भू-जल संकट : सुप्रबंधन से ही निकलेगा समाधान

Last Updated 06 Sep 2023 01:15:10 PM IST

हाल ही में आई एक खबर जिसने समूची दुनिया का ध्यान आकर्षित किया, कि अंटार्कटिका के कुछ हिस्सों में जलवायु परिवर्तन की वजह से विगत वर्ष में ‘एंपरर पेंगुइन‘ की कॉलोनी के सभी नवजात चूजों की मौत हो गई। कारण था- तापमान बढ़ने से बर्फ का समय से पूर्व पिघलना।


भू-जल संकट : सुप्रबंधन से ही निकलेगा समाधान

जिसके साथ चूजे परिपक्व होने से पूर्व ही बह गए। लगातार बढ़ता तापमान समूचे प्राकृतिक सिस्टम को उथल-पुथल कर रहा है। पृथ्वी लगातार बढ़ते तापमान के प्रकोप से जूझ रही है जिसका परिणाम गहराते भू-जल संकट के रूप में प्रत्यक्ष रूप से सामने आ रहा है।

भूजल पृथ्वी की सतह से बहुत अधिक गहराई में पाया जाता है। यहां पर यह मिट्टी के छिद्रों या चट्टानों की दीवारों के बीच रिक्त स्थानों में समाहित रहता है। जब भूजल का अत्यधिक मात्रा में दोहन किया जाता है तब उन रिक्त स्थानों को आसपास के पदार्थ भरने का प्रयास करते हैं और इसी प्रक्रिया के दौरान पृथ्वी की सतह का नीचे की और धंसाव होने लगता है। इस धंसाव वाले क्षेत्र के बाढ़ की चपेट में आने की अत्यधिक संभावना रहती है। मानव के रहवास वाला क्षेत्र एवं बुनियादी ढांचा भी दुष्प्रभावित होता है। भूमि क्षरण के सही प्रभावों का आकलन करने के लिए, विस्तृत ज़मीनी विश्लेषण के साथ ओवरलैप किए गए कम्प्यूटेशनल डेटा की आवश्यकता होती है। फिर भी, यह अनुमान लगाया गया है कि 2040 तक दुनिया के कुल सतह का लगभग 8 फीसद भूमि के क्षरण होने की संभावना है।

अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के अनुसार बढ़ते तापमान के साथ 2040 से 2080 के बीच भूजल दोहन की मांग तीन गुना बढ़ जाएगी। ये नतीजे एक सितंबर 2023 को  अंतरराष्ट्रीय जर्नल साइंस एडवांसेज  में प्रकाशित हुए हैं। अनुमान है कि आगामी 20 से 40 वर्षो में ही जल की उपलब्धता में आने वाली गिरावट से एक तिहाई लोगों की जीविका पर खतरा मंडराने लगेगा। गौरतलब है कि भारत विश्व में सर्वाधिक भूजल दोहन करने वाले देशों में अग्रणी है।भारत के केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) के अनुसार, भारत में उपयोग किये जाने वाले कुल जल का लगभग 70 फीसद भूजल स्रोतों से प्राप्त होता है यह भी अनुमान है कि देश के कुल भूजल निष्कषर्ण का लगभग 25 फीसद असंवहनीय है, यानी पुनर्भरण की तुलना में निष्कषर्ण दर अधिक है।

सीजीडब्लूबी के अनुसार, भारत में कृषि भूमि की सिंचाई के लिए हर साल 230 बिलियन मीटर क्यूबिक भूजल का दोहन किया जाता है। देश में कुल अनुमानित भूजल की कमी 122-199 बिलियन मीटर क्यूबिक की सीमा में है। दोहन किए गए भूजल का 89 फीसद सिंचाई क्षेत्र में उपयोग किया जाता है, जो देश में उच्चतम है। इसके बाद घरेलू उपयोग के लिए भूजल का स्थान आता है जो भूजल का 9 फीसद है। भूजल का औद्योगिक उपयोग 2 फीसद है। शहरी जल की 50 फीसद और ग्रामीण घरेलू जल की 85 फीसद जरूरत भी भूजल से ही पूरी होती है। रीतती धरती और भूमि धंसाव के गंभीर संकटों को देखते हुए जल के उचित प्रबंध की ओर सर्वाधिक ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। इस दिशा में केंद्र और राज्य सरकारों को सामूहिक प्रयास करने होंगे।

समुदायों/हितधारकों की भागीदारी के माध्यम से तैयार की गई ग्राम/ग्राम पंचायत स्तर की जल सुरक्षा योजना के आधार पर सतह और भूजल के संयुक्त उपयोग की अवधारणा को बढ़ावा देना होगा। अटल भूजल योजना के तहत सामुदायिक भागीदारी के साथ भूजल संसाधनों के सतत् प्रबंधन के लिए प्रयास करने होंगे। जल शक्ति अभियान जो कि क्षेत्रों में भूजल की स्थिति सहित पानी की उपलब्धता में सुधार के लिए देश के 256 जल संकटग्रस्त जिलों में वर्ष 2019 में शुरू किया गया था। इसे जन भागीदारी के साथ पूर्णत: अमल में लाना होगा। प्राचीन जल संरक्षण पद्धतियों के माध्यम से भू जल रिचार्ज करना होगा। पुनर्भरण संरचनाओं के निर्माण, पारंपरिक जल निकायों के कायाकल्प, गहन वनीकरण आदि पर विशेष जोर देना होगा। शहरी क्षेत्रों में (जहां भूजल स्तर सतह से पांच-छह मीटर नीचे है) ‘ग्रीन कॉरिडोर’ का निर्माण कर, बाढ़ जल के संग्रहण के लिए संभावित रिचार्ज जोन हेतु चैनलों का मानिचतण्रकर और कृत्रिम भूजल पुनर्भरण संरचनाओं का निर्माण कर भूजल की कमी को कम किया जा सकता है।

स्वच्छ वष्रा जल से भूजल पुनर्भरण के लिए निष्क्रिय बोरवेलों का उपयोग करना भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है। उद्योगों के लिए ‘जल प्रभाव आकलन’ की आवश्यकता को अनिवार्य किया जाना चाहिए। साथ ही एक ‘ब्लू र्सटििफकेशन’ शुरू किया जाना चाहिए जो उद्योगों द्वारा जल के पुनर्भरण एवं पुन:उपयोग के आधार पर उनकी रेटिंग करे। जल  के वैकल्पिक स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देने से उपचारित अपशिष्ट जल, के उपयोग को प्रोत्साहित करने से भूजल की मांग को कम करने में मदद मिल सकती है। जल  संरक्षण संबंधी शिक्षा और जागरूकता अभियान द्वारा जल संरक्षण के महत्त्व और भूजल की कमी को रोकने की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाई जाए। इन उपायों को व्यावहारिक रूप से लागू करके हम स्वयं के भविष्य की रक्षा करने के साथ-साथ आने वाली पीढ़ी की सुरक्षा को भी सुनिश्चित कर सकते हैं और यह करना ही होगा। क्योंकि जल है तो जीवन है।

डॉ. हंसा मीना


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