महिला फुटबॉल : समानता का दमखम

Last Updated 28 Aug 2023 01:31:14 PM IST

लैंगिक संघर्ष आज ऐसा तकाजा है, जिसकी अवहेलना किसी भी क्षेत्र में मुश्किल है। दिलचस्प है कि खेल और खेल के मैदान का लैंगिक चेहरा तेजी से बदला है, जो किसी रोमांच से कम नहीं।


महिला फुटबॉल, समानता का दमखम

हाल में ऐसा ही रोमांच महिला फुटबॉल विश्व कप में देखने को मिला। स्पेन की इंग्लैंड पर 1-0 से करीबी जीत का यह रोमांच पुरुषवादी सत्ता, उसके दमखम के दावे को चुनौती देता है।
प्रतियोगिता में छोटे-छोटे देशों की हिस्सेदारी और महिला खिलाड़ियों के उत्साह ने 60 के दशक की यादें ताजा कर दीं। उस समय एथलेटिक्स में भागादारी के लिए महिलाओं ने जो संघर्ष किया आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है। बॉबी गिब ने मैराथन में महिलाओं की हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए जो किया वह मिसाल है।

तब महिलाओं को लंबी दूरी की दौड़ में भाग लेने का हक नहीं था। आयोजकों का मानना था कि महिलाओं में इतना स्टेमिना ही नहीं कि लंबी दूरी तय कर पाएं। बॉबी ने इसी सोच पर प्रहार करने के लिए अपने भाई के कपड़ों में प्रतिष्ठित बोस्टन मैराथन में लड़का बन कर भाग लिया। उन्होंने तीन घंटा 21 मिनट 40 सेकेंड में दौड़ पूरी की। खास बात थी कि हिस्सा ले रहे दो तिहाई से ज्यादा पुरु ष उनसे पीछे थे। उनके इस जज्बे ने ही 1972 में स्त्रियों को आधिकारिक रूप से मैराथन दौड़ने का अधिकार दिलाया।

फीफा विश्व कप 2023 भी कई मायने में उसी दौर की पुनरावृत्ति है। प्रतियोगिता को कई बार आलोचना और प्रशंसकों की कमी का सामना करना पड़ा। हालांकि, फाइनल के दिन सिडनी के जगमगाते आसमान तले 75 हजार से अधिक प्रशंसकों की मौजूदगी में दुनिया ने स्पेन को अपना पहला विश्व कप उठाते देखा तब यह किसी प्रतियोगिता में महिलाओं की ही जीत नहीं थी, बल्कि उस सोच पर भी करारा प्रहार था जो महिलाओं को कमजोर मानती है। स्पेन अब जर्मनी के साथ उन दो देशों में शुमार हो गया है, जिन्होंने पुरुष और महिला, दोनों खिताब जीते हैं।

प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट स्पेन की आइताना बोनमाती, सेमीफाइनल और फाइनल, दोनों में स्पेन के लिए विजयी गोल दागने वाली स्पेन की ओल्गा कारमोना, सबसे अधिक पांच गोल करने वाली जापान की हिनाता मियाजावा और सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर इंग्लैंड की मैरी अर्प्स जैसी खिलाड़ियों ने दशर्कों को मंत्रमुग्ध कर दिया। विश्व कप शुरू होने से पहले अमेरिका और इंग्लैंड में से किसी एक को दावेदार माना जा रहा था, लेकिन स्पेन की ‘टिकी टका’ रणनीति ने सभी को पस्त कर दिया।

उसके खिलाड़ियों ने छोटे-छोटे पास देकर गेंद को अपने पास रखा और फाइनल में इंग्लैंड की टीम एक गोल के लिए तरस गई। पुरु ष विश्व कप की तरह ही महिला विश्व कप में भी काफी तेज गेम खेला गया। ज्यादातर ‘फील्ड गोल’ हुए यानी खिलाड़ियों ने खेल के क्रम में ही गोल दागे। इंग्लैंड या जापान जैसी टीमें जिस ‘डेड बॉल सिचुएशन’ (फ्री किक, कॉर्नर किक आदि से मिलने वाले गोल) पर भरोसा करती हैं, वह तुलनात्मक रूप से कम दिखा। नतीजा यह हुआ कि कई अप्रत्याशित गोल हुए। जैसे, गोल पोस्ट के बिल्कुल किनारे डंडे के पास गोल किए गए, जो मुश्किल माने जाते हैं।

विश्व कप की खासियत रही कि इसने महिला फुटबॉल के व्यापक भौगोलिक विस्तार को भी प्रदर्शित किया।  पुरु षों में यूरोप और दक्षिण अमेरिका के देश वर्चस्वशाली ताकत रहे हैं, लेकिन महिलाओं के इस टूर्नामेंट के नौ संस्करणों के छोटे इतिहास में केवल चार बार विजेता इन दो क्षेत्रों से रहे। 2023 में जर्मनी, कोलंबिया से पराजित होने के अलावा ग्रुप दौर में ही बाहर हो गया। 2011 के विश्व चैंपियन जापान ने इस बार अंतिम विजेता स्पेन को प्रारंभिक चरण में 4-0 से धोया। मोरक्को ने शीर्ष 16 में जगह बनाकर इतिहास रचा जबकि मेजबान ऑस्ट्रेलिया ने चौथे स्थान पर रहकर अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदशर्न किया। चार बार का चैंपियन अमेरिका (जिसकी अगुवाई संन्यास ले रहीं स्टार मेगन रैपिनो कर रही थीं) पहली बार पोडियम पर जगह नहीं बना पाया, लेकिन इससे गुणवत्ता के मामले में टूर्नामेंट की समग्र गहराई ही साबित हुई। अपना छठा और आखिरी विश्व कप खेलने वाली ब्राजील की दिग्गज खिलाड़ी मार्ता ने भी नहीं सोचा था कि महिला फुटबॉल की यह ऊंचाई उनके खेलने के दौरान ही दिखेगी। उन्होंने कहा कि जब मैंने शुरू किया था तब महिला फुटबॉल में कोई आदर्श नहीं था।

बीस साल बाद, हम बहुत सी महिलाओं के लिए एक संदर्भ बन गए हैं। यह बयान महिलाओं के विकास की कहानी बता रहा है। महिलाओं को मौका देने और उनके विकास के लिए लगातार काम करते रहने के लिए विश्व फु़टबॉल संस्था फीफा को भी श्रेय जाता है।

संदीप भूषण


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