वारा वादा करने के बावजूद सपा को 5-7 टिकटें नहीं दी गई। इस पर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सार्वजनिक रूप से नाराजगी जताई। हर योद्धा जानता है कि युद्ध जीतने के लिए स्पष्ट लक्ष्य, सुविचारित रणनीति, टीम में एकता और अनुशासन, सामने वाले और स्वयं की क्षमता का सही आकलन और सही मौके पर सही निर्णय लेने की राजनैतिक समझ की जरूरत होती है। अगर ‘इंडिया’ गठबंधन को वास्तव में अपना लक्ष्य हासिल करना है, तो सहयोगी दलों के पारस्परिक संबंधों पर विशेष ध्यान देना होगा अन्यथा ‘टीम इंडिया’ बनने से पहले ही बिखर जाएगी।
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