मुक्केबाजी : ‘पंच’ ने जगाई उम्मीदें

Last Updated 16 May 2023 12:56:34 PM IST

भारत (India)का विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप (World Boxing Championship) में स्वर्ण पदक जीतने का सपना खासा पुराना है।


मुक्केबाजी : ‘पंच’ ने जगाई उम्मीदें

पिछले दिनों ताशकंद (Tashkent) में हुई विश्व चैंपियनशिप में शानदार प्रदर्शन करके तीन भारतीय मुक्केबाजों ने सेमीफाइनल में स्थान बनाया तो एक बार को लगा कि इस बार इनमें से कोई ना कोई स्वर्ण पदक जीतने का सपना साकार कर देगा, लेकिन तीनों के सेमीफाइनल में बाहर हो जाने से यह सपना एक बार फिर अधूरा रह गया और हमें तीन कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा। हम सभी जानते हैं कि भारत के लिए अब तक सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले अमित पंघाल (Amit Panghal) हैं, उन्होंने 2019 में रजत पदक जीता था। इसके अलावा भारत के लिए अब तक आकाश, मनीष कौशिक, गौरव विधूड़ी, विजेंदर, शिव थापा और विकास कृष्ण ने कांस्य पदक जीते थे। इन कांस्य जीतने वालों के साथ इस बार मोहम्मद हसमुद्दीन, दीपक भोरिया और निशांत देव के नाम भी जुड़ गए हैं।

भारत का एक विश्व चैंपियनशिप में तीन पदक जीतना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। भारत के तीन मुक्केबाज सेमीफाइनल में पहुंचने पर यह उम्मीद की जा रही थी कि इनमें से कोई ना कोई जरूर फाइनल में स्थान बनाएगा। पर तीनों ही सेमीफाइनल से आगे अपनी चुनौती को ले जाने में सफल नहीं हो सके। इन तीनों में हसमुद्दीन दुर्भाग्यशाली रहे कि उन्हें क्वार्टर फाइनल मुकाबले के दौरान घुटने में चोट लगने के कारण सेमीफाइनल में क्यूबा के सेडेल होर्ता के खिलाफ वॉकओवर देना पड़ा। वहीं दीपक और निशांत को करीबी मुकाबलों में अंकों से हारना पड़ा। दीपक को 51 किलो वर्ग में फ्रांस के बिलाल बेनजामा से 3-4 अंकों से और निशांत को 71 किलो वर्ग में ताशकंद (Tashkent) के स्थानीय मुक्केबाज असलानबेक के खिलाफ 2-5 अंकों से हार का समाना करना पड़ा। निशांत ने सेमीफाइनल से पहले तक जिस तरह का प्रदर्शन किया था, इस कारण सबसे ज्यादा उम्मीदें उनसे थीं।

उन्होंने तीन मुकाबले एक राय से जीते थे और एक को तो रेफरी को रुकवाना पड़ा था। यही नहीं क्वार्टर फाइनल में क्यूबा के टैरी जोर्गी क्यूलर के खिलाफ जो धमकदार प्रदर्शन किया था, उससे लग रहा था कि वह फाइनल तक चुनौती जरूर पेश करेगा। पर यह उम्मीदें भी धरी की धरी रह गई। दीपक भोरिया की यहां तक बात है तो वह अपने पूरे कॅरियर में विश्व चैंपियनशिप के रजत पदक विजेता अमित पंघाल की छाया में रहे हैं। पर इस सफलता ने उन्हें अमित से आगे कर दिया है। पर उन्हें इस साल के आखिर में होने वाले एशियाई खेलों में भाग लेना है तो अमित पंघाल की बाधा को पार करना होगा। असल में यह एशियाई खेल अगले साल पेरिस में होने वाले ओलंपिक खेलों का पहला क्वालिफायर होगा। इस 25 वर्षीय मुक्केबाज ने पिछले दिनों राष्ट्रीय शिविर में ट्रायल के दौरान पंघाल को हराकर ताशकंद विश्व चैंपियनशिप में भाग  लेने की पात्रता हासिल की थी और अब वह पदक विजेता भी बन गए हैं।

पंघाल भले ही विश्व चैंपियनशिप में भाग नहीं ले पाए पर अभी भी फ्लाईवेट वर्ग में देश का सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाज माना जाता है। इसलिए इन दोनों के बीच जबर्दस्त संघर्ष देखने को मिल सकता है। दीपक भोरिया ने पदक जीतने के बाद कहा  कि मैं और अमित दोनों अलग स्टाइल के मुक्केबाज हैं। अमित तकनीकी रूप से बहुत मजबूत है। आपके सामने जब अमित जैसे मुक्केबाज की चुनौती होती है तो आपको और बेहतर करने की प्रेरणा मिलती है। दीपक और अमित दोनों ही हरियाणा से ताल्लुक रखते हैं और इस सच को भी जाते हैं कि वे दोनों ही एक-दूसरे की राह का कांटा हैं। दोनों के बीच सर्विसेज चैंपियनशिप में 2017 में मुकाबला हुआ था, जिसे दीपक ने जीतकर राष्ट्रीय चैंपियनशिप में भाग लिया था। इस चैंपियनशिप में जम्मू के मुक्केबाज के खिलाफ नाकआउट में बाहर होने पर वह तीन माह के लिए रिंग से दूर हो गए और इस मौके का अमित पंघाल ने पूरा फायदा उठाया और इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, लेकिन अब दीपक के विश्व चैंपियनशिप का कांस्य पदक जीत लेने से उनकी और अमित की प्रतिद्वंद्विता में और जान आ जाएगी पर इसका भारतीय मुक्केबाजी को फायदा मिलेगा।

ओलंपिक खेलों में शामिल 71 किलो वर्ग में पदक जीतने वाले निशांत की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। अभी करीब सालभर पहले निशांत देव अपना दाहिना हाथ उठाने में खासी मुश्किल महसूस करते थे। उनकी यह समस्या 2019 से ही चली आ रही थी और धीरे-धीरे गंभीर होती जा रही थी। वह दर्द निवारक गोलियां खाकर अभ्यास करते रहते थे। पर उन्हें मार्च 2022 में दाहिने कंधे का ऑपरेशन कराना पड़ा। अब वह इस हाथ के मुक्के के प्रहारों से ही पदक जीतने में सफल रहे हैं। यह कहा जाता है कि वह जब नौ साल के थे, तब उनका करनाल में एक्सीडेंट हो गया था और उनके दाहिने कंधे में रॉड पड़ी थी पर इस रॉड के कारण इनफेक्शन होने से उन्हें इस दिक्कत का सामना करना पड़ रहा था। वह कहते हैं कि सर्जरी के बाद मुझे काफी मेहनत करनी पड़ी और कई बार तो लगता था कि क्या मैं फिर से मुक्केबाजी कर पाऊंगा। पर वह कहते हैं कि उनके परिवार वाले और दोस्त चट्टान की तरह मेरे पीछे खड़े रहे और उसका ही परिणाम है विश्व चैंपियनशिप का पदक।

मनोज चतुर्वेदी


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