PoK भारत में विलय करने का मौका

Last Updated 18 Sep 2023 01:44:42 PM IST

केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह (Union Minister General VK Singh) ने उम्मीद से भरा बयान दिया है। उन्होंने कहा है, ‘गुलाम जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, इस पर पाकिस्तान का कोई अधिकार नहीं है।


पीओके : भारत में विलय करने का मौका

यहां के लोग पाकिस्तान से तंग हैं, अतएव स्वयं ही ऐसा कुछ करेंगे कि भारत का हिस्सा बन जाएं। बस थोड़ा इंतजार करने की जरूरत है।’ गुलाम कश्मीर के लोग स्वयं ही भारत में विलय हो जाएंगे, यह बयान अचंभित करने वाला है। संभव है कि भारत की यह ऐसी किसी रणनीति का हिस्सा हो, जिसके निकट भविष्य में फलीभूत होने की संभावना हो? इसी का सिंह ने संकेत दिया हो। याद रहे 1947 में पीओके पर पाकिस्तान ने अवैध रूप से कब्जा कर लिया था। तब से वहां के निवासियों ने अपनी स्वतंत्रता वापस पाने के लिए अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की अपील तो की ही है, वे मुक्ति दिलाने की भारत से भी अपील करते रहे हैं। उन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बड़ी उम्मीद है।

इस विलय के संबंध में सर्वसम्मति से संसद में प्रस्ताव भी पारित होते रहे हैं। 1994 में नरसिंह राव की सरकार में भी इस बाबत एक प्रस्ताव पारित हुआ था। चूंकि पीओके भारत का हिस्सा है, इसलिए जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पीओके क्षेत्र की बनाई गई चौबीस सीटें फिलहाल खाली रखी जाती हैं। दरअसल, भारत कश्मीर मुद्दे पर अब तक नाकाम इसलिए रहा कि उसने आक्रामकता दिखाने की बजाय रक्षात्मक रवैया अपनाया हुआ था। इससे लाखों पंडितों को विस्थापन का दंश तो झेलना पड़ा ही यह पूरा इलाका भी आतंक और अलगाव की चपेट में आ गया। नतीजतन, अब तक 42000 से ज्यादा लोगों को मौत के मुंह में जाना पड़ा। 1947 तक के कालखंड में 1942 की अगस्त क्रांति तथा आजाद हिन्द फौज के अभियान और दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद जब फिरंगी हुकूमत के खिलाफ जबरदस्त असंतोष और सशस्त्र संघर्ष की घटनाएं आम हो गई तो अंग्रेजों ने अनुभव किया कि अब भारत पर नियंत्रण संभव नहीं है, तब उन्होंने भारतीय रियासतों के विलीनीकरण के लिए धार्मिंक एवं क्षेत्रीय उपराष्ट्रीयताओं को भी उकसाना शुरू कर दिया। फलत: शेख समेत अनेक हिन्दू और मुस्लिम नरेशों में एक नये स्वतंत्र देश पर राज करने की मनोकमना अंगड़ाई लेने लगी जबकि रियासतों का विलय भारतीय राष्ट्र को अखंड भारत का रूप देकर एक सशक्त और एकीकृत संविधान द्वारा संचालित राजनीतिक ईकाई का निर्माण करना था।

इसी समय शेख ने स्वतंत्र कश्मीर का सुल्तान बनने का सपना देखना शुरू कर दिया। 1946 में शेख ने हरि सिंह के विरुद्ध ‘महाराजा कश्मीर छोड़ो आंदोलन’ छेड़ दिया। 20 मई, 1946 को शेख ने श्रीनगर की मस्जिदों का दुरुपयोग करते हुए सांप्रदायिक उन्माद फैलाने के ऐलान कराए। नतीजतन, शेख की गिरफ्तारी हुई और उन्हें तीन साल की सजा सुनाई गई। इस गिरफ्तारी के बाद कश्मीर की स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में थी। किंतु यह गिरफ्तारी नेहरू को रास नहीं आई। नेहरू ने शेख की गिरफ्तारी को गलत ठहराते हुए दिल्ली के राजनीतिक हलकों में हरि सिंह को दोषी ठहराना शुरू कर दिया। हरि सिंह ने नेहरू का कहना नहीं माना तो ‘सत्याग्रह’ की घोषणा कर दी। हरि सिंह ने नेहरू की हठ को सर्वथा नकार दिया और उन्हें हिरासत में लेकर कश्मीर की सीमा से बाहर का रास्ता दिखाकर रिहा कर दिया।

नेहरू ने इस आचरण को नितांत अव्यावहारिक माना और हरि सिंह से बदला लेने का संकल्प ले लिया। इसलिए देश की 562 रियासतों को विलय करने का जो दायित्व पटेल बड़ी चतुराई से संभाल रहे थे, उनमें एक जम्मू-कश्मीर का दायित्व नेहरू ने जबरदस्ती अपने हाथ ले लिया।  जम्मू-कश्मीर रियासत का विलय नेहरू के हाथ में होने के कारण असमंजस में रहा। इसी अनिश्चिता के दौर में 22 अक्टूबर, 1947 को शेख की शह पर पाक फौज जीपों और ट्रकों पर सवार होकर कश्मीर में चढ़ी चली आई। इस संकट से मुक्ति के लिए हरि सिंह विवश हुए और उन्होंने 26 अक्टूबर, 1947 को विलय-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए।

इसके बाद 27 अक्टूबर, 1947 को कबाइलियों को बेदखल करने के लिए हवाईजहाज से सेना भेज दी गई। भारतीय सैनिकों ने कबाइलियों को खदेड़ दिया किंतु दुर्गम क्षेत्र होने के कारण मुजफ्फराबाद का पीओके, गिलगिट और बाल्टिस्तान क्षेत्र पाक के कब्जे में बना रहा। इस परिप्रेक्ष्य में नेहरू जल्दबाजी में संयुक्त राष्ट्र संघ चले गए। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने इसे विवादित क्षेत्र घोषित कर दिया। कश्मीर की शासन व्यवस्था को लेकर नेहरू, हरि सिंह और शेख के बीच  ‘दिल्ली समझौता’ हुआ। समझौते के आधार पर ही नेहरू ने शेख के सुपुर्द जम्मू-कश्मीर की कमान सौंप दी। इसके बाद कश्मीर को विशेष दर्जा देने के लिए 370 का अनुच्छेद जोड़ दिया गया। अब इस अनुच्छेद को हटा दिया गया है। अब अवसर है कि गुलाम कश्मीर माने जाने वाले पीओके, गिलगिट और बाल्टिस्तान को पाक के शिकंजे से मुक्त करके भारत में विलय कर लिया जाए। 

प्रमोद भार्गव


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