सामयिक : झटके में गाड़ियां कबाड़

Last Updated 24 May 2023 01:46:11 PM IST

बीता साल कारों की रिकॉर्ड बिक्री का था तो अब लगभग हर महीने कारों की बिक्री का नया रिकॉर्ड बन रहा है।


सामयिक : झटके में गाड़ियां कबाड़

इसमें भी हिसाब यह है कि अब दुपहिया वाहनों और छोटी कारों की बिक्री की तेजी खत्म हो गई है, या गिरने लगी है। बड़ी कारों की बिक्री बढ़ रही है, सरकार की इच्छा के अनुसार इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री तेज हुई है। इ-रिक्शा में तेजी है। दिल्ली जैसे शहर के प्रदूषण में भी कुछ राहत है पर इससे भी ज्यादा आश्चर्यजनक एक आंकड़ा सामने आया है।

दिल्ली में पंजीकृत वाहनों की संख्या में पिछले वर्ष अर्थात 2021-22 में सीधे 35.4 फीसदी कमी हो गई है। करीब एक तिहाई से ज्यादा की कमी है, ऐसा सत्रह साल में पहली बार हुआ है। 2020-21 में दिल्ली में 1.2 करोड़ पंजीकृत वाहन थे जो 2021-22 में 79.2 लाख रह गए। अब प्रदूषण में कमी वाला मामला तो खुश होने का था लेकिन वाहनों की संख्या वाले इस विरोधाभास पर हंसें या रोएं, यह फैसला करना आसान नहीं है। जब दिल्ली सरकार ने 48,77,646 वाहनों का पंजीयन समाप्त किया तो कुछ सोचकर या किसी कायदे से ही किया होगा, लेकिन उससे भी बड़ी बात है कि ये सारे वाहन किसी न किसी के उपयोग में थे, किसी का जीवन चला रहे थे, उनकी शान थे। अचानक हुई उनकी विदाई ने इन लोगों के जीवन और जेब पर असर तो डाला ही होगा। यह और बात है कि हमको-आपको चूं की आवाज भी सुनाई नहीं दी।

असल में जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2020-21 के बजट में निजी वाहनों और व्यावसायिक वाहनों को जोड़कर करीब अस्सी लाख गाड़ियों को ‘स्क्रैप’ करने की बात की थी और साथ ही पुराने वाहनों के बारे में नई नीति लाने की घोषणा की थी तब भी कहीं से कोई आवाज नहीं आई थी जबकि उस बजट में घोषित लघु बचत के सूद की कटौती शोर-शराबे के चलते वापस ले ली गई थी। इसके बाद नई नीति के कुछ संकेत परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने दिए थे। यह फैसला सिर्फ  नई गाड़ियों के लिए नहीं था बल्कि उन गाड़ियों पर भी लागू हुआ जिनका पंद्रह और बीस साल का रोड टैक्स पहले वसूला जा चुका था और इस गैर-कानूनी फैसले और सरकार ने स्क्रैप गाड़ी का चेचिस नम्बर बताने पर नई गाड़ी खरीदने पर हल्की छूट की घोषणा इस तरह की जैसे अपनी तरह से कोई बोनस दे रहा हो। उससे पहले से भी ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिल्ली-एनसीआर में गाड़ियों की जीवन अवधि बिना किसी वैज्ञानिक या तार्किक आधार के तय करके हंगामा मचाया और जब तक नई ऑटोमोबाइल नीति घोषित होती तब तक लाखों गाड़ियां सचमुच के कबाड़ वाले अंदाज में बिक गई तब स्वामीनाथन अय्यर जैसे कई लोगों ने सवाल उठाया कि पूरी नीति लागू होगी तब क्या होगा यह कल्पना मुश्किल है। अब हकीकत सामने आने पर स्वामी ने भी चुप्पी साथ ली है। कहना न होगा कि मामला दिल्ली भर का नहीं है। अगर अकेले दिल्ली में एक साल में 48 लाख से ज्यादा गाड़ियां कबाड़ घोषित हुई हैं, तो देश भर की संख्या से निर्मला जी और गडकरी साहब बहुत खुश होंगे ही।

अब जिनके मत्थे दस साल से पुरानी डीजल और पंद्रह साल से पुरानी पेट्रोल गाड़ियों को कबाड़ में बेचने की बाध्यता आई होगी उनका क्या हाल हुआ, वह किसी ने नहीं जाना। काफी सारे लोगों का कामकाज प्रभावित हुआ होगा तो कुछ बिना वाहन के रह गए होंगे और नित बदहाल और लुटेरी बनती सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था के भरोसे जीवन की गाड़ी खींचने लगे होंगे। बताना न होगा कि इस बीच रेलवे ने लोकल की हालत खराब कर दी है, तो अधिकांश शहरों की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था बदहाल हुई है। जहां तक नई नीति की बात है तो वह आज भी गोलमोल ही है, और उसके खिलाफ आए मुकदमों की स्थिति भी साफ नहीं है। नई नीति को गोलमोल इसलिए कहा गया है कि इसमें वाहनों के फिटनेस टेस्ट और ग्रीन टैक्स लेकर चलने देने की इजाजत की चर्चा थी लेकिन न फिटनेस के मानकों की चर्चा है, न ग्रीन टैक्स की दर की। माना गया कि कंपनियों को ही गाड़ियों का फिटनेस टेस्ट करना होगा (जिनको गाड़ी के अनफिट होने का सबसे ज्यादा लाभ होगा)। ऐसे सेंटर बनाना आसान भी नहीं था और गाड़ियों की संख्या को देखते हुए यह भी एक बड़े निवेश की मांग करता था। यह सब तो हुआ नहीं पुलिस ने गाड़ियां पकड़-पकड़ कर कबाड़ घोषित करा दीं पर जब निर्मला सीतारमण घोषणा कर रही थीं तब उन्होंने जानबूझकर गलत आंकड़ा दिया या पहले कम बता कर जनता का मूड पता करने की रणनीति थी, उन्होंने जो संख्या बताई वह असल संख्या के लगभग चालीस फीसदी भी नहीं मानी जाती।

जानकार मानते हैं कि देश में इस नीति के दायरे में आने वाले वाहनों की संख्या चार से साढ़े चार करोड़ के बीच होगी जिनमें से आधे से कम वाहन ही उम्र की सीमा के अंदर हैं। जाहिर है काफी सारे वाहन जिला पंजीयन कार्यालय की पहुंच और जानकारी से भी बाहर होंगे। और निश्चित रूप से ऐसे अधिकांश वाहन दूर देहात के इलाकों में होंगे जिनके लिए प्रसिद्ध अर्थशास्त्री स्वामीनाथन अय्यर (जिनकी कार उम्र की सीमा लांघकर भी फिट है और अमेरिका में रोज दौडती है) अभी भी पुराने वाहनों की सिफारिश करते हैं। स्वामी तो संसाधनों की बर्बादी रोकने के लिए ऐसे पुराने वाहनों को देहाती इलाकों और कम प्रदूषित क्षेत्रों के साथ कम आय वाले मुल्कों में सस्ता निर्यात करने की वकालत भी करते हैं। कार को कबाड़ मानकर तोड़ना, गलाना और उसके मुट्ठी भर धातुओं का दोबारा इस्तेमाल करने से बेहतर तो यही है कि किसी तरह उसमें इस्तेमाल हुई चीजों का तब तक अधिकतम इस्तेमाल किया जाए जब तक वे सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से (अर्थात ज्यादा प्रदूषण फैला कर) हमारे लिए खतरा न बन जाएं।  

यह कल्पना भी आसान नहीं है कि भारत जैसे गरीब मुल्क में बनी गाड़ियों में से दो करोड़ से ज्यादा को हमारी ही सरकार कबाड़ बनाने जा रही है। एक तो भारत जैसे देश में इतनी गाड़ियों के बनने-चलने और सार्वजनिक परिवहन की इस दुर्गति पर भी सवाल उठने चाहिए। इतनी गाड़ियों से रोड टैक्स वसूलने के बाद भी टोल टैक्स वसूली वाली सड़कों पर सवाल उठने चाहिए। लेकिन इनमें से कोई सवाल इतना बड़ा नहीं है कि एक साथ दो-ढाई करोड़ ऐसी गाड़ियों को कबाड़ घोषित करके गिनती की कंपनियों को मालामाल करने के फैसले पर सवाल उठाने की बात भुला दी जाए। ये सभी गाड़ियां (चाहे वे जिस हाल में हैं, जहां हैं) लोगों और अर्थव्यवस्था के काम आ रही थीं।

अरविन्द मोहन


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