यौन सहमति : भारतीय परिवेश का रहे ख्याल

Last Updated 01 Oct 2023 01:45:19 PM IST

किसी व्यक्ति या समूह से आम संबंध के मामले उनका आपस में सहमत होना एक सामान्य अपेक्षा है। इसमें उम्र की बाध्यता नहीं है, लेकिन यौन संबंध बनाने में उम्र एक वैधानिक शर्त हो जाती है।


यौन सहमति : भारतीय परिवेश का रहे ख्याल

इसमें तब एक खास भौगोलिक परिस्थिति में रहने वाले प्राणियों की विशिष्ट जैविक संरचना, वहां की पारिवारिक-सामाजिक रीति-रिवाजों एवं सांस्थनिक-वैधानिक मान्यताओं की भूमिका हो जाती है। इन आधारों पर सहमतिपूर्ण यौन संबंधों की वैधानिकता तय की जाती है।

अपने देश में 2012 में प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट (पोस्को) के तहत यौन संबंधों पर सहमति उम्र 18 वर्ष तय की गई है। इससे कम उम्र में बनाए गए ऐसे संबंध को रेप माना गया है-चाहे वह परस्पर प्रेम या सहमति से ही क्यों न बनाया गया हो। इसके लिए तीन से 10 वर्ष की सजा के प्रावधान हैं। प्रेम और सहमति से बने संबंधों पर पोस्को का कठोर प्रावधान प्रारंभ से ही एक खटकने वाला बिंदु रहा है। इसलिए कि यह उपबंध किशोरों-किशोरियों में हो रहे जैविक या अवधारणात्मक विकास को परिलक्षित नहीं करता।

लिहाजा, बदलाव की मांग न्यायिक संस्थानों से भी की जा रही है, लेकिन विधि आयोग ने अपनी सिफारिश में सहमति की उम्र 18 से 16 वर्ष करने के संशोधन प्रस्ताव एवं आग्रहों को सिरे से खारिज कर दिया है। 22वें विधि आयोग ने शुक्रवार को केंद्रीय कानून मंत्रालय को सौंपी 126 पेज की रिपोर्ट में कहा कि सहमति की आयु घटाकर 16 वर्ष करने से बाल विवाह और बाल तस्करी के खिलाफ लड़ाई पर सीधा और नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटाने से वास्तविक मामलों को नुकसान होगा और पोस्को अधिनियम महज कागजी कानून बनकर रह जाएगा।

तो फिर परस्पर सहमति से बने संबंध का क्या होगा? आयोग ने इस मामले सजा में छूट समेत अन्य पहलुओं को न्यायालय के विवेक पर छोड़ दिया है। उसका कहना है कि 16 साल या उससे अधिक (18 से कम) उम्र में सहमति से संबंध के मामले में लड़के-लड़की की उम्र का फासला 3 साल या उससे अधिक है तो इसे अपराध की श्रेणी में मानना चाहिए। यह सहमति तीन आधारों पर परखी जाए और उसी आधार पर इसे अपवाद भी माना जाए। अदालतें ये देखें कि दोनों में सहमति भय या पल्रोभन पर तो आधारित नहीं थी? ड्रग का तो इस्तेमाल नहीं किया गया? यह सहमति किसी प्रकार से शारीरिक व्यापार के लिए तो नहीं। उम्र कम करने की बजाय इसके दुरुपयोग को रोका जाए। कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी की अध्यक्षता वाले आयोग ने उन स्थितियों से निपटने के लिए पोक्सो अधिनियम, किशोर न्याय (जेजे) अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में कई संशोधनों की सिफारिश की, जहां मौन स्वीकृति है, जबकि 16 से 18 साल के बीच के किशोरों के यौन संबंध को कानून में सहमति नहीं माना जाता।

पर किशोरों को यौन शोषण से बचाने के लिए लाए गए पोस्को कानून को लेकर इधर कुछेक वर्षो में आवाजें उठने लगी हैं। यह अनुभव किया जाने लगा है कि सहमतिपूर्ण संबंधों के वास्तविक मामलों में भी सैकड़ों किशोरों को सजा हो जा रही है। इससे वे बच्चे आपराधिक श्रेणी में आ रहे हैं। एनसीआरबी-2021 की रिपोर्ट के अनुसार, पोक्सो के तहत मामलों के पीड़ितों की सबसे बड़ी संख्या 16 से 18 के बीच है, और इनमें ज्यादातर लड़कियां हैं। इन मामलों में अखिल भारतीय सजा दर लगभग 32 फीसद थी। उल्लेखनीय है कि भारत में 18 वर्ष से कम उम्र के 400 मिलियन से अधिक लोग थे, जो कुल जनसंख्या का लगभग 36.7 फीसद है। एनफोल्ड प्रोएक्टिव हेल्थ ट्रस्ट, जो एक बाल अधिकार चैरिटी है, उसने खुलासा किया है कि 2016 और 2020 के बीच असम, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में पोस्को के 24.3 प्रतिशत मामले ‘रोमांटिक मामले’ थे और इनमें से 87.9 प्रतिशत मामलों में लड़की ने माना था कि लड़के के साथ उसके रोमांटिक रिश्ते थे।

नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर द चाइल्ड एंड द लॉ द्वारा 2018 के एक अध्ययन से यह भी पता चला है कि आंध्र प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में 20 प्रतिशत से अधिक मामले रोमांटिक थे। इन्हीं मामलों की सुनवाई करते हुए निचली अदालतों से लेकर उच्च न्यायालयों तक को इसमें बदलाव की जरूरत लगी। पिछले दिसम्बर में, भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने संसद से सहमति की उम्र के मुद्दे पर फिर से विचार करने की अपील की थी क्योंकि किशोरों की सहमति से यौन संबंध के मामलों की जांच करने वाले न्यायाधीशों को कठिनाइयां होती हैं। इस साल जून में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से भी ऐसा ही अनुरोध किया गया था।

न्यायमूर्ति दीपक कुमार अग्रवाल ने सरकार से किशोर लड़कों के साथ अपराधियों जैसा व्यवहार किए जाने के ‘अन्याय’ से बचने के लिए सहमति की उम्र घटाकर 16 साल करने का आग्रह किया। न्यायाधीश ने कहा, ‘आजकल, सोशल मीडिया जागरूकता और आसानी से सुलभ इंटरनेट कनेक्टिविटी के कारण 14 वर्ष की आयु के करीब हर पुरुष या महिला कम उम्र में ही यौवन प्राप्त कर रहे हैं। लड़के और लड़कियां एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हो रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप अंतत: सहमति से शारीरिक संबंध बनते हैं।’ न्यायाधीश का आकलन था कि ‘इन मामलों में, पुरु ष व्यक्ति बिल्कुल भी अपराधी नहीं हैं। यह केवल उम्र की बात है जब वे महिलाओं के संपर्क में आते हैं और शारीरिक संबंध बनाते हैं।’  

देश में यौन संबंधों में सहमति की उम्र कम करने को लेकर भारतीय समाज में मांग बढ़ती जा रही है। सहमति की उम्र विश्व में 12 से 21 वर्ष तक है लिहाजा भारत को ऐसे में अपनी सामाजिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए विचार करना चाहिए। इस ओर ध्यान दिया जाए कि भारत की किशोर आबादी यौन रूप से सक्रिय है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) से पता चला कि 39 प्रतिशत से अधिक महिलाओं ने 18 साल की उम्र से पहले यौन संबंध बना लिए थे और 25-49 आयु वर्ग में 10 प्रतिशत ने कहा कि उन्होंने 15 साल की उम्र से पहले उन्होंने ऐसा किया था।

स्मार्ट फोन और इंटरनेट से संपन्न इस भारत में यही सही वक्त है जब यौन शिक्षा प्राथमिक कक्षा से शुरू की जाए। उन्हें इसके बारे में वैज्ञानिक जानकारी देने का। कर्नाटक हाईकोर्ट ने तो उस मामले पर विचार करते हुए स्कूलों में इसकी शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम बनाने पर जोर दिया था। इसलिए यौन संबंधों के बारे में घर-परिवार, स्कूलों एवं स्थानीय निकायों से लेकर जिम्मेदारीपूर्ण विमर्श में भी इसे शामिल किया जाए। यह काम कुछ स्कूलों में और स्थानीय निकायों ने शुरू भी कर दिया है। दबाव उम्र कम करने का पर यौन संबंधों पर एकल सहमति पूरे भारत का परिवेश एक जैसा समतल नहीं है।

डॉ. विजय राय


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