वैश्विकी : भारत-अमेरिका संबंधों पर काली छाया

Last Updated 01 Oct 2023 01:39:17 PM IST

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत और अमेरिका दोनों के लिए बड़ी कूटनीतिक चुनौती पेश कर दी है।


वैश्विकी : भारत-अमेरिका संबंधों पर काली छाया

ट्रूडो की नासमझी या शरारत के कारण अंतरराष्ट्रीय संबंधों में ही न हीं बल्कि भारत के राजनीतिक-सामाजिक जीवन में भी समस्या पैदा हो सकती है। खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर ट्रूडो के आरोप करीब 15 दिन बाद भी कूटनीतिक संबंधों में तनाव का कारण बने हुए हैं।

इस विवाद की काली छाया भारत और अमेरिका के संबंधों पर भी पड़ सकती है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर की लंबी अमेरिका यात्रा भी इस विवाद को सुलझाने में सफल नहीं हो पाई। जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन से कई बार मुलाकात की तथा भारत का पक्ष रखा। जयशंकर ने कनाडा में खालिस्तान समर्थकों की गतिविधियों और हिंसक वारदात की विस्तार से जानकारी दी लेकिन लगता है कि ब्लिंकन ने एक कान से सुना और दूसरे कान से निकाल दिया। अपने ताजा बयान में ब्लिंकन ने वही बात कही जो करीब 15 दिन पहले कही थी।

उन्होंने कहा कि भारत को जांच में कनाडा के साथ सहयोग करना चाहिए तथा दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। ब्लिंकन ने एक बार भी कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया में खालिस्तानी तत्वों की मौजूदगी और भारत विरोधी गतिविधियों के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा। जाहिर है कि ब्लिंकन के इस रवैये से जयशंकर क्षुब्ध हुए होंगे। उन्होंने शालीनता का परिचय देते हुए कहा ‘ब्लिंकन ने जो कहा उसे हमने देखा है। हमें यह  आशा है कि हम जो कह रहे हैं, वह अमेरिका देख रहा है। इस संबंध में हमें आगे कुछ नहीं कहना।’ जयशंकर का यह बयान एक भूचाल का भी संकेत हो सकता है।

कनाडा और अमेरिका के रवैये से खालिस्तानी तत्वों के हौसले बुलंद हैं। इसका ताजा उदाहरण स्काटलैंड के गुरुद्वारे में भारतीय उच्चायुक्त विक्रम दोरईस्वामी को प्रवेश से रोका जाना है। दो खालिस्तान समर्थकों की इस करतूत के सामने गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी के सदस्य बेबस नजर आए। इसका कारण यह है कि खालिस्तान समर्थक तत्वों को कानून-व्यवस्था और पुलिस का कोई भय नहीं है। ब्रिटेन की विपक्षी लेबर पार्टी के कई सांसद खालिस्तान समर्थकों को शह देते हैं। यह आश्चर्य की बात है कि खालिस्तान समर्थक तत्वों द्वारा भारतीय राजनयिकों को धमकियां देने और राजनयिक मिशनों को निशाना बनाए जाने के बारे में पश्चिमी देशों की सरकारें निष्क्रिय क्यों हैं।

वास्तव में इन देशों में भारत ही नहीं बल्कि श्रीलंका और बांग्लादेश सहित अनेक देशों के पृथकतावादी और आतंकवादी पनाह लिए हुए हैं। बांग्लादेश ने खुले रूप से आरोप लगाया है कि बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान के हत्यारे कनाडा में निद्र्वद्व घूम रहे हैं। उनके बांग्लादेश प्रत्यर्पण की मांग पर कनाडा सरकार कोई ध्यान नहीं दे रही है। यह सच्चाई है कि पश्चिमी देश विभिन्न देशों के आतंकवादी और अलगाववादियों को अपने यहां पनाह देते हैं तथा उन देशों में अस्थिरता पैदा करने के लिए इन तत्वों का इस्तेमाल किया जाता है।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिका के नेताओं को बताया कि कनाडा का यह रवैया नया नहीं है। कनाडा 1980 के दशक से ही भारत के लिए समस्या बना हुआ है। बीच के कालखंड में कुछ सुधार हुआ था, लेकिन हाल के वर्षो में खालिस्तानी तत्वों की गतिविधियों में फिर तेजी आ गई है। नागरिक विमानन के क्षेत्र में बड़ी आतंकवादी घटना एअर इंडिया के कनिष्क विमान को नष्ट किया जाना था। मृतक अधिकांश यात्रियों में भारतीय शामिल थे। कनाडा सरकार ने इस आतंक की घटना पर पर्दा डालने की हरसंभव कोशिश की। प्रधानमंत्री ट्रूडो भी इसी नीति का अनुसरण कर रहे हैं।

अमेरिका और कनाडा के बीच ‘खून का रिश्ता’ है। अमेरिकी सरकार हमेशा कनाडा की हां-में-हां मिलाएगी। आने वाले दिनों में खालिस्तान का मुद्दा भारतीय विदेश नीति को नया मोड़ देने का कारण बन सकता है। पश्चिमी देशों की मीडिया पहले से ही प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार का विरोध करते रहे हैं। अब वहां की सरकारें भी ऐसा रवैया अपनाने का संकेत दे रही हैं। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबोधन में जयशंकर ने कनाडा और पश्चिमी देशों की परोक्ष  आलोचना की। उन्होंने कहा कि आतंकवाद के बारे में दोहरा रवैया बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

डॉ. दिलीप चौबे


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