उत्तराखंड : माइक्रो परियोजनाओं को मिले तरजीह
उत्तराखंड में भू-धंसाव से प्रभावित लोग और वैज्ञानिक बता रहे हैं कि हिमालय क्षेत्र में आ रही आपदाओं का एक प्रमुख कारण सुरंग आधारित परियोजनाएं और बड़े-बड़े निर्माण कार्य हैं।
![]() उत्तराखंड : माइक्रो परियोजनाओं को मिले तरजीह |
इनके निर्माण के समय भूगíभक हलचल पैदा करने वाले विस्फोटों करके सुरंगें खोदी जाती हैं जिससे ऊपर बसे गांवों के मकानों में दरारें आ रही हैं। गांव के जल स्रेत सूखने लगे हैं। पहाड़ की भौगोलिक संरचना को नजरअंदाज करते हुए बहुमंजिला इमारतें भी बन रही हैं। पर्यटन के नाम पर भारी संख्या में लोग भी जमा हो जाते हैं जिसका प्रभाव दूरगामी होता है।
इस दौरान जोशीमठ में आई दरारों के अध्ययन के लिए अलग-अलग वैज्ञानिक संस्थानों की समितियां बनाई गई हैं। इसको ध्यान में रखकर बहुत लंबे समय से मांग की जा रही थी कि टिहरी बांध के जलाशय के चारों ओर के गांवों में भी दरारें पड़ रही हैं, जिसके कारण दर्जनों गांव 42 वर्ग किमी. के बांध जलाशय की तरफ धंस रहे हैं। इसके सत्यापन के लिए फरवरी, 2023 के प्रथम सप्ताह में एक संयुक्त विशेषज्ञ समिति ने प्रभावित गांवों का दौरा किया है, जिसकी रिपोर्ट भविष्य में आएगी। यहां बांध जलाशय के चारों ओर के प्रभावित गांवों, जो टिहरी-उत्तरकाशी जिले के भिलंगना, प्रतापनगर, चिन्यालीसौड़ ब्लॉक में पड़ते हैं, के लोगों ने समिति के सदस्यों को घरों और गांव की धरती पर जगह-जगह आ रहीं दरारें दिखाई हैं, जहां पर भविष्य में निवास करना मुश्किल हो सकता है। पौड़ी गढ़वाल के जिलाधिकारी आशीष चौहान की अध्यक्षता में भी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन के लिए खोदी ही जा रही सुरंग के ऊपर तीस से अधिक गांवों में दरारों के अध्ययन के लिए समिति बनाई गई है, जिसके लिए लोग दो-तीन वर्षो से मांग कर रहे थे। इसकी रिपोर्ट तो न जाने कब आएगी? लेकिन दरारों के सत्यापन के लिए सरकारी अधिकारियों को प्रभावित गांवों में जाना पड़ रहा है। सुरंग आधारित अनेक जल विद्युत परियोजनाएं हैं, जिनके ऊपर बसे हुए गांवों में दरारें चौड़ी होती जा रही हैं।
2008 में ‘ऊर्जा प्रदेश की उजड़ती नदियां और उजडते लोग’ नामक एक शोध पुस्तिका के माध्यम से चेताया गया था कि सुरंग बांधों के कारण ढालदार पहाड़ियों और चोटी पर बसे गांव असुरक्षित हो सकते हैं। इसके बाद उत्तराखंड में 2010 (उत्तरकाशी), 2013 (केदारनाथ), 2021(ऋषि गंगा) और 2023 (जोशीमठ) जैसी 4 बड़ी आपदाएं आ चुकी हैं। विशेषज्ञों ने जब अध्ययन किया तो बताया कि इन आपदाओं का प्रमुख कारण सुरंग आधारित परियोजनाएं भी हैं। इसमें स्वतंत्र विशेषज्ञों की राय सबसे अधिक है। उत्तराखंड को ऊर्जा प्रदेश बनाने के लिए लगभग सभी नदियों पर श्रृंखलाबद्ध रूप में सुरंग आधारित 600 परियोजनाओं को चिन्हित किया गया है, जिनकी क्षमता लगभग 80 हजार मेगावॉट है। सूत्रों के अनुसार राज्य में लगभग 244 छोटी-बड़ी परियोजनाओं पर काम करने के लिए डीपीआर है, जिसकी क्षमता 20 हजार मेगावॉट से अधिक है। यदि 244 परियोजनाएं बन गई तो इससे लगभग 1000 किमी. से अधिक लंबी सुरंगों का निर्माण अलग-अलग परियोजनाओं में किया जाएगा जिसके ऊपर हजारों गांव आएंगे और इससे लगभग 25 लाख की आबादी प्रभावित हो सकती है। इसी तरह ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेललाइन 126 किमी. में 70% से अधिक का निर्माण सुरंग से हो रहा है, और इसके ऊपर 4 दर्जन से अधिक गांव हैं, जहां लोगों के घरों और खेतों में दरारें आ चुकी हैं। जल स्रेत भी सूख रहे हैं। भू-धंसाव और भूस्खलन की समस्या पैदा हो गई है। प्रस्तावित गंगोत्री रेललाइन, जिसकी लंबाई लगभग 120 किमी. है, का अधिकांश हिस्सा सुरंग के अंदर होगा और इसके ऊपर भी सैकड़ों गांव पड़ेंगे। ऑल वेदर रोड के निर्माण से तो दर्जनों गांवों के मकानों में दरारें आ गई हैं, और गांवों के नीचे से जबरदस्त भूस्खलन हो रहा है।
विषम परिस्थितियों के बावजूद गत वर्ष 22 दिसम्बर को उत्तराखंड के प्रमुख सचिव आरके सुधांशु ने सचिवालय में बैठक करके बताया कि 17-21 अप्रैल, 2023 को देहरादून में सुरंग निर्माण से जुड़े 600 विशेषज्ञों की संगोष्ठी करेंगे। ताज्जुब है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी हिमालय के संवेदनशील इलाके में सुरंग आधारित परियोजनाओं को संचालित करने के लिए उत्साहित हैं, और अप्रैल में विशेषज्ञों को बुलाया जा रहा है। जानकारी है कि केंद्रीय राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी भी इसी दौरान मसूरी के लिए प्रस्तावित टनल का उद्घाटन करेंगे ताकि सुरंगों के निर्माण का सपना पूरा हो सके। नहीं भूल सकते कि 2009 में लोहारी-नागपाला, पाला-मनेरी और भैरव घाटी परियोजनाओं को रोकने के लिए अनशन हुआ था तो उस समय भाजपा के लोगों ने ही केंद्र में तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर इन्हें रोकने के लिए दबाव बनाया था। तब कांग्रेस सरकार ने विचार करके परियोजनाओं को रोक दिया था लेकिन आज जब सरकार केंद्र और राज्य में भाजपा सत्तारूढ़ है तो विनाशकारी परियोजनाओं को रोकने की बजाय उन्हें बड़े स्तर पर बढ़ावा दिया जा रहा है। सवाल है कि लोग वोट क्या इसलिए देते हैं कि उनकी बर्बादी पर विचार ही न हो? हिमालय में ऐसी परियोजनाएं पर्यावरण संकट खड़ा कर रही हैं।
| Tweet![]() |