मुद्दा : बे-मतलब की बकझक

Last Updated 02 Oct 2023 01:33:48 PM IST

भारतीय हिन्दू सामाजिक संरचना में जाति एक अमिट सच्चाई है। जाति के पक्ष-विपक्ष में तर्क दिए जा सकते हैं, लेकिन इसका उन्मूलन नामुमकिन है।


मुद्दा : बे-मतलब की बकझक

ग्रीक विचारक संत एंटीयस ने इस संदर्भ में कहा भी है कि जाति उस दैत्य की भांति है, जो अपनी प्रत्येक हार के उपरांत दूनी शक्ति बटोर कर रणभूमि में लौटता है। हालांकि अंबेडकर, लोहिया और जय प्रकाश नारायण ने अलग-अलग समय पर जात-पात मिटाने की मुहिम चलाई। वर्ण व्यवस्था से गौरव बोध वाले सवर्ण जातीय समूह इसे तोड़ना नहीं चाहते और निम्न जातीय समूह इसे तोड़ने में सक्षम नहीं हैं। संभवत: यही कारण है कि संविधान में जातिगत भेदभाव, गैर-बराबरी और छूआछूत को दूर करने के उपबंध और उपचार तो बताए गए हैं, लेकिन इसके संपूर्ण विनाश के सूत्र को प्रस्तावित नहीं किया गया है।

जातीय व्यवस्था में दोष और शोषण के तत्व को कम अथवा निरस्त करने के मार्ग संविधान के मौलिक अधिकार और राज्य के नीति-निदेशक तत्व के रूप में अंगीकृत किए गए हैं। पूर्ववर्ती सरकारों ने इस पर काम भी किया है। इसी क्रम में स्त्री शक्ति वंदन विधेयक-2023 पर राज्य सभा में चर्चा के दौरान मनोज झा ने कवि ओम प्रकाश वाल्मीकि की ‘ठाकुर का कुआं’ नामक एक कविता पढ़ी। उन्होंने प्रसंग, प्रतीक और संदर्भ को स्पष्ट करते हुए ठाकुर शब्द को जातिगत अस्मिता से नहीं जोड़ने की अपील कर अपने भाषण के अंत में उस कविता का अक्षरश: पाठ किया। ठाकुर को प्रभुत्व बोध और सामंती मानसिकता के आधार पर सप्रसंग व्याख्या किया और शक्ति संरचना में वर्चस्व स्थान पर विराजमान हर व्यक्ति के मन में होने की बात कही। उस प्रभुत्व दोष को मारने के लिए सभी को प्रेरित होने का आह्वान किया। इस कविता पाठ का लक्षित उद्देश्य  बेहद संवेदनशील था। सामंती सोच, शोषण और हक हथियाने की प्रवृत्ति का त्याग और विनाश तक सीमित था।

सांसद मनोज झा अपनी पार्टी के पक्ष को बौद्धिक और स्पष्ट तरीके से जनमानस में रखने के लिए चर्चित रहे हैं। लगभग सभी मुद्दों पर उनकी भागीदारी एक वैकल्पिक पक्ष की धार निर्मिंत करती है। उनके भाषण के एक अंश को जातीय नजर से राजपूत बनाम ब्राह्मण बनाने की कोशिश राजनीति से प्रेरित लगती है। महान दलित लेखक की कविता ‘ठाकुर का कुआं’ में ठाकुर को राजपूत या क्षत्रिय के रूप में स्वीकार करना जातिवाद का विद्रूप चेहरा है जबकि सकारात्मक पहल के तौर पर जातीय संगठन सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन की भूमिका में अपनी जाति के विकास और कल्याण के लिए सक्रिय रहते हैं, लेकिन कविता और साहित्य के माध्यम से शोषण के मर्मत्व को जनमानस तक पहुंचाने की एक परंपरा रही है, और समाज को प्रगतिशील बनाने में इसकी निर्णायक भूमिका रही है। वीपी सिंह जब देश के प्रथम राजपूत प्रधानमंत्री बने तो उस समाज ने उनके सम्मान में ‘राजा नहीं फकीर है, देश का तकदीर है’ जैसे कसीदे पढ़े।

जब उन्होंने सरकारी नौकरियों में पिछड़ों की हकदारी स्थापित करने के लिए मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया तो उसी समाज ने उन्हें ‘राजा नहीं रंक है, देश का कलंक है’ जैसे नारों से अपमानित किया। उसी प्रकार, तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह, जिन्होंने पिछड़ी जातियों के लिए शिक्षण संस्थाओं में 27 फीसद आरक्षण लागू किया, अपनी ही जाति की नजर में दोषी के तौर पर देखे जाते हैं जबकि ये दोनों महानुभाव पिछड़ों की नजर में युग पुरु ष माने जाते हैं। इन्होंने भारतीय समाज के एक बड़े हिस्से को सामाजिक न्याय से परिचित कराया। इस दृष्टिकोण से राजपूत समाज को इन दोनों हस्तियों की प्रगतिशील सोच पर गर्वित होना चाहिए अन्यथा इस समूह को जातीय वर्चस्व से ग्रसित मानना अतिश्योक्ति नहीं होगी। मनोज झा ने महिला वर्ग को सिर्फ एससी/एसटी/ओबीसी और सामान्य श्रेणी की नजर से नहीं, बल्कि पितृसतात्मक प्रणाली का शिकार बताया। इसलिए महिला आरक्षण के दायरे में सभी कैटेगरी की महिलाओं को शामिल कर इसे समावेशी बनाने का सवाल पुरजोर तरीके से उठाया। इस प्रगतिशील कदम के रास्ते में ‘ठाकुर’ की मानसिकता ही सबसे बड़ा अवरोधक बिंदु रहा होगा!

जिन राजपूत नेताओं ने ठाकुर को जातीय दंभ का प्रतीक मानकर उग्र प्रतिक्रिया दी उन्होंने अपनी जातीय साख को चोटिल किया है। जमात में उनकी प्रतिष्ठा घटी है और दबी कुंठा प्रकट हुई है। साहित्य समाज का आईना प्रस्तुत करता है जिसमें खूबियां और खामियां, दोनों शामिल होती हैं। आकलन का उद्देश्य तिरस्कार नहीं परिवर्तन होता है। साहित्य का अर्थ ही होता है जो अपने में सब कुछ समाहित करने की दक्षता से संपन्न हो, उसमें दोष ढूंढने का प्रयास करना निर्थक है। यह गहन चिंतन और गहरी शोध का परिणाम है। इसी संदर्भ में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा है-‘जब राजनीति लड़खड़ाती है तब साहित्य और संस्कृति उसका दामन थाम लेते हैं।’

प्रो. नवल किशोर


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment