जल प्रबंधन : बुंदेलखंड में धुलेंगे पानी के दाग
दुनिया की दो तिहाई आबादी पानी की कमी की चपेट में है। संकट लगातार गहरा रहा है और भारत ने भी विकास की अपनी रफ्तार में जमीन का इतना पानी खींच लिया है कि इस बार मानसून मेहरबान होने के बावजूद भूगर्भ में पानी का ठहराव नहीं हो पाएगा।
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जितना बरसा उससे ज्यादा खींच लेने की रस्साकशी में जमीन ने आसमान को मात दे दी है। जो संकट कर्नाटक, महाराष्ट्र और राजस्थान के सूखे इलाकों में है, उतना ही उत्तर प्रदेश जैसे नदियों और बारिश की भरपूर आवक वाले इलाकों में भी है। कई राज्यों में बड़ी आबादी पलायन कर गई है क्योंकि पानी के प्रबंधन के बगैर न खेती, न उद्यम, न पशु पालन, न आजीविका।
‘डायनामिक ग्राउंड वॉटर रिसोर्स असेसमेंट ऑफ इंडिया’ की हालिया रिपोर्ट से पता लग रहा है कि इस साल धरती ने सबसे ज्यादा पानी संजोया है। फिर भी ज्यादा राहत इसलिए नहीं होगी कि 60 फीसद से ज्यादा सिंचाई और पीने के लिए फिर निकाल लिया जाएगा। देश के जल शक्ति मंत्री चेता रहे हैं कि धरती की कोख से 166 फीसद शोषण कर रहे हैं हम। एक ओर सरकारी कोशिशें हैं, दूसरी ओर संगठनों के स्तर पर ‘सुजलम’ जैसे देशव्यापी आयोजन हैं, जहां जल से जुड़ी लोक परंपराओं, शोध, देशज-ज्ञान, भारतीय-दशर्न और विज्ञान पर सार्थक संवाद हो रहे हैं।
भारत सरकार का ‘हर घर जल’ मिशन ज्यादातर राज्यों में अच्छी रफ्तार में है। नोबेल विजेता माइकल क्रेमर ने अपने एक शोध पत्र ‘हर घर नल’ से भारत में पांच साल की उम्र के सवा लाख से ज्यादा बच्चों की जान बचने का अनुमान लगाया है। साफ पानी की घर-घर पहुंच भी छोटा मसला नहीं रहा। पंजाब, गोवा, गुजरात जैसे राज्यों के हर घर को अब पानी नसीब है और बिहार जैसे राज्य भी सौ फीसदी लक्ष्य के पास हैं जबकि उत्तर प्रदेश इस मामले में अभी केवल 20 फीसद घरों तक ही पहुंच बना पाया है। राजस्थान, झारखंड, पश्चिम बंगाल, केरल, छत्तीसगढ़ भी नीचे के पायदानों पर ही हैं। ग्रामीण भारत में ‘जल जीवन मिशन’ का रिपोर्ट कार्ड मंत्रालय के डैशबोर्ड पर है। आज के दौर में आंकड़े ही आंख हैं, जिन्हें डिजिटल उंगलियां मिलने से देखने में और सहूलियत हो गई है। काम कहां धीमा है, कहां रफ्तार में, कितना लक्ष्य हासिल और कितना बाकी, सब साफ-साफ नजर आने लगा है।
जिस तरह मराठवाड़ा का इलाका किसानों की हताशा का पर्याय बन गया था, उसी तरह, उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड सूखा, अभाव, पलायन, संसाधनों के शोषण और पानी के लिए झगड़ों के कारण खबरों में रहने लगा था। समाज चेता तो समाधान के लिए राजनीतिक नेतृत्व ने भी बीड़ा उठाया। बुंदेलखंड अंचल के सभी सात जिलों-बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा, झांसी, जालौन और ललितपुर में छोटे बांध और तालाबों के फिर से जीवित होने के सुबूत जियो टैगिंग के जरिए मुहैया हैं। हर चेकडैम, सरोवर, तालाब की फोटो, वीडियो और सारी जानकारी पोर्टल पर है। बुंदेलखंड को मॉडल के तौर पर खड़ा करने के लिए सिंचाई-जल-कृषि विभाग, जल-शक्ति मंत्रालय और हजारों अनाम जल-सारथी जुड़े हैं। कुओं-तालाबों-खेतों को लय में लाने के लिए इस साल के आखिर तक ही विंध्याचल और बुंदेलखंड के सभी सूखे इलाकों में ‘हर घर नल’ पहुंच जाएगा, ऐसा दावा राज्य सरकार ने किया है। उत्तर प्रदेश सरकार की ‘अमृत-सरोवर’ योजना ने 60 से ज्यादा नदियों को जीवित किया है और 58 पंचायतों के सैकड़ों सरोवरों का जीवन लौटा है।
बुंदेलखंड की महिलाओं ने ‘जल-सहेली’ बनकर कई गांवों को जल-समृद्ध बनने के लिए तैयार कर लिया है। पुराने जल स्रोतों को संभालने और खेती-सिंचाई में पानी की बर्बादी रोकने में वो सफल हुई हैं, तो इन्हीं पगडंडियों से चलकर पूरा इलाका मिसाल के तौर पर खड़ा दिखने को बेताब है। जल-सहेजने के अलावा जितना पानी मुहैया है, उसका प्रभावी इस्तेमाल और बूंद-बूंद की बचत से बेहतर खेती, अच्छी उपज और कमाई के लिए आधुनिक तकनीक और पारंपरिक ज्ञान दोनों के लिए बुंदेलखंड कमर कस रहा है। प्रदेश का प्रशासन, इजराइली कंपनियों के साथ ‘मास्टर प्लान’ भी तैयार कर रहा है, जो बाकी राज्यों के लिए भी पानी का ‘रोडमैप’ हो सकता है।
प्रधानमंत्री की 2017 में हुई इजराइल यात्रा के बाद हुए जल-समझौतों में बुंदेलखंड इलाका भी उन 28 जिलों में शामिल है, जहां पानी के मामले में आत्मनिर्भर होने और किसानों की आय में बढ़ोतरी के मसलों पर गहन काम होना है। इस मसले पर इजराइल सरकार के भारत में नियुक्त जल-अटैची यानी विशेषज्ञ डॉक्टर लीरोन असफ से चर्चा हुई तो उन्होंने भी बुंदेलखंड मॉडल के लिए एक नामी इजराइली कंपनी के मार्फ्त पानी और खेती के लिए तकनीक और समुदायों की क्षमता बढ़ाने का खाका साझा किया। इजराइली कंपनी और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच का यह करार पिछले साल ही हुआ है जिसके पहले चरण में झांसी जिले के बबीना प्रखंड के 25 गांवों में काम होगा। भारत-इजराइल-बुंदेलखंड समझौते में जल-संरक्षण, जल-कुशल और खेती की उन्नत प्रथाओं के साथ काम आगे बढ़ेगा और अगले चरण में अनुभवों से उपजी समझ से खास तौर से बुंदेलखंड इलाके के लिए जल का ‘मास्टर-प्लान’ भी तैयार होगा।
असल में जल और खेती की मजबूती के लिए छोटा रास्ता नहीं अपनाया जा सकता। इसके लिए जरूरी कड़ी है कि पानी के प्रबंधन और व्यवस्था में पारदर्शिता के लिए सरकारी व्यवस्था पुख्ता हो। पानी का ‘मास्टर प्लान’ देश भर के जरूरत वाले इलाकों में लागू करने के लिए सरकारी मशीनरी की क्षमता और प्रशिक्षण, दोनों जरूरी हैं। यूं देश में जल नीति है, राज्य सरकारों की ढेरों योजनाएं हैं, और जल समस्याओं से निपटने के लिए साधन-संसाधन भी झोंके जा रहे हैं, लेकिन राजनीतिक नेतृत्व की इच्छाशक्ति समाधानों को जमीन पर उतारने का बड़ा रास्ता है। जल-शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के बीच के तालमेल से जो जल-मॉडल उभरेगा, वो पूरे उत्तर-प्रदेश को जल संकट से उबरने में मदद कर पाए, यह जरूरी है।
यह दौर चक्रीय अर्थव्यवस्था में हरित ऊर्जा, टिकाऊ खेती और जल-समृद्धि के साथ ही जल-परंपराओं और देशज ज्ञान को संभालने का भी है। बदलाव की इस पूरी प्रक्रिया में महिला किसानों और युवाओं के साथ साथ पूरे समाज की बेहतरी की बात भी दोहराई जानी चाहिए। समाज के बहाव में पानी से हमारा रिश्ता जितना मजबूत रहेगा, उतना ही हम जलाशयों की धरोहर के साथ-साथ, वैज्ञानिक सोच को आत्मसात कर पाएंगे। विकास के हर पक्ष को साधने का रास्ता जल-घोष से ही गुजरेगा, यह समझ जनमानस में पैरने लगी है।
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