मीडिया : साख पर सवाल

Last Updated 18 Sep 2023 01:47:26 PM IST

जब से I.N.D.I.A. Alliance (इंडिया गठबंधन) ने 14 टीवी एंकरों के बॉयकाट की घोषणा की है तब से मीडिया जगत में भूचाल सा आ गया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है, और देश में ऐसा पहली बार हुआ है। इन टीवी चैनलों के समर्थक और केंद्र सरकार विपक्ष के इस कदम को अलोकतांत्रिक बता रहे हैं।


मीडिया : साख पर सवाल

उनका आरोप है कि विपक्ष सवालों से भाग रहा है, जबकि विपक्ष का कहना है कि भाजपा ने अरसे से एनडीटीवी चैनल का बहिष्कार किया हुआ था, जब तक कि उसे अडाणी समूह ने खरीद नहीं लिया। तमिलनाडु के अनेक टीवी चैनलों, जो वहां के किसी राजनीतिक दल से नियंत्रित नहीं हैं और उनकी छवि भी दशर्कों में अच्छी है, का भी भाजपा ने बहिष्कार किया हुआ है।

सवाल उठता है कि इस तरह सार्वजनिक बहिष्कार करके विवाद खड़ा करने की बजाय अगर विपक्षी दल एक मूक सहमति बना कर इन एंकरों का बहिष्कार करते तो भी उनका उद्देश्य पूरा हो जाता और विवाद भी खड़ा नहीं होता। पर शायद विपक्ष ने यह विवाद खड़ा ही इसलिए किया है कि वो देश के ज्यादातर टीवी चैनलों की पक्षपातपूर्ण नीति को एक राजनैतिक मुद्दा बना कर जनता के बीच ले जाए जिसमें वो सफल हुआ है। इस विवाद का परिणाम यह हुआ है कि ‘गोदी मीडिया’ कहे जाने वाले इन टीवी चैनलों के समर्पित दशर्कों के बीच इन एंकरों की लोकप्रियता और बढ़ी है, जिससे इन्हें टीआरपी खोने का कोई जोखिम नहीं है।

जहां तक बात उन दशर्कों की है, जो वर्तमान सत्ता को नापसंद करते हैं, तो वो पहले से ही इन एंकरों के शो नहीं देखते इसलिए उन पर इस विवाद का कोई नया असर नहीं पड़ेगा। पर इन टीवी चैनलों के मालिकों के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। अगर वे अपने इन टीवी एंकरों के साथ खड़े नहीं रहते या इन्हें बर्खास्त कर देते हैं, तो इसका गलत संदेश उनसे जुड़े सभी मीडियाकर्मिंयों के बीच जाएगा क्योंकि ये टीवी एंकर इस तरह के इकतरफा तेवर अपनी मर्जी से तो नहीं अपना रहे। जाहिरन इसमें उनके मालिकों की सहमति है। इस पूरे विवाद में मैंने एक लंबा ट्वीट (जिसे अब एक्स कहते हैं) लिखा, जिसे 24 घंटे में 35 हजार से ज्यादा लोग देख चुके थे। इसमें मैंने लिखा, कि ये सब जो हो रहा है, यह बहुत दुखद है। चूंकि मैं स्वयं पत्रकार हूं इसलिए मुझे इस बात से बहुत कोफ्त होती है कि आजकल सार्वजनिक विमर्श में प्राय: पत्रकारों की विसनीयता पर अपमानजनक टिप्पणियां की जाती हैं। उसका कारण हमारे पेशे की विसनीयता में भारी गिरावट आई है।

सोचने वाली बात यह है कि आज से 30 वर्ष पहले जब मैंने भारत की राजनीति का सबसे ज्यादा चर्चित और बड़ा ‘जैन हवाला कांड’,  जिसमें कई प्रमुख राजनैतिक दलों के बड़े-बड़े राजनेता और बड़े अफसर प्रभावित हुए थे, उजागर किया था, तब भारी राजनीतिक क्षति पहुंचने के बावजूद उन राजनेताओं ने मुझसे अपने संबंध नहीं बिगाड़े। उनका कहना था कि तुमने किसी एक राजनैतिक दल का हित साधने के लिए या किसी राजनैतिक या आर्थिक लाभ पाने के उद्देश्य से हम पर हमला नहीं बोला था। बल्कि तुमने तो निष्पक्षता और निडरता से पत्रकारिता के मानदंडों के अनुरूप अपना काम किया। इसलिए हमें तुमसे कोई शिकायत नहीं है। उन सभी से आज तक मेरे सौहार्दपूर्ण संबंध हैं।

इस देश में खोजी टीवी पत्रकारिता की शुरुआत मैंने 1986 में दूरदशर्न (तब निजी टीवी चैनल नहीं होते थे) पर ‘सच की परछाई’ कार्यक्रम से की थी। यह अपने समय का सबसे दबंग कार्यक्रम माना जाता था क्योंकि इस कार्यक्रम में मैं कैमरा टीम को लेकर देश के कोने-कोने में जाता था और तत्कालीन राजीव गांधी सरकार की नीतियों के क्रियान्वयन में जमीनी स्तर पर हो रही कमियों को उजागर करता था।  इसके बाद 1989 में जब देश में पहली बार मैंने स्वतंत्र हिन्दी टीवी समाचारों की वीडियो पत्रिका ‘कालचक्र’ जारी की तो उसके भी हर अंक ने अपनी दबंग रिपोटरे के कारण देश भर में खलबली मचाई। बावजूद इसके किसी भी राजनेता द्वारा मेरा कभी सोशल बॉयकाट नहीं किया गया क्योंकि यहां भी मैंने निष्पक्षता का पूरी तरह ध्यान रखा। चाहे कोई भी राजनैतिक दल हो और चाहे आरएसएस से लेकर नक्सलवादियों तक की विचारधारा से जुड़े प्रश्न हों, अगर वो मुझे जनहित में ठीक लगे तो उन्हें कालचक्र की रिपोर्ट में प्रसारित करने से मैंने कभी कोई गुरेज नहीं किया। इसलिए लोग आज तक कालचक्र को याद करते हैं। पिछले 40 वर्षो की टीवी पत्रकारिता के अपने अनुभव और उम्र के 68वें वर्ष में शायद मेरा यह कर्त्तव्य है कि मैं  टीवी चैनलों में काम कर रहे अपने सहकर्मिंयों को उनके हित में कुछ सलाह दे सकूं।

सरकारें तो आती-जाती रहती हैं। हर केंद्र सरकार के पास अपनी उपलब्धियों का प्रचार करने के लिए दूरदर्शन, ऑल इंडिया रेडियो और पीआईबी हैं जबकि लोकतंत्र में स्वतंत्र मीडिया का काम जनता की आवाज बनना होता है। उन्हें सरकार से तीखे सवाल पूछने होते हैं, और सरकार की योजनाओं में खामियों को उजागर करना होता है। अगर वे ऐसा नहीं करते, तो वे पत्रकार नहीं माने जाएंगे। हां, किसी भी रिपोर्ट या वार्ता में हर टीवी पत्रकार को कोशिश करनी चाहिए कि पूरी तरह निष्पक्षता बनी रहे। इसके साथ ही किसी भी टीवी एंकर को यह हक नहीं कि वो विपक्ष के नेताओं को अपमानित करे या उनसे अभद्र व्यवहार करे। टीवी की वार्ता में आने वाले सभी लोग उस एंकर के मेहमान होते हैं। इसलिए उनका पूरा सम्मान किया जाना चाहिए। तीखे सवाल भी शालीनता से पूछे जा सकते हैं। उसके लिए हमलावर होने की नौटंकी करने की कोई जरूरत नहीं है। आजकल चल रही ऐसी नौटंकियों के कारण ही टीवी चैनलों की विसनीयता तेजी से घटी है।  

इसी क्रम में मैं उन नामी टीवी पत्रकारों को भी बिन मांगी सलाह देना चाहूंगा जो रात-दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार के खिलाफ सोशल मीडिया पर हमलावर रहते हैं। तथ्यों को सामने लाना उनका कर्त्तव्य है। इसलिए वो यह जरूर करें पर मोदी सरकार के अच्छे कामों की उपेक्षा करके या उन कामों की प्रशंसा न करके, वे ऐसे लगते हैं मानो विपक्ष का एजेंडा चला रहे हैं। उनका यह रवैया गलत है। इस तरह दोनों खेमों के पत्रकारों को आत्म विश्लेषण करने की जरूरत है। न तो हम खेमों में बंटें और न ही अपने दर्शकों को खेमों में बांटें। जो सही है, उसे ज्यों की त्यों प्रस्तुत करें और फैसला दर्शकों के विवेक पर छोड़ दें।

विनीत नारायण


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