मुद्दा : गांधी और नई शिक्षा नीति

Last Updated 19 Apr 2023 01:38:22 PM IST

मनुष्य जीवन में शिक्षा (Education) सबसे महत्त्वपूर्ण तत्व है। हमारे यहां शिक्षा की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। परंपराओं के साथ-साथ इसमें निरंतर बदलाव भी आता गया।


मुद्दा : गांधी और नई शिक्षा नीति

भारत अपनी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए दुनिया भर में विख्यात था।  इसका  अंदाजा  इस  बात  से  लगाया  जा  सकता  है कि पूरी दुनिया से विद्यार्थी, विद्वान में  वेद, विज्ञान, धर्म और दशर्न आदि को सीखने-समझने भारत आते थे। क्या हम फिर से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (New Education Policy) के जरिए उस गौरव को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़  रहे हैं? इस बात की हमें पड़ताल करनी चाहिए।

इसके  लिए  सबसे पहले इस  बात पर विचार-विमर्श करें कि हमारी समृद्ध शिक्षा परंपरा में  सबसे ज्यादा  गिरावट कब आई। इस क्रम में तब सबसे पहले अंग्रेजी शासन व्यवस्था का  ख्याल आता है। तत्कालीन अध्ययन और  रिपोर्टे भी इस पर मुहर लगा देती हैं।

अंग्रेजों ने हमारी ज्ञान और हुनर आधारित शिक्षा व्यवस्था, जो समाज की  बेहतर संरचना पर  आधारित थी, को सुनियोजित ढंग से नष्ट करने का कार्य किया। उन्हें इस बात का इल्म था कि भारत की संपूर्ण ग़ुलामी तभी संभव है जब यहां की सुदृढ़ शिक्षा व्यवस्था को नष्ट न कर दिया जाए।  इस संदर्भ में एक अंग्रेज अधिकारी विलियम एडम ने बंगाल और बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें बताया गया कि इन दोनों प्रांतों में चार करोड़ की आबादी पर एक लाख  स्कूल की व्यवस्था थी अर्थात 400 विद्यार्थियों पर एक स्कूल.  बाद में  गांधीवादी शिक्षाविद  धर्मपाल ने भी अपनी शोधपरक पुस्तक ‘भारत का स्वधर्म’ में, अंग्रेजों के शासनकाल में आई शिक्षा व्यवस्था में  गिरावट की पुष्टि की। जो आज अपने विकृत रूप में हमारे सामने है।

तब हमारी शिक्षा व्यवस्था में अक्षर ज्ञान के साथ-साथ अन्य आवश्यक पहलुओं पर विशेष ध्यान दिया जाता था जिसमें नैतिक शिक्षा,  लोक व्यवहार और सामाजिकता को प्रमुखता से सीखने-सिखाने की परंपराएं शामिल थीं। इसके साथ ही जहां अक्षर ज्ञान मनुष्य को समझ देता है वहीं हुनर का ज्ञान-विज्ञान हमें सफल और सार्थक जीवन प्रदान करता है। हुनर आधारित शिक्षा के संबंध में 15 मार्च, 1935 में हरिजन में गांधी लिखते हैं-मेरी राय में तो इस  देश में जहां लाखों आदमी  भूखों  मरते हैं, बुद्धिपूर्वक किया  जाने वाला श्रम ही सच्ची प्राथमिक या प्रौढ़ शिक्षा है। अक्षर ज्ञान हाथ की शिक्षा के बाद आना चाहिए।

इसमें कोई शक नहीं कि अक्षर-ज्ञान से जीवन का सौंदर्य बढ़ जाता है। गांधी शिक्षा का उद्देश्य बुद्धि विकास तक सीमित नहीं मानते। उनकी दृष्टि में शरीर के साथ-साथ आत्मा का विकास भी होना चाहिए। आजादी के बाद से अब तक शिक्षा की  व्यवस्था ठीक ढंग से नहीं बन पाई थी जिसमें विद्यार्थी को पढ़ाई के साथ-साथ उनके हाथों को हुनरमंद बना सकें। लिहाजा, आज ऐसे युवाओं की संख्या बढ़ी है जिन्होंने शिक्षा की डिग्री तो हासिल कर ली पर समय के अनुकूल अपनी उपयोगिता सिद्ध नहीं कर पाए हैं। तभी देश को ऐसी शिक्षा व्यवस्था की जरूरत थी जो समय के अनुकूल हो, मांग और बाजार के अनुकूल हो। आने वाले समय में विज्ञान तकनीक की आवश्यकता बढ़ेगी। इसको ध्यान में रखकर नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रारूप बना और व्यापक  विचार-विमर्श के बाद आज यह हमारे सामने है। जैसा कि हमने पूर्व में विचार किया कि विज्ञान और तकनीक की उपयोगिता हमारे जीवन में  गहराई से जुड़ी है। आज पूरा विश्व नॉलेज आधारित बन गया है। वैज्ञानिक अनुसंधान की बढ़ती मांग की वजहों से दुनिया भर में कुशल कामगारों की आवश्यकता बढ़ी है, और  भविष्य में और बढ़ेगी।  

नई शिक्षा नीति में इस बात का खास ध्यान रखा गया है कि समय की मांग के अनुसार शिक्षा दी जाए। आज विश्व में जलवायु परिवर्तन, साइबर क्राइम, बढ़ते प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों जैसी वैश्विक समस्याओं से निपटने के लिए हमारे युवा में तैयारी का माद्दा होना चाहिए-तार्किक रूप से इन समस्याओं की पहचान कर, समाधान खोजना। इसके  लिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में पहली कक्षा से शोध तक में हर स्तर पर समस्याओं  के अनुसार बच्चों को तैयार किया जाएगा। इसमें सबसे बेहतर बात यह है कि पांचवी तक के बच्चों की शिक्षा व्यवस्था मातृभाषा में सुनिश्चित की गई है। अध्ययन-अध्यापन कार्य में भाषा संबंधी बाधाओं को दूर करने और इनमें तालमेल  सुनिश्चित किया गया है। मातृ भाषा के  संबंध में 19 अक्टूबर, 1910 के इंडियन ओपिनियन में लिखा-हम लोगों में बच्चों को अंग्रेज बनाने की प्रवृत्ति पाई जाती है।

हम मातृभाषा की उन्नति नहीं कर  सके और हमारा यह सिद्धांत रहा कि अंग्रेजी के जरिए ही हम अपने ऊंचे विचार प्रकट कर सकते हैं तो इसमें जरा भी शक नहीं की हम सदा ही गुलाम बने रहेंगे।मातृभाषा  को शिक्षा  का प्राथमिक  हिस्सा  माना जाए। नई शिक्षा नीति में इस बात का खास ध्यान रखा गया है कि प्रारंभिक काल में ही बच्चों की प्रतिभा की पहचान कर उनकी क्षमता के अनुरूप विकास किया जाना सुनिश्चित किया जाए। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति मुक्कमल तौर पर बेहतर  नागरिक निर्माण  की  दिशा में एक प्रयास है। इसमें गांधी जी की बुनियादी तालीम की झलक दिखती है, जो हमारी परंपराओं से जुड़ने और राष्ट्र को नई दिशा में ले जाने का कार्य करेगी।

डॉ. राजन चोपड़ा


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