ग्लोबल साउथ का नेता कौन

Last Updated 30 Apr 2023 01:38:44 PM IST

अंतरराष्ट्रीय राजनीति (International politics) में इन दिनों ग्लोबल साउथ (global south) या तीसरी दुनिया की भूमिका को लेकर चर्चा जारी है।


ग्लोबल साउथ का नेता कौन

शीत-युद्ध (cold war) के दौरान तीसरी दुनिया के रूप में उन देशों को शामिल किया गया था, जो अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ (The Soviet Union) के गठबंधनों से अलग रहने वाले देश थे। सोवियत संघ के विघटन के बाद इस शब्द का प्रयोग अप्रासंगिक हो गया। पश्चिमी देशों के विश्लेषक दावा करने लगे कि दुनिया अब एकध्रवीय हो गई और अमेरिका एकमात्र शक्ति केंद्र है। पिछले 2-3 दशकों के दौरान दुनिया में आए बदलावा के कारण एकध्रवीय वि व्यवस्था का विचार खोखला साबित हुआ है। चीन अपनी आर्थिक और सैनिक ताकत के बलबूते एक वैकल्पिक ध्रुव के रूप में उभर रहा है। दशकों पहले भारत तीसरी दुनिया की अगुवाई करने वाला प्रमुख देश था। जवाहरलाल नेहरू के रूप में गुट-निरपेक्ष आंदोलन को एक चमत्कारिक नेता मिला था। वर्तमान समय में तीसरी दुनिया के स्थान पर अब ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का प्रचलन है। इसका आधार मुख्यत: आर्थिक विकास के स्तर पर निर्धारित है। यह विकसित या अमीर देशों के विपरीत विकासशील और गरीब देशों का समूह माना जाता है।

ग्लोबल साउथ का नेता कौन होगा, इसे लेकर चीन और भारत में प्रतिस्पर्धा हो रही है। एक लोकतांत्रिक और मुक्त समाज के रूप में भारत की दावेदारी पुख्ता है। लेकिन अपनी आर्थिक मजबूती के कारण चीन इस समय ग्लोबल साउथ का केंद्र बना हुआ है। ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे ग्लोबल साउथ के बड़े देश चीन को तवज्जो दे रहे हैं। इतना ही नहीं चीन पर अंकुश लगाने की अमेरिकी रणनीति में भागीदार फ्रांस और जर्मनी जैसे देश भी चीन के साथ सामान्य संबंध बनाए रखने के इच्छुक हैं।

सऊदी अरब और ईरान में राजनयिक मेल-मिलाप कराने में सफलता के बाद चीन का कद और बढ़ गया है। हाल में चीन ने यूक्रेन के युद्ध को समाप्त करने के लिए ऐसी ही पहल की है। ऐसा लगता है कि ग्लोबल साउथ का नेता बनने की होड़ में भारत पिछड़ रहा है। इस हकीकत के ठोस कारण हैं। विकास यात्रा में भारत चीन से कुछ दशक पीछे है। चीन की बराबरी पर आने में उसे लंबा समय लगेगा।

जनसंख्या को लेकर चीन ने उड़ाया भारत का उपहास

इस महीने भारत दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश बन गया है। लेकिन इससे भारत का अंतरराष्ट्रीय कद बढ़ जाएगा ऐसा नहीं है। चीन के विदेश मंत्रालय ने इस संबंध में उपहास करते हुए कहा कि जनसंख्या कितनी है, यह बेमानी है। जनसंख्या की गुणवत्ता कैसी है यह महत्त्वपूर्ण है। इस संबंध में जर्मनी के एक प्रमुख पत्र ने एक काटरून प्रकाशित किया है जिसमें एक ओर चीन की बुलेट ट्रेन है और दूसरी ओर भारत की खस्ताहाल ट्रेन है जिसकी छत पर सैकड़ों लोग सवार हैं। इस काटरून की आलोचना करने से जरूरी बात यह है कि इस स्थिति को बदलने के उपायों पर गंभीरता से विचार किया जाए।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर की कूटनीतिक सक्रियता के कारण भारत के प्रभाव में बढ़ोतरी हो रही है। फिलहाल यह परस्पर विरोधी देशों के बीच संतुलन कायम करके राष्ट्रीय हितों को बढ़ाने की नीति पर आधारित है। यूक्रेन युद्ध यदि आने वाले दिनों में तेज होता है तो भारत पर किसी एक पक्ष का साथ देने का दबाव होगा। मई और जून महीने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण साबित होंगे। अमेरिका और पश्चिमी देशों की सैनिक सहायता के जरिये यूक्रेन यदि जवाबी हमला करता है तो रूस की ओर से प्रभावी प्रतिकार किया जाएगा। इस संघर्ष का विस्तार भी हो सकता है। रूस और नाटो देशों के बीच शक्ति परीक्षण की स्थिति आ सकती है। इन्हीं परिस्थितियों में प्रधानमंत्री मोदी जापान में जी-7 शिखर वार्ता और आस्ट्रेलिया में क्वाड शिखर वार्ता में भाग लेने वाले हैं। यूक्रेन युद्ध की छाया में हो रहे इन सम्मेलनों में भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की कड़ी परीक्षा होगी।

डॉ. दिलीप चौबे


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment