तिलहन : आयातित तेल पर कम हो रही निर्भरता
खाद्य तेलों के बढ़ते आयात बिल से चिंतित सरकार ने तिलहन की पैदावार बढ़ाने पर विशेष जोर दिया है।
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सरकार की अनुकूल नीति के कारण तिलहन की खेती का क्षेत्र 9.60 प्रतिशत की दर से बढ़ा है। यह वृद्धि सभी फसलों की सामूहिक वृद्धि दर 4.37 प्रतिशत से दोगुनी से अधिक है। खेती वर्ष 2021-22 के दौरान तिलहन की खेती का क्षेत्र 93.28 लाख हेक्टेयर था जो इस साल बढ़कर 101.47 लाख हेक्टेयर हो गया। यह सामान्य बोए गए क्षेत्र 78.81 लाख हेक्टेयर पर 22.66 लाख हेक्टेयर अधिक है।
तिलहन की पैदावार बढ़ाने के लिए सरकार की चिंता का प्रमुख कारण यह है कि खाद्य तेलों की घरेलू मांग बढ़ रही है और उसे आयात के जरिए पूरा किया जा रहा है। नतीजतन, देश को खाद्य तेलों के आयात पर भारी खर्च करना पड़ रहा है। साल 2021-22 में देश को 1.41 लाख करोड़ रु पये खर्च कर एक करोड़ 42 लाख टन खाद्य तेलों का आयात करना पड़ा। सरकार खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता कम करने के लिए तिलहन की पैदावार बढ़ाने पर जोर दे रही है। पिछले दो सालों से ‘विशेष सरसों मिशन’ पर काम हो रहा है, जिससे किसानों का सरसों की खेती की ओर रूझान बढ़ रहा है। पिछले सालों में रेपसीड और सरसों का क्षेत्र 17 प्रतिशत बढ़कर खेती वर्ष 2021-22 में 80.58 लाख हेक्टेयर हो गया जबकि यह 2019-20 में 68.56 लाख हेक्टेयर था। हाल में सरकार ने जेनेटिकल्ली मोडिफाइड (जीएम) सरसों की खेती को भी मंजूरी दी है। जीएम सरसों को तिलहन पैदावार बढ़ाकर आत्मनिर्भर होने, प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बढ़ाने और आयात पर भारी मात्रा में खर्च होने वाली विदेशी मुद्रा बचाने के लिए जीएम सरसों को एक माकूल विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है।
पर्यावरण प्रेमी, कई किसान संगठन और खाद्य मामलों के विशेषज्ञों के विरोध के बावजूद जीएम सरसों को आगे बढ़ाया जा रहा है। सरकार का मानना है कि इकोलॉजिकल सिस्टम, मानव स्वास्थ्य और दूसरी फसलों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। भारत में करीब 72 प्रतिशत तिलहनी फसलें वष्रा पर आधारित रहती हैं। सरसों ऐसी फसल है जो कम पानी से भी हो जाती है। इसके अलावा दूसरी फसलों के मुकाबले सरसों की खेती में काफी कम लागत आती है; कम बीज, कम खाद और उर्वरकों की जरूरत होती है। सरसों की खेती का प्रबंधन भी अन्य फसलों की तुलना में काफी आसान है। यही वजह है कि पानी के अभाव वाला राजस्थान सरसों की सबसे अधिक पैदावार देता है। यूं तो गुजरात तिलहन की पैदावार में सबसे आगे है। यह देश की कुल तिलहन उपज का 20 प्रतिशत पैदा करता है, लेकिन सरसों की खेती में राजस्थान सबसे आगे है।
देश में सरसों की कुल उपज में राजस्थान का 40 फीसद हिस्सा है, लेकिन जब बात प्रति हेक्टेअर उत्पादन की होती है तो इसमें गुजरात आगे है। गुजरात के किसान प्रति हेक्टेयर 1910 किलो सरसों उगाते हैं, जबकि राजस्थान में प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन 1461 किलो है। जीएम सरसों की उत्पादकता इससे अधिक होगी। रबी सीजन 2022-23 के दौरान राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-तिलहन के तहत 18 राज्यों के 301 जिलों में 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से अधिक उपज क्षमता वाले बीजों के 26.50 लाख मिनीकिट किसानों को बांटे हैं। उन किस्मों से 2500-4000 क्विंटल उपज ली जा सकती है। तिलहन का क्षेत्र और उत्पादकता दोनों बढ़ने से तिलहन की पैदावार में भारी उछाल आएगा और आयातित खाद्य तेलों पर निर्भरता कम होगी।
रबी फसलों की बुवाई की निगरानी से पता चला है कि बुवाई की गति में अच्छी प्रगति है। 23 दिसम्बर तक रबी फसलों के तहत बोया गया क्षेत्र 620.61 लाख हेक्टेयर है जो 2021-22 के 594.62 लाख हेक्टेयर से 4.37 प्रतिशत अधिक है। यह वृद्धि सभी फसलों के क्षेत्र में हुई है। सबसे अधिक वृद्धि गेहूं के क्षेत्र में हुई है। सभी रबी फसलों के क्षेत्र में हुई 25.99 लाख हेक्टेयर की वृद्धि से गेहूं के क्षेत्र में 9.65 लाख हेक्टेयर का इजाफा हुआ है जो 302.61 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 312.26 लाख हेक्टेयर हो गया।
हालांकि रबी फसलों की बुवाई अभी जारी है। इस वर्ष 23 दिसंबर तक गेहूं के तहत लाया गया क्षेत्र सामान्य रबी फसल क्षेत्र 304.47 लाख हेक्टेयर से अधिक है। पिछले वर्ष बुआई का कुल क्षेत्र 304.70 लाख हेक्टेयर था। गेहूं बुवाई का क्षेत्र बढ़ने से भविष्य में गेहूं की आपूर्ति में वृद्धि सुनिश्चित होगी। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण दुनिया के कई देशों में गेहूं की पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो पा रही थी। भारत भी अपनी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहता है। इस पृष्ठभूमि में गेहूं का बुवाई क्षेत्र बढ़ना बहुत राहत की बात है। इस पृष्ठभूमि में कहा जा सकता है कि इस वर्ष रिकॉर्ड क्षेत्र फर बुवाई होने से इस रबी सीजन में गेहूं की पैदावार में खासी बढ़ोतरी होगी।
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