Ateeq-Ashraf murder case: जवाब अभी बाकी हैं

Last Updated 18 Apr 2023 11:04:08 AM IST

इसमें दो मत नहीं कि अतीक अहमद (Atiq Ahmed) और उसके भाई अरशद अहमद (Ashraf Ahmed) की पुलिस गिरफ्त में हत्या ने पूरे देश में सनसनी पैदा कर दी है।


Ateeq-Ashraf murder case: जवाब अभी बाकी हैं

फिल्मों और धारावाहिकों में जरूर पुलिस के बीच आकर अपराधियों या दूसरे अपराधी गैंग के द्वारा हत्याओं के दृश्य हमने देखे हैं। आम जीवन में ऐसी घटनाएं हमारे आपके सामने शायद ही इसके पूर्व भारत में कभी आई हो। आतंकवादी हमले (Terrorist Attack) की बात अलग है।

जब इस तरह की असहज, अस्वाभाविक और हैरत में डालने वाली घटनाएं होती हैं तो इनका विश्लेषण भी उसी तरीके से करना पड़ेगा। राजनीतिक प्रतिक्रियाएं स्वाभाविक और सामान्य हैं। कारण, हमारी राजनीति में गंभीर विषयों पर गंभीरता से विचार कर प्रतिक्रियाएं देने का आचरण विरोधी राजनीतिक दलों और सत्ता के संदर्भ में लगभग खत्म हो चुकी है। स्वाभाविक ही राजनीतिक प्रतिक्रियाओं के आलोक में हम इस तरह हैरत में डालकर सन्न करने वाली वारदात की विवेचना नहीं कर सकते। यह घटना इस मायने में भी अस्वाभाविक है तीन अपराधियों का अपराध की दुनिया में उनका बड़ा नाम नहीं है और न ही इन लोगों का अतीक, अरशद या उसके गिरोह से जुड़े लोगों से दुश्मनी या प्रतिस्पर्धा की जानकारी है। भारी सुरक्षा बंदोबस्त के बीच देश के इतने बड़े अपराधी को साधारण अपराधी गोलियों से भून देने का दुस्साहस करें यह सामान्य कल्पना से परे है।

सामान्य व्यवहार का तकाजा है कि हम सबको जांच रिपोर्ट की प्रतीक्षा करनी चाहिए। बावजूद घटनाएं हैं तो उसका विश्लेषण होगा और जो कारण सांप महसूस किए जा सकते हैं उनके आधार पर अवश्य कुछ निष्कर्ष निकाल सकते हैं। इस बड़ी वारदात की संभावित प्रतिक्रियाओं का आकलन करते हुए कुछ परवर्ती कार्रवाइयां हुई। उप्र की कानून व्यवस्था का ध्यान रखते हुए समूचे प्रांत में सुरक्षा व्यवस्था सख्त,की गई, सुरक्षाबलों का फ्लैग मार्च हो रहा है। हत्या के दूसरे दिन प्रयागराज सहित कई शहरों की सड़कें वीरान थी, दुकानें बंद थी। संभावित उपद्रवी तत्वों को हिरासत में लेने, गिरफ्तार करने, जगह-जगह छापेमारी आदि भी हो रही हैं।

घटना के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वयं मोर्चा संभाला। साफ है कि उपद्रवी और असामाजिक तत्व इसका लाभ उठाकर प्रदेश को हिंसा न फैलाएं इसकी दृष्टि से अधिकतम पूर्वोपाय करने की कोशिश हो रही है। अभी तक आम लोगों ने जिस तरह का धैर्य और परिपक्वता प्रदर्शित की है उसमें उम्मीद करनी चाहिए कि प्रदेश और देश को अशांति, उपद्रव और हिंसा पैदा करने कार षड्यंत्र करने वाली शक्तियां सफल नहीं होंगी। किंतु इन सबमें यह प्रश्न अनुत्तरित रह जाता है कि आखिर ऐसा हुआ क्यों? अतीक अहमद का साम्राज्य लगभग ध्वस्त किया जा चुका था। उसके सहित उससे जुड़े लोगों के आर्थिक व अन्य संसाधनों को ध्वस्त करने की कार्रवाई काफी हद तक पूरी होती दिखी थी। मुख्यमंत्री द्वारा विधानसभा में इस माफिया को मिट्टी में मिला देंगे की घोषणा का ध्यान रखते हुए पत्रकारों ने जब साबरमती से प्रयागराज जाने के रास्ते में अतीक से पूछा तो उसने कहा कि मिट्टी में मिल चुके हैं अब तो रगड़ा जा रहा है। जीवन के चार दशक से ज्यादा समय तक जिस व्यक्ति ने कानून को ठेंगे पर रखा और एक खूंखार चरित्र दिखाते हुए हर प्रकार का अपराध और माफियागिरी किया वह जिंदा रहते हुए भी स्वयं को मृतक की अवस्था में मानें तो इससे बड़ी सजा कुछ हो नहीं सकती।

हत्या के तौर-तरीकों और परिस्थितियों को देखें तो अनुभवी लोगों का पहला निष्कर्ष यही होगा कि यह अत्यंत ही सुनियोजित थी। इसके पीछे बहुआयामी षड्यंत्र दिखता है। हत्यारों द्वारा एक मीडिया संस्थान का परिचय पत्र और लोगो वाली माइक इस्तेमाल करने सहित हत्या में प्रयोग किए गए हथियार आदि सामान्य अपराधी द्वारा किए गए अपराध को प्रदर्शित नहीं करते। इसलिए यह थ्योरी गले नहीं उतरती कि इन तीनों ने स्वयं को बड़ा अपराधी घोषित कराने के लिए अतीक और अरशद की हत्या का दुस्साहस किया। तीनों अलग-अलग इलाके के हैं। साथ मिलकर किसी अपराध का रिकॉर्ड इनका नहीं है। फिर तीनों इकट्ठे क्यों हुए और इनके बीच इतना तालमेल बना तो कैसे? इस तरह के सामान्य अपराधी वैसे रिवाल्वर का उपयोग नहीं करते जैसा किया गया। स्पष्ट है कि इसमें काफी संसाधन लगा है। अत्यंत ही चतुर बुद्धि और शातिर दिमाग वाले इसके पीछे है।

सामान्य कारोबार या अन्य कायरे की तरह ही अपराध के भी  ठोस आधारभूत तंत्र होते हैं। यानी हथियार कहां से आएंगे, कहां उनको डिलीवर और किसे किया जाएगा, कहां की पुलिस अनुकूल है जहां से उसे निकाला जा सकता है, किसे कहां मारना है, कौन मारेगा, मारने के बाद किस रास्ते से बचकर निकलेगा, अपहरण करना है तो कहां से उठा कर कहां रखा जाएगा, कैसे पुलिस प्रशासन को पैसे या ताकत की बदौलत अपना अनुकूल बनाया जा सकता है आदि-आदि। ऐसा लगता है कि पुलिस  पूछताछ से ऐसी शक्तियों को अपना भेद खुलने का भय सताने लगा था। संभव है उसकी हत्या के पीछे ऐसे तत्वों का षड्यंत्र हो। वैसे भी इतने बड़े अपराधी ने अपने हजारों दुश्मन बनाए होंगे।  कौन किस पीड़ा और अपमान के कारण प्रतिशोध के भाव से क्या-क्या कर रहा होगा इसका पता करना मुश्किल होता है। हमने देखा है कि प्रतिशोध की आग में लोग मुर्दे पर भी प्रहार करते हैं। इसलिए किन-किन को अपने भेद खुलने का डर था या कौन-कौन प्रतिशोध में उसे नष्ट करने की तैयारी कर रहे थे इन सबका पता लगाना आसान नहीं है। एक पक्ष यह भी बता रहा है कि अतीक स्वयं भी चाहता था कि दुर्दशा के बजाय उसकी जिंदगी खत्म हो जाए, क्योंकि पूरा जीवन शान से जिया और अंत में इस तरह गिड़िगड़ाते हुए वह जिंदा नहीं रहना चाहता।

सारे कारकों में से हम आप किसी को तब तक खारिज नहीं कर सकते जब तक कि कारणों के बिल्कुल पुष्ट प्रमाण न आ जाएं। बहरहाल, जो भी हो इस घटना ने उत्तर प्रदेश पुलिस को अपने पूरे तंत्र की गहरी समीक्षा और उसके अनुसार परिवर्तन की सीख दी है। साफ लग रहा है कि कानून और व्यवस्था के प्रति मुख्यमंत्री की प्रतिबद्धता के बावजूद पुलिस प्रशासन में ऐसे लोग हैं, जो पुराने रास्ते पर चल रहे हैं। वह सरकारी आदेश की जगह अवांछित संदेशों और सोच के अनुसार कार्य कर रहे हैं। कानून और व्यवस्था के प्रति प्रतिबद्ध तंत्र की मांग है कि अपराध करने वाले और उन्हें पालने-पोसने वाले तत्वों को पहचान कर कानून के कठघरे में खड़ा किया जाए।

अवधेश कुमार


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment