सरोकार : जिनकी रोशनी से आबाद है चांदनी

Last Updated 27 Aug 2023 01:33:31 PM IST

खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी। स्वर्णिम इतिहास लिखा जा चुका है। चांद से धरती की दूरी मिनटों में पूरी होने की कवायद ने दक्षिणी हिस्से को नीले ग्रह के पास बहुत करीब ला दिया है। इस मिलन के केंद्र में महिलाओं ने अपने दायित्व बोध का बखूबी निर्वहन किया है।


सरोकार : जिनकी रोशनी से आबाद है चांदनी

इसरो पल-पल जब इतिहास गढ़ने की दिशा में प्रतीक्षारत था तब ISRO की सबसे वरिष्ठ महिला वैज्ञानिक अनुराधा टी, सेटेलाइट प्रोजेक्ट का नेतृत्व संभालने वाली मुथैया वनिता, सिस्टम इंजीनियर मीनल रोहित, रॉकेट वुमन ऋतु कर्धियाल, इसरो इंजीनियर मैमिता दत्ता, रॉकेट वैज्ञानिक नंदिनी हरिनाथ और इंजीनियर डॉ वीआर ललितांबिका जैसी साहसी महिलाएं चंद्रयान 3 परियोजना का हिस्सा बन कीर्तिमान गढ़ने की दिशा में आगे बढ़ रही थीं। चंद्रयान-3 की सफलता के बाद पूरी दुनिया उनकी सूझबूझ और सकारात्मक कदमों का लोहा मान रही है।

अगर उनकी कामयाबी और श्रम की गणना करें तो चंद्रयान 3 की डिप्टी डायरेक्टर डॉ. कल्पना ने बीते चार साल में अथक मेहनत की है। कोरोना माहामारी के दौर की मुश्किलें भी उनके हौसले को डिगा नहीं पाई। भारत के किसी भी मून मिशन का नेतृत्व करने पहली महिला बनने का गौरव प्राप्त कर चुकी बेहद मृदुभाषी और विनम्र सुश्री एम वनिता भी इसमें पीछे नहीं रहीं। इनके योगदान को इतिहास कभी भूल नहीं पाएगा। भारतीय अनुसंधान संस्थान (इसरो) के कई महत्त्वपूर्ण मिशनों में उन्होंने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

साठ से नब्बे के दौर में अधिकांशत: वे प्रयोगशाला की दीवारों तक ही सिमटी रहीं लेकिन मौजूदा दौर में उनके अभूतपूर्व योगदान और उपलब्धियों ने उन्हें मुख्यधारा के वैज्ञानिकों की पांत में ला खड़ा किया है। अकेले इसरों में 16 हजार से ज्यादा महिला वैज्ञानिक अपनी छोटी-बड़ी भूमिका में पुरु षों के साथ कदमताल करती हुई शोध, अनुसंधान और निर्माण कार्य में लगातार अपना योगदान दे रही हैं। हालांकि इस क्षेत्र में सक्रिय महिलाओं की एक लंबी फेहिरस्त है, लेकिन कुछ नाम ऐसे हैं, जिनके अवदान को कभी नहीं भूला जा सकता। इनमें टेसी थॉमस का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है, जिन्होंने अग्नि 4 और अग्नि 5 (मिसाइल) मिशन में अपना उल्लेखनीय योगदान दिया था।

सामाजिक अध्ययन बताते हैं कि महिला वैज्ञानिक पुरु षों की तुलना में कहीं ज्यादा सक्रिय, तर्कशील और उचित निर्णय लेने में सक्षम होती हैं। उनकी नेतृत्व कला की अद्भूत क्षमता उन्हें भीड़ से अलग बनाती है। इसी काबिलियत के चलते आज डीआरडीओ से लेकर कई महत्त्वपूर्ण संस्थानों में महिलाएं 2000 से भी ज्यादा जूनियर वैज्ञानिकों का सफल नेतृत्व कर देश को सफलता के मार्ग पर अग्रसित कर रही हैं। किसी भी परिस्थिति में खुद को समायोजित कर बेहतर कौशल और क्षमता का परिचय देने में माहिर ये महिलाएं तमाम असमानताओं, आशंकाओं और पूर्वाग्रहों पर पूर्णविराम लगा अपनी राह आगे बढ़ रही हैं।

इन महिला वैज्ञानिकों का मनोबल ऊंचा रहे, इसके लिए जरूरी है कि उन्हें न केवल आर्थिक मदद  मुहैया कराई जाए, बल्कि समय-समय पर उन्हें प्रोत्साहित भी किया जाए ताकि भविष्य में उनके लिए संभावनाओं के द्वार खुलें और महिला वैज्ञानिकों की एक नई खेप तैयार हो। अब समय आ गया है कि उनकी उपलब्धियों और योगदानों को गंभीरतापूर्वक स्वीकारा और सराहा जाए तभी राष्ट्र का सर्वागीण विकास सुनिश्चित किया जा सकेगा। आखिर, चांद की चांदनी भी तो इन्हीं वीरांगनाओं से आबाद है।

डॉ. दर्शनी प्रिय


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