समुद्र तट का सिकुड़ना चिंताजनक

Last Updated 25 May 2023 01:30:46 PM IST

केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत नेशनल सेंटर फॉर कोस्टल रिसर्च (NCCR) की ताजातरीन रिपोर्ट चेता रही है कि देश की समुद्री सीमा कटाव और अन्य कारणों के चलते सिकुड़ रही है।


समुद्र तट का सिकुड़ना चिंताजनक

अकेले तमिलनाडु में राज्य के कुल समुद्री किनारों का कोई 42.7 हिस्सा संकुचन की चपेट में आ चुका है। हालांकि कोई 235.85 किमी. की तट रेखा का विस्तार भी हुआ है। जब समुद्र के किनारे कटते हैं, तो उसके किनारे रहने वाले मछुआरों, किसानों और बस्तियों पर अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाता है। चिंता की बात है कि समुद्र से जहां नदियों का मिलन हो रहा है, वहां कटाव अधिक है। इससे नदियों की पहले से खराब सेहत और बिगड़ सकती है।

ओड़िशा के जिलों बालासोर, भद्रक, गंजम, जगतसिंघपुर, पुरी और केंद्रपाड़ा की लगभग 480 किमी. समुद्र रेखा पर भी कटाव का संकट गहरा गया है। ओड़िशा जलवायु परिवर्तन कार्य योजना, 2021-2030 में बताया गया है कि राज्य में 36.9 फीसद समुद्र किनारे तेजी से समुद्र में टूट कर गिर रहे हैं। यूनिर्वसटिी ऑफ केरल, त्रिवेंद्रम द्वारा किए गए और जून-22 में प्रकाशित हुए शोध में बताया गया है कि त्रिवेंद्रम जिले में पोदियर और अचुन्थंग के बीच के 58 किमी. के समुद्री तट का 2.62 वर्ग किमी. हिस्सा बीते 14 सालों में सागर की गहराई में समा गया। शोध बताता है कि 2027 तक कटाव की रफ्तार भयावह हो सकती है। वैसे इस शोध में एक बात और पता चली कि इसी अवधि में समुद्र के बहाव ने 700 मीटर नई धरती भी बनाई है।

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत काम करने वाले चेन्नई स्थित नेशनल सेंटर फॉर सस्टेनेबल कोस्टल मैनेजमेंट के आंकड़े बताते हैं कि देश में कुल 6907 किमी. की समुद्री तट सीमा है, और बीते 28 सालों के दौरान हर जगह यह कुछ न कुछ क्षतिग्रस्त हुई ही है। देश में सर्वाधिक समुद्र तटीय क्षेत्र गुजरात में 1945.60 किमी. है, और यहां 537.50 किमी. कटाव दर्ज किया गया है, आंध्र प्रदेश के कुल 1027.58 किमी. में से 294.89, तमिलनाडु में 991.47 में से 422.94 किमी. में कटाव देखा जा रहा है। पुदुचेरी, जो कभी सबसे सुंदर समुद्र तटों के लिए विख्यात था, भी धीरे-धीरे अपने किनारों को खो रहा है। दमन दीव जैसे छोटे द्वीप में 34.6 प्रतिशत तट पर कटाव का असर सरकारी आंकड़े मानते हैं। केरल के कुल 592.96 किमी. के समुद्री तट में से 56.2 फीसद धीरे-धीरे कट रहा है। कोस्टल रिसर्च सेंटर ने देश में ऐसे 98 स्थानों को चिन्हित किया है, जहां कटाव तेजी से है। इनमें से सबसे ज्यादा और चिंताजनक 28 स्थान तमिलनाडु में हैं। पश्चिम बंगाल में 16 और आंध्र में 7 खतरनाक कटाव वाले स्थान हैं।

कोई एक दशक पहले कर्नाटक के सिंचाई विभाग द्वारा तैयार ‘राष्ट्रीय समुद्र तट संरक्षण रिपोर्ट’ में कहा गया था  कि सागर-लहरों की दिशा बदलना कई बातों पर निर्भर करता है। लेकिन इसका सबसे बड़ा कारण समुद्र के किनारों पर बढ़ते औद्योगिकीकरण और शहरीकरण से तटों पर हरियाली का गायब होना है। हवा का रु ख, ज्वार-भाटे और नदियों के बहाव में आ रहे बदलाव भी समुद्र को प्रभावित कर रहे हैं। कई भौगोलिक परिस्थितियां जैसे-बहुत सारी नदियों के समुद्र में मिलन स्थल पर बनीं अलग-अलग कई खाड़ियों की मौजूदगी और नदी-मुख की स्थिति में लगातार बदलाव भी समुद्र के अस्थिर व्यवहार के लिए जिम्मेदार हैं। ओजोन पट्टी के नष्ट होने और वायुमंडल में कार्बन मोनो आक्साइड की मात्रा बढ़ने से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। इससे समुद्री जल का स्तर बढ़ना भी इस तबाही का एक कारक हो सकता है।

मुंबई हो या कोलकता हर जगह जमीन के कटाव को रोकने वाले मेग्रोव शहर का कचरा घर बन गए हैं। पुरी समुद्र तट पर लगे खजरी के सभी पेड़ काट दिए गए। पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 में तहत बनाए गए सीआरजेड में समुद्र में आए ज्वार की अधिकतम सीमा से 500 मीटर और भाटे के बीच के क्षेत्र को संरक्षित घोषित किया गया है। इसमें समुद्र, खाड़ी, उसमें मिलने आ रहे नदी के प्रवाह को भी शामिल किया गया है। ज्वार यानी समुद्र की लहरों की अधिकतम सीमा के 500 मीटर क्षेत्र को पर्यावरणीय संवेदनशील घोषित कर इसे एनडीजेड यानी नो डवलपमेंट जोन (किसी भी निर्माण के लिए प्रतिबंधित क्षेत्र) घोषित किया गया। इसे सीआरजेड-1 भी कहा गया। सीआरजेड-2 के तहत ऐसे नगर पालिका क्षेत्रों को रखा गया है, जो पहले से ही विकसित हैं। सीआरजेड-3 किस्म के क्षेत्र में वह समुद्र तट आता है, जो सीआरजेड-1 या 2 के तहत नहीं है। यहां किसी भी तरह के निर्माण के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति आवश्यक है। सीआरजेड-4 में अंडमान, निकोबार और लक्षद्वीप की पट्टी को रखा गया है। 1998 में  केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने राष्ट्रीय समुद्र तट क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण और इसकी राज्य इकाइयों का भी गठन किया ताकि सीआरजेड कानून को लागू किया जा सके। लेकिन ये सभी कानून कागज पर ही दिखते हैं।

पंकज चतुर्वेदी


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