रामनवमी में हिंसा : कैसे निपटें इस चुनौती से

Last Updated 12 Apr 2023 11:15:08 AM IST

मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्मदिवस रामनवमी (Ramnavami) पर लगातार दूसरे साल देश के आधा दर्जन राज्यों में हिंसा (Violence) में दो लोगों की मौत और दर्जनों अन्य के घायल होने से संविधान प्रदत्त धार्मिक आस्था की आजादी पर सवाल उठ रहा है।


रामनवमी में हिंसा : कैसे निपटें इस चुनौती से

तीस मार्च को निकले धार्मिक जुलूस के दौरान पिस्तौल, बंदूक, तलवार और अन्य अवैध हथियार बेखौफ लहराए गए। उनसे पुलिस की कोताही और राज्य के राजनीतिक एवं प्रशासनिक अमले की जनता और संविधान के प्रति निठा भी कलंकित हुई। पिछले साल भी दर्जन भर राज्यों में रामनवमी एवं हनुमान जयंती पर उपद्रव हुआ था। इस बार रामनवमी पर महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में हिंसा हुई। बिहार और पश्चिम बंगाल विपक्षी दलों द्वारा और बाकी राज्य बीजेपी शासित हैं।

चिंताजनक ये कि सनातन संस्कृति के धार्मिक उत्सव के दौरान इस बार लगातार दूसरे साल उपद्रव हुआ है। पिछले साल अप्रैल में भी रामनवमी एवं हनुमान जयंती के जुलूसों के दौरान नौ राज्यों में भारी उपद्रव और तीन अन्य राज्यों छुटपुट हिंसा की घटना हुई थीं। गनीमत है कि उनमें से मध्य प्रदेश, झारखंड, दिल्ली और आंध्र प्रदेश इस साल रामनवमी एवं हनुमान जयंती पर हिंसा से अछूते रहे। पिछले साल केंद्र सरकार की नाक के नीचे निम्न मध्यवर्ग की घनी बस्ती जहांगीरपुरी में धार्मिक जुलूस में सरेआम अवैध हथियार लहराए गए और पुलिस देखती रह गई। भड़काऊ नारों के बाद छिड़ी हिंसा का दोष चुनिंदा लोगों के मत्थे मढ़कर नगर निगम के बुलडोजरों से बाकायदा उनके घर ढहाने की मुहिम छेड़ी गई।

दिल्ली पुलिस चूंकि केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है सो कड़ी आलोचना, दिल्ली की निर्वाचित आप पार्टी की सरकार और उसके कार्यकर्ताओं के विरोध तथा अदालती दखल से लोगों को बेघर करने की मुहिम को रोकना पड़ा। शायद उसी घटना और अबकी रामनवमी पर हिंसा से सबक लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को हनुमान जयंती को शांतिपूर्वक मनाने तथा राज्य सरकारों को पुलिस बंदोबस्त चौकस करने का निर्देश देना पड़ा।

साल 1950-95 के बीच भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच हिंसक घटनाओं पर दुनिया के जाने-माने समाज शास्त्री प्रोफेसर आशुतोष वार्ष्णेय के सहयोग से स्थापित वार्ष्णेय-विल्किंसन डेटासेट में शुमार छोटे-बड़े 1192 दंगों में से सिर्फ नौ दंगे रामनवमी पर दर्ज हुए हैं। इन आंकड़ों के अनुसार उक्त दंगों में जिन कुल 6971 लोगों की जान गई उनमें रामनवमी की झड़पों में 171 लोग मारे गए। इससे साफ है कि आजादी के बाद करीब साढ़े तीन दशक में रामनवमी के जुलूस बहुधा सांप्रदायिक दुर्भाव के शिकार नहीं हुए। उसके बजाए होली और दूसरे पवरे और मुहर्रम तथा बारावफात जैसे इस्लामी पवरे पर आपसी टकराव होता था। साल 2022 में भी रामनवमी एवं हनुमान जयंती पर देश के दर्जन भर राज्यों में हुए दंगों पर अधिवक्ताओं एवं नागरिक समूहों ने मिलकर जब जांच की तो पाया कि हिंसक झड़प सुनियोजित थीं। उनमें विशेष समुदाय को निशाना बनाया गया। इस पड़ताल की रिपोर्ट सर्वोच्च अदालत से रिटायर जस्टिस रोहिंटन नारीमन की सदारत में बनी थी।

इस बार केंद्रीय गृह मंत्रालय के लिए दिल्ली (Delhi) में हनुमान जयंती (Hanuman Jayanti) पर शांति बरकरार रखना कई कारणों से जरूरी था। रामनवमी पर हुई हिंसा के बाद अमित शाह ने बिहार और पश्चिम बंगाल की विपक्षी सरकारों को कानून-व्यवस्था बरकरार रखने में नाकामी के लिए घेरा था। बिहार के सासाराम में शाह की जनसभा रामनवमी पर हिंसा के कारण रद्द हो गई। अलबत्ता दो अप्रैल को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गढ़ नालंदा की जनसभा में उन्होंने कांग्रेस सहित नीतीश को जमकर कोसा और ममता बनर्जी पर उपद्रवियों से मिलीभगत का आरोप लगाया। पलटवार में ममता बनर्जी ने भी बीजेपी पर विपक्षी दल शासित राज्यों में अपने समर्थकों द्वारा जानबूझ कर हिंसा करवाने का आरोप मढ़ दिया।

इस बार कर्नाटक में विधानसभा चुनाव (Karnataka Assembly Election) और अगले साल लोक सभा चुनाव के लिए यूपी तथा बिहार में पसमांदा मुसलमानों के बीच बीजेपी की पैठ बनाने की कोशिश ने भी हनुमान जयंती पर गृह मंत्रालय से राज्य सरकारों को चाक-चौबंद रहने का फरमान जारी करवाया। रामनवमी के धार्मिक जुलूस के दौरान पचिम बंगाल में हुगली और हावड़ा जिलों में झड़प, आगजनी एवं बमबारी  हुई। दलखोला में एक व्यक्ति की मौत हुई और दो लोग घायल हुए। हाईकोर्ट एवं केंद्र के मांगने पर राज्य सरकार ने इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट दी है।

बिहार (Bihar) के सासाराम (Sasaram) और बिहारशरीफ (Biharsharif) में भी 30 और 31 मार्च को दो समुदायों के बीच हिंसा भड़की जिसके बाद वाहनों, घरों और दुकानों में चुन, चुन कर आग लगाई गई। हिंसा में कई बेकसूर भी घायल हुए। 170 लोगों की गिरफ्तारी हुई मगर सरकारों पर अवाम की आस्था की आजादी बचाने में नाकामी का आरोप तो लग ही गया। पश्चिम बंगाल के हावड़ा के शिबपुर में और हुगली जिले के रिसड़ा में रामनवमी पर छिड़ी हिंसा अगले दिन भी जारी रही। मजूमदार ने हथियारबंद लोगों को पकड़ने पर एतराज किया। महाराष्ट्र में औरंगाबाद, मलाड एवं जलगांव में रामनवमी पर हिंसा हुई जिसमें एक व्यक्ति की मौत भी हुई। औरंगाबाद में संभाजी नगर में किरदपुर क्षेत्र में राम मंदिर के बाहर दो लोगों के 29 मार्च को झगड़े से भड़की हिंसा ने रामनवमी पर बवाल करवा दिया, जिसमें अनेक वाहन जले और दस पुलिस वालों सहित 12 लोग जख्मी हुए।

गुजरात (Gujarat) के दूसरे सबसे बड़े शहर वडोदरा की फतेहपुरा बस्ती में रामनवमी के दो अलग-अलग जुलूसों में हिंसा और वाहन तोड़ने की घटना हुई। विधानसभा चुनाव को तैयार कर्नाटक के हासन में रामनवमी जुलूस के दौरान हिंसा में चार लोग जख्मी हुए। जरा याद करें अस्सी-नब्बे के दशकों को जब देश के ज्यादातर राज्यों और केंद्र में भी कांग्रेस का शासन था। उस समय जब-जब सामुदायिक दंगा होता था तो बीजेपी झट से शासकों पर उसकी तोहमत लगाती थी। अब जिन छह राज्यों में रामनवमी पर उपद्रव हुआ, उनमें चार राज्य बीजेपी शासित हैं। उम्मीद है कि केंद्र और राज्यों की सरकार अगले साल से धार्मिक पवरे एवं उनके जुलूसों पर शांति एवं व्यवस्था बरकरार रखने के अधिक पुख्ता उपाय कर पाएंगी।

अनन्त मित्तल


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