पूर्वोत्तर में चुनाव : कैसी इबारत लिखेगी जनता

Last Updated 14 Feb 2023 01:49:23 PM IST

साल 2023 भारत के लिए चुनाव के लिहाज से बेहद अलग होगा। 9 राज्यों के चुनाव होने हैं।


पूर्वोत्तर में चुनाव : कैसी इबारत लिखेगी जनता

तीन राज्यों में घोषणा के साथ शंखनाद हो चुका है। पूर्वोत्तर के राज्य त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में चुनावी ऐलान के साथ राजनीतिक दलों की सक्रियता बढ़ गई है। जिन तीनों राज्यों में चुनाव हैं; सभी में 60-60 सीटें हैं।

विधानसभा के लिहाज से नगालैंड का 12 मार्च, मेघालय का 15 मार्च और त्रिपुरा का 22 मार्च को कार्यकाल समाप्त हो रहा है। वहीं त्रिपुरा में 16 फरवरी को जबकि नगालैंड-मेघालय में 27 फरवरी को एक-एक चरण में मतदान होगा। नतीजे 2 मार्च को आएंगे। त्रिपुरा में अब 50 साल से ज्यादा पुराने धुर विरोधी यानी सीपीएम जो 35 साल और कांग्रेस जो 18 साल सत्ता में रहने के बाद अब गठबंधन को मजबूर हैं।

वहीं 2018 में शून्य से शिखर तक पहुंची भाजपा की राहें भी उतनी आसान नहीं दिखती क्योंकि जिस इंडीजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा यानी आईपीएफटी के साथ गठबंधन कर सत्ता में पहुंची थी उसकी मंशा पर भरोसा नहीं है। एक ओर जहां बीजेपी-आईपीएफटी गठबंधन जारी रहने की बात हो रही है, लेकिन एक अन्य क्षेत्रीय पार्टी ‘टिपरा मोथा’ ने 2021 में ‘त्रिपुरा ट्राइबल ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल’ (टीटीओडीसी) चुनाव में ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ की मांग के साथ सफलतापूर्वक जीत हासिल कर अपनी अहमियत दिखा दी, जिससे सियासी जमीन काफी मजबूत हुई।

अब, आईपीएफटी टिपरालैंड नाम से अलग राज्य की मांग कर सियासी ताकत बढ़ा रहा है। दोनों की मांग कमोबेश एक सी हैं इसीलिए कवायद दोनों को एकजुट रखने की है, लेकिन टिपरा मोथा प्रमुख प्रद्योत देब बर्मा की त्रिपुरा की राजनीति में नया विकल्प बनने की चाहत संबंधी कुछ इशारों से भाजपा की चिंता बढ़ गई है। त्रिपुरा का सियासी दंगल बेहद दिलचस्प होता दिख रहा है। मेघालय में 2018 में नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) 20 और भाजपा ने 2 सीट जीत गठबंधन सरकार बनी। कांग्रेस 21 सीट जीत सबसे बड़ी पार्टी बनकर भी सत्ता तक नहीं पहुंच सकी। यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी यानी यूडीपी को 8, पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी पीडीएफ को 2 सीटें मिली। एनपीपी के कोनराड संगमा मुख्यमंत्री बने, लेकिन चुनाव पूर्व जोरदार राजनीतिक उथल-पुथल जारी है।

अब एनपीपी-भाजपा के बीच दरार की बातें सुनाई दे रही हैं। थोड़ा पहले एनपीपी के दो, तृणमूल कांग्रेस के एक और एक निर्दलीय यानी 4 विधायक भाजपा में चले गए जबकि कांग्रेस के 12 विधायकों ने तृणमूल का दामन थामा तो कुछ एनपीपी में चले गए जिससे 2 कांग्रेसी विधायक ही बचे हैं उनके भी दलबदल की चर्चा है। इससे सियासी समीकरण गड़बड़ा गया। संभावना है कि एनपीपी और भाजपा दोनों अलग-अलग चुनाव लड़ें। यहां भाजपा, कांग्रेस, टीएमसी जैसी राष्ट्रीय पार्टियों के अलावा तमाम क्षेत्रीय दल भी ताल ठोक रहे हैं। फिलहाल नेशनल पीपुल्स पार्टी, यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी, पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट, हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, गारो नेशनल काउंसिल, खुन हैन्नीवट्रेप राष्ट्रीय जागृति आंदोलन, नार्थ ईस्ट सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी, मेघालय डेमोक्रेटिक पार्टी भी चुनाव में सक्रिय है। यहां 36 सीटों में महिलाओं की जनसंख्या पुरु षों से अधिक है, लेकिन राजनीति में महिलाओं की मौजूदगी ना के बराबर है। हो सकता है इस बार यह भी मुद्दा बने।    

नगालैंड में तो अनोखी सरकार है। विपक्ष है ही नहीं। सभी ने मिलकर सरकार बना डाली और चलाई, लेकिन वहां की मूल समस्या पर प्रभावी कुछ न होना अब चुनावी रण में चिंता का विषय है। वैसे भी अपनी अलग तरह की राजनीति को लेकर नागालैंड सुर्खियों में रहता है। इसके बावजूद पक्ष-विपक्ष दोनों मतदाताओं के लिए खास हैं क्योंकि विपक्ष है ही नहीं! इस बार मतदाताओं के विवेक की अग्निपरीक्षा है। नई सरकार के लिए नये-पुराने गठबंधन की फिक्र सभी को सता रही है। जहां भाजपा एनडीपीपी के साथ गठबंधन करेगी तो राष्ट्रीय जनता दल ने कई सीटों पर चुनावी संभावनाओं को टटोल भाजपा की चिंता बढ़ा दी। वहीं अपने खोए जनाधार को मजबूत करने खातिर कांग्रेस भी पीछे नहीं है।

2013 में 8 और 2018 में एक भी सीटें नहीं जीतने वाली कांग्रेस नई उम्मीदों को टटोल रही है। नगालैंड में लोग नागा शांति समाधान के पक्षधर हैं। कांग्रेस इसी का फायदा उठाना चाहती है और चुनावी वायदों में बिजली, सड़क, उद्योग, नौकरियों पर फोकस के साथ समान विचारधारा व धर्मनिरपेक्ष गठबंधन पर नजरें टिकाए है। इस ईसाई बहुल राज्य में मजबूत हिंदू विरोधी रु ख तो नागा शांति वार्ता में देरी भी अहम मुद्दे हो सकते हैं। चुनावी ऐलान के साथ ही वहां राजनीतिक हलचल जबरदस्त हैं।

यूं तो पूर्वोत्तर में कभी कांग्रेस तो कहीं वाम का दबदबा रहा, लेकिन स्थानीय समस्याओं से पनपे क्षेत्रीय दलों ने राष्ट्रीय दलों को चुनौती तो पेश की मगर भाजपा ने उनसे हाथ मिला अपना दबदबा खूब बढ़ाया। वहीं घाटे में कांग्रेस रही। अब नये समीकरणों और हालात में देखना है कि पूर्वोत्तर राज्य क्षेत्रीय या राष्ट्रीय दल किसके साथ जाते हैं? वैसे तीनों राज्यों के चुनाव बेहद अहम और दिलचस्प जरूर होंगे, लेकिन केवल इन्हें ही केंद्र की सत्ता का सेमीफाइनल या लिटमस टेस्ट कहना जल्दबाजी होगी।

ऋतुपर्ण दवे


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment