सामयिक : महंगाई से बढ़ेंगी दूरियां
जनवरी 2023 में देश का उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) 6.52 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच गया,जो पिछले 3 महीनों में सबसे ऊंचा स्तर है।
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इससे पहले, दिसम्बर 2022 में खुदरा महंगाई 5.72 प्रतिशत थी, जबकि जनवरी 2022 में यह 6.01 प्रतिशत थी। इससे पहले,अक्टूबर 2022में खुदरा महंगाई 6.77 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच गई थी। खुदरा महंगाई में तेजी का कारण खाद्य पदाथरे की कीमतों में तेजी आना है। केंद्रीय बैंक ने खुदरा महंगाई की निचली सीमा 2 प्रतिशत और ऊपरी सीमा 6 प्रतिशत निर्धारित की है अर्थात महंगाई दर 2 से 6 प्रतिशत के बीच होनी चाहिए,लेकिनचालू वित्त वर्ष के दौरान सिर्फ नवम्बर और दिसम्बर 2022 में ही रिजर्व बैंक इस लक्ष्य को हासिल कर पाया है। अभी कोर महँगाई भी उच्च स्तर पर बनी हुई है।
मुसीबत यह है कि महंगाई के फिर से निर्धारित सीमा से ऊपर जाने से भारतीय रिजर्व बैंक नीतिगत दरों को फिर से बढ़ा सकता है। एक अनुमान के अनुसार रिजर्व बैंक अप्रैल, 2023 में होने वाली मौद्रिक समीक्षा में रेपो दर में 25 आधार अंक की बढ़ोतरी कर सकता है। चूँकि, अभी महँगाई घटने की उम्मीद कम है, इसलिए,लंबे समय तक नीतिगत दर उच्च स्तर पर बनी रह सकती है और अगर ऐसा हुआ तो विकास की रफ्तार आगामी महीनों में भी नरम बनी रहेगी। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के अनुसार चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 4.4 प्रतिशत रहा,जो भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान के अनुरूप है। वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में जीडीपी 21.6 प्रतिशत रही थी, जबकि वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में जीडीपी 13.2 प्रतिशत रही थी।
वहीं,वित्त वर्ष 2021-22 की दूसरी तिमाही में जीडीपी 9.1 प्रतिशत और तीसरी तिमाही में 5.2 प्रतिशत रही,जबकि वित्त वर्ष 2022-23 की दूसरी तिमाही में जीडीपी 6.3 प्रतिशत और तीसरी तिमाही में 4.4 प्रतिशत रही। एनएसओ ने अपने दूसरे अग्रिम अनुमान में चालू वित्त वर्ष में 7 प्रतिशत की दर से वृद्धि होने का अनुमान जताया है। एनएसओके अनुसारआधार वर्ष 2011-12 में स्थिर मूल्यपर तीसरी तिमाही में जीडीपी के राशि में 40.19 लाख करोड़ रु पये रहने का अनुमान है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में यह 38.51 लाख करोड़ रु पये था. विनिर्माण क्षेत्र के खराब प्रदशर्न की वजह से जीडीपी में गिरावट दर्ज की गई है. दिसंबर तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन में 1.1 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में 1.3 प्रतिशत की दर से वृद्धि दर्ज की गई थी. जून और सितंबर तिमाही में जीडीपी कमजोर आधार के कारण प्रभावित हुआ था। वित्त वर्ष 2021-22 की पहली छमाही में आर्थिक सुधार की प्रक्रिया महामारी की दूसरी लहर से बाधित हुई थी और अब दिसंबर तिमाही के जीडीपीआंकड़ों पर महँगाई का नकारात्मक असर पड़ा है। इसी वजह से माँग कम हुई और विकास बाधित हुई।
फिलहाल, सरकार उच्च पूंजीगत व्यय के माध्यम से विकास की रफ्तार को बरकरार रखने की कोशिश कर रही है, लेकिन निजी पूंजीगत व्यय के कमजोर रहने से सरकार मामले में अपेक्षित परिणाम पाने में असफल रही है। वैसे,सकल स्थायी पूंजी निर्माण बढ़कर 8.3 प्रतिशत हो गया है, लेकिनचालू वित्त वर्ष की दिसंबर तिमाही में निजी खपत में केवल 2.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
फिलवक्त,राजकोषीय हालात भी अच्छी नहीं है। सरकार ने वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान राजकोषीय घाटे को कम करके जीडीपी के 5.9 प्रतिशत के स्तर पर लाने का लक्ष्य रखा गया है। अभी यह घाटा जीडीपी का 6.4 प्रतिशतहै अर्थात हर साल राजकोषीय घाटे में 0.7 प्रतिशतकी कमी करनी होगी, जो आसान नहीं है, क्योंकि जीडीपी की रफ्तार कम हो गई है।
धीमी वृद्धि से कर संग्रह में कमी आ जाती है। वर्ष 2024 चुनावी साल है। इसलिए, इस साल राजकोषीय घाटा कम होने की जगह बढ़ सकता है, क्योंकि सरकार आम जनता को लुभाने के लिए सरकारी व्यय में इजाफा कर सकती है। वैसे,वर्ष 2004 में एफआरबीएम अधिनियम लागू होने के बाद से अब तक केंद्र सरकार सिर्फ 4 बार ही घाटे को 0.7 प्रतिशत या उससे अधिक कम कर सकी है। पहली बार वित्त वर्ष 2021-22 में सरकार ने घाटे में 2.46 प्रतिशत की कमी की थी, लेकिन उस कालखंड में कोरोना महामारी की वजह से उच्च आधार की स्थिति बन गई थी, जिसके कारण राजकोषीय घाटे में कमी आई थी।
भारत को बुनियादी ढांचे में भारी भरकम निवेश की आवश्यकता है। इससे ही विकास की गाड़ी तेज गति से आगे बढ़ सकती है। ऐसे में सरकार को पूँजीगत व्यय और राजस्व संग्रह दोनों में तेजी लानी होगी और दोनों के बीच संतुलन बनाकर राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की दिशा में काम करना होगा,क्योंकि ज्यादा कर्ज लेकर आधारभूत संरचना को मजबूत करने के खतरे भी हैं। होने से निजी निवेश में कमी आती है, क्योंकि लोग यह समझते हैं कि आधारभूत संरचना को मजबूत करने की ज़िम्मेदारी सरकार की है। इसके अलावा, कर्ज की राशि पर ज्यादा ब्याज अदा करने से विकास के कार्यों में रूकावट आती है।
चूंकि,वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) सुधार तथा निगम कर को पहले ही तार्किक बनाया जा चुका है, इसलिए, फिलहाल इस मोर्चे पर स्थिति और भी बेहतर होने की उम्मीद न्यून है अर्थात कर संग्रह में तेजी लाने की संभावना बहुत ही कम हो गई है। ऐसे में सरकार गैर कर राजस्व की मदद से स्थिति में बेहतरी लाने की कोशिश कर सकती है, क्योंकि एक अनुमान के अनुसार केंद्र सरकार का कर्ज वित्त वर्ष 2023-24 में आंशिक रूप से बढ़ सकता है। फिलहाल, केंद्र सरकार को कर राजस्व का 45 प्रतिशतकर्ज की ब्याजअदायगी में खर्च करना पड़ रहा है। बढ़ती महंगाई की वजह से रिजर्व बैंक नीतिगत दरों को बढ़ाने के लिए आगामी मौद्रिक समीक्षाओं में मजबूर होसकता है और तदुपरांत,बैंक कर्ज दर में इजाफा करेंगे और कर्ज महंगा होने से मांग में कमी आयेगी। बढ़ती महंगाई की वजह से लोगों के खर्च करने की क्षमता भी कम हुई है, विकास की गति कम होने से कर संग्रह में भी कमी आ रही है, जिसकी पुष्टि जीएसटी संग्रह के फरवरी, 2023 में एक लंबे समय के बाद 1.5 लाख करोड़ रूपये से कम होने से होती है। लिहाजा, भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए सरकार और केंद्रीय बैंक को जल्द से जल्द महंगाई पर काबू पाना होगा।
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