जी-20 : सांस्कृतिक छाया में शिखर बैठक

Last Updated 10 Sep 2023 01:29:33 PM IST

दिल्ली में जी-20 सम्मेलन इस बार सनातन संस्कृति की छाया में होगा। इसी भाव को दृष्टि में रखते हुए शिखर सम्मेलन स्थल पर भगवान शिव की 28 फीट ऊंची ‘नटराज’ प्रतिमा को प्रतीक रूप में स्थापित किया गया है।


जी-20 : सांस्कृतिक छाया में शिखर बैठक

इस प्रतिमा में शिव के तीन प्रतीक-रूप परिलक्षित हैं। ये उनकी सृजन यानी कल्याण और संहार अर्थात विनाश की ब्रह्मांडीय शक्ति का प्रतीक हैं। अष्टधातु की यह प्रतिमा प्रगति मैदान में ‘भारत मंडपम’ के द्वार पर लगाई गई है।

इस प्रतिमा की आत्मा में सार्वभौमिक स्तर पर सर्व-कल्याण का संदेश अंतर्निहित है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसी शात दर्शन से भारतीय संस्कृति के दो सनातन शब्द लेकर ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के विचार को सम्मेलन शुरू होने के पूर्व प्रचारित करते हुए कहा है कि ‘पूरी दुनिया एक परिवार है। यह ऐसा सर्वव्यापी और सर्वकालिक दृष्टिकोण है, जो हमें एक सार्वभौमिक परिवार के रूप में प्रगति करने के लिए प्रोत्साहित करता है। एक ऐसा परिवार जिसमें सीमा, भाषा और विचारधारा का कोई बंधन नहीं है। जी-20 की भारत की अध्यक्षता के दौरान यह विचार मानव केंद्रित प्रगति के आह्वान के रूप में प्रकट हुआ है। हम एक धरती के रूप में मानव जीवन को बेहतर बनाने के लिए एक साथ आ रहे हैं, जिससे सब एक-दूसरे के सहयोगी बने रहें और समान एवं उज्ज्वल भविष्य के लिए एक साथ आगे बढ़ते रहें।’ विश्व कल्याण का यह विचार आज तक किसी अन्य देश के राष्ट्र प्रमुख ने नहीं दिया। क्योंकि ये देश असामनता के संदर्भ में ही अपने पूंजीवादी, बाजारवादी और उपभोक्तावादी एजेंडे को आगे बढ़ाते रहे हैं। पश्चिमी देशों द्वारा हथियारों का उत्पादन और फिर उनके खपाने का प्रबंध कई देशों की प्रत्यक्ष लड़ाई और देशों के भीतर ही धर्म और संस्कृति के अंतर्कलहों में हम देखते रहे हैं। अतएव विव्यापी भाईचारे के लिए वसुधैव कुटुंबकम् से उत्तम कोई दूसरा विचार हो ही नहीं सकता।

थोड़ा ठहरकर शिव के ‘नटराज’ रूप के प्रतीक रहस्यों को समझ लेते हैं। यह प्राचीन कथा स्कंद पुराण में मिलती है। यह शिव के थिलाई-वन में घूमने और इसी वन में ऋषियों के एक समूह के रहने से जुड़ी है। थिलाई वृक्ष की एक प्रजाति है, जिसका चितण्रमंदिर की प्राचीरों पर भी मिलता है। परिवार सहित रहने वाले ये ऋषि मानते थे कि मंत्रों की शक्ति से देवताओं को वश में किया जा सकता है। एक दिन शिव दिगम्बर रूप में अलौकिक सौंदर्य और आभा के साथ इस वन से गुजरे। शिव के इस मोहक रूप से ऋषि पत्नियां मोहित हो उठीं और यज्ञ एवं साधना से विचलित होकर शिव के पीछे दौड़ पड़ीं इस अप्रत्याशित घटनाक्रम से साधुगण क्रोधित हो उठे और उन्होंने मंत्रों का आह्वान कर शिव के पीछे विषैले सर्प छोड़ दिए। शिव ने सपरे को गहना मानकर एक को गले में, एक को शिखा पर और एक को कमर में धारण कर लिया। शिव का यह उपक्रम वन्य जीवों के संरक्षण द्योतक है। कलात्मक ढंग से जीने का सत्य-चित्त आनंद अर्थात सच्चिदानंद के साथ जीना ही श्रेस्यकर है। इन सब को शिव के वशीभूत देखा, तब ऋषि ईर को ही सत्य मानते हुए शिव के समक्ष समर्पण कर देते हैं। गोया इस प्रतीक में विश्व कल्याण का संदेश प्रकट है। इन्हीं संदेशों की कड़ी में भारतीय प्रधानमंत्री का मानना है कि कोविड महामारी ने विश्व व्यवस्था को बदल दिया है।

नतीजतन तीन महत्त्वपूर्ण परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं। पहला; यह अनुभव हो रहा है कि दुनिया के जीडीपी केंद्रित दृष्टिकोण से हटकर मानव केंद्रित दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। दूसरा, दुनिया वैिक सप्लाई चेन में सुदृढ़ता और विसनीयता के महत्त्व को पहचान रही है। तीसरा, वैिक संस्थानों में सुधार के माध्यम से बहुपक्ष को बढ़ावा देना। ये प्रयोजन सिद्ध हो जाते हैं तो एक बड़ा वैिक मानव समुदाय चैन की नींद सोने लायक हो जाएगा, लेकिन इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान भी देश गुटों में विभाजित हैं, जबकि भारत विभिन्न पांच मुद्रदों पर आम सहमति बनाने में जुटा है। इन मुद्दों में रूस-यूक्रेन युद्ध की समाप्ति, महंगाई पर नियंत्रण और खाद्य-आपूर्ति, ऊर्जा, हथियारों की होड़ और जलवायु परिवर्तन। भारत की कोशिश है कि इन पांच मुद्दों पर सम्मेलन के अंतिम दिन एक संयुक्त बयान जारी हो जाए इस पर सहमति बनने का दावा किया जा रहा है।

प्रमोद भार्गव


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