श्रमिक दिवस : कानून के बावजूद दुश्वारियां
उद्योग, व्यापार, भवन निर्माण, पुल, सड़कों का निर्माण, कृषि इत्यादि समस्त क्रियाकलाप में श्रमिकों के श्रम का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
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वर्तमान मशीनी युग में भी उनकी महत्ता कम नहीं है। किसी राष्ट्र की आर्थिक प्रगति तथा राष्ट्रीय हितों की पूर्ति का प्रमुख भार श्रमिक वर्ग के कंधों पर होता है। इसी वर्ग के लिए प्रति वर्ष 1 मई को ‘अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस’ (International Labor Day) अथवा ‘मजदूर दिवस’ मनाया जाता है, जिसे ‘मई दिवस’ (May Day) भी कहा जाता है।
भारत में श्रमिक दिवस (Labour Day) मनाए जाने की शुरुआत किसान मजदूर पार्टी के कामरेड नेता सिंगारावेलू चेट्यार के सुझाव पर 1 मई, 1923 को हुई थी। वैसे अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस मनाए जाने की शुरुआत अमेरिका में 8 घंटे से ज्यादा काम न कराने के लिए की गई कुछ मजदूर यूनियनों की हड़ताल के बाद 1 मई, 1886 से हुई थी। दरअसल, वह ऐसा समय था, जब कार्यस्थल पर मजदूरों को चोट लगना या काम करते समय मृत्यु हो जाना आम बात थी। ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने, कार्य करने के घंटे कम करने तथा सप्ताह में एक दिन के अवकाश के लिए मजदूर संगठनों ने पुरजोर आवाज उठाई। 1 मई, 1886 का ही दिन था, जब उनकी पहले पहल हड़ताल हुई। शिकागो शहर के हेय मार्किट चौराहे पर उनकी रोज सभाएं होनी शुरू हो चुकी थीं। 4 मई, 1886 को हेय मार्किट में मजदूरों की हड़ताल के दौरान पुलिस भीड़ को तितर-बितर कर कर रही थी, तभी किसी शख्स ने एकाएक भीड़ पर बम फेंक दिया। उसके बाद पुलिसिया गोलीबारी के कारण कई श्रमिक मारे गए। हालांकि उस समय अमेरिकी प्रशासन पर उन घटनाओं का कोई असर नहीं पड़ा लेकिन बाद में श्रमिकों के लिए 8 घंटे कार्य करने का समय निश्चित कर दिया गया। मजदूरों पर गोलीबारी और मौत के दर्दनाक घटनाक्रम को स्मरण करते हुए ही 1 मई, 1886 से अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस मनाया जाने लगा।
1889 में पेरिस में अंतरराष्ट्रीय महासभा की दूसरी बैठक में फ्रांसीसी क्रांति को याद करते हुए प्रस्ताव पारित किया गया कि इसे ‘अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस’ के रूप में मनाया जाए। उसी समय से वि भर के 80 देशों में ‘मई दिवस’ को राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मान्यता प्रदान की गई। भारत में इसकी शुरुआत 1 मई, 1923 को हुई थी। इस प्रकार भारत में मई दिवस को राष्ट्रीय अवकाश के रूप मान्यता दी गई। तथ्य है कि भले ही मजदूरों के हितों की बड़ी-बड़ी योजनाएं बनती हैं, एकबारगी लगता है कि उनके लिए अब कोई समस्या नहीं बचेगी किन्तु अगले ही दिन मजदूरों को पुन: उसी माहौल से रूबरू होना पड़ता है, फिर वही शोषण, अपमान और जिल्लत भरा जीवन जीने के लिए अभिशप्त होना पड़ता है। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर, किसके लिए मनाया जाता है ‘श्रमिक दिवस’?
विड़म्बना है कि देश की स्वाधीनता के साढ़े सात दशक से भी ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी अनेक श्रम कानूनों को अस्तित्व में लाने के बावजूद हम ऐसी कोई व्यवस्था नहीं कर पाए हैं, जो मजदूरों को उनके श्रम का उचित मूल्य दिला सके। श्रमिक वर्ग की समस्याएं कम नहीं हो सकी हैं। हालांकि सच यह भी है कि अधिकांश श्रमिक या तो अपने अधिकारों के प्रति अनभिज्ञ होते हैं, या अधिकारों के लिए इसलिए आवाज नहीं उठा पाते कि कहीं उनका मालिक उन्हें काम से न निकाल दे। मजदूरों के संगठित क्षेत्र द्वारा ऐसी मांगों पर उन्हें अक्सर कारखाना मालिकों की मनमानी और तालाबंदी का शिकार होना पड़ता है। जहां तक मजदूर संगठनों के नेताओं द्वारा मजदूरों के हित में आवाज उठाने की बात है, तो आज के दौर में अधिकांश ट्रेड यूनियनों के नेता भी भ्रष्ट राजनीतिक तंत्र का हिस्सा बन गए हैं, जो विभिन्न मंचों पर श्रमिकों के हितों के नाम पर शोर तो बहुत मचाते नजर आते हैं, लेकिन निजी स्वाथरे की पूर्ति हेतु कारखानों के मालिकों से सांठगांठ कर अपने ही श्रमिक साथियों के हितों पर कुल्हाड़ी चलाने में संकोच नहीं करते।
श्रमिक दिवस और श्रम के महत्त्व को रेखांकित करते हुए एडम स्मिथ ने बहुत ही स्पष्ट शब्दों में कहा था कि दुनिया की सारी संपदा को सोने अथवा चांदी से नहीं, बल्कि मजदूरी द्वारा खरीदा जा सकता है। अब्राहम लिंकन ने कहा था कि अगर कोई व्यक्ति कहे कि वह अमेरिका पर भरोसा करता है, फिर भी मजदूर से डरता है, तो वह बेवकूफ है, और अगर कोई कहे कि वह अमेरिका से प्यार करता है, फिर भी मजदूर से नफरत करता है, तो वह झूठा है। मार्टनि लूथर किंग जूनियर के शब्दों में कहें तो इंसानियत को ऊपर उठाने वाले सभी श्रमिकों की अपनी प्रतिष्ठा और महत्त्व है। इसलिए श्रम साध्य उत्कृष्टता के साथ किया जाना चाहिए। फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट का कहना था कि किसी व्यवसाय को ऐसे देश में जारी रहने का अधिकार नहीं है, जो अपने श्रमिकों से जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक मजदूरी से भी कम मजदूरी पर काम करवाता है। जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक मजदूरी से उनका आशय सम्मानपूर्वक जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक मजदूरी से था।
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