पर्व-त्योहार : आर्थिकी को मिलेगी मजबूती
त्योहार लोगों के जीवन में उल्लास का रंग भर देते हैं। देश की आर्थिकी को भी मजबूत करने का काम करते हैं।
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ये रोजगार सृजन के स्रेत हैं। बेशक, स्थायी नहीं लेकिन स्थानीय कामगारों, कलाकारों और शिल्पकारों को अस्थायी तौर पर कुछ दिन-महीनों के लिए जरूर रोजगार मिल जाता है। इससे मांग-आपूर्ति में बेहतरी आती है। विविध क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों में भी इजाफा होता है।
छब्बीस सितम्बर से 5 अक्टूबर तक दुर्गा पूजा का आयोजन हुआ। पश्चिम बंगाल और पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड और ओडिसा में विशेष रूप से और कमोबेश देश भर में यह पर्व मनाया जाता है। इस पूजा के दौरान प्रतिमा बनाने वाले कुम्हार, दुर्गा मां के जेवर बनाने वाले कलाकार, नाटक करने वाले कलाकार, नृत्य-संगीत, होटल, रेस्टोरेंट, पर्यटन आदि उद्योगों को बढ़ावा मिलता है। यूनेस्को ने 2021 में दुर्गा पूजा को ‘अमूर्त सांस्कृतिक विरासत’ घोषित कर दिया है, जिससे कयास लगाए जा रहे हैं कि हर साल पूजा के दौरान पर्यटकों के आवक में तेजी आएगी जिनमें विदेशी पर्यटकों की संख्या अधिक रहेगी।
2019 में पश्चिम बंगाल में लगभग 43,000 दुर्गा प्रतिमाओं का निर्माण किया गया और उसी दौरान हुए कारोबार पर ब्रिटिश काउंसिल ने एक अध्ययन किया। इसके अनुसार 2019 के दौरान दुर्गा पूजा में 32,377 करोड़ रुपये का व्यापार हुआ, जो पश्चिम बंगाल के कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2.58 प्रतिशत था। इस राशि में खुदरा क्षेत्र की हिस्सेदारी 27,364 करोड़ रुपये की थी। एक अनुमान के अनुसार इस साल देश में दुर्गा पूजा के दौरान लगभग 1.25 से 1.5 लाख करोड़ रुपये का कारोबार हुआ है। चालीस हजार से अधिक पूजा पंडाल कोलकाता में बने। ममता सरकार ने पंडाल निर्माण हेतु सभी पूजा समितियों को 60,000 रुपये का अनुदान दिया। पूजा के दौरान खपत होने वाली बिजली पर 60 प्रतिशत की छूट दी। एक अनुमान के मुताबिक, इस साल पूजा में 40 से 45 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए।
बिहार की राजधानी पटना में 3000 से अधिक पंडाल बनाए गए। प्रतिमा, पंडाल और लाइटिंग में 125 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हुए। पंडालों के निर्माण में 2.5 लाख से 10 लाख रुपये तक खर्च किए गए। छोटे पंडालों की संख्या 1600 थी, मझौले पंडालों की संख्या 1100 और बड़े पंडालों की संख्या 300 थी। पंडाल, लाइटिंग और पूजा की सामग्रियों में लगभग 25 प्रतिशत का इजाफा हुआ। फिर भी, पूजा समितियों ने पूरे उत्साह से दुर्गा पूजा का आयोजन किया। झारखंड की राजधानी रांची में एक अनुमान के मुताबिक, इस साल दुर्गा पूजा पर 386 करोड़ रुपये खर्च हुए क्योंकि झारखंड में दुर्गा पूजा के दौरान नये वाहन खरीदने की प्रथा है। एक अनुमान के मुताबिक, रांची में इस साल पूजा के दौरान 3000 से अधिक दोपहिया वाहन बेचे गए। कोरोना के बाद दुर्गा पूजा के लिए धन का सबसे प्रमुख स्रेत प्रायोजन रहा। बैंकों से लेकर रोजमर्रा के इस्तेमाल में कारोबार करने वाली कंपनियों, उपभोक्ता सामान से जुड़ी कंपनियों ने इस वर्ष दुर्गा पूजा को प्रायोजित किया। नामचीन पूजा पंडाल, पंडाल के द्वार, खंभे, बैनर और स्टॉल प्रायोजन के लिए मुहैया करवाते हैं। विज्ञापन से भी दुर्गा पूजा के लिए पैसे आते हैं।
इस वर्ष दीवाली 24 अक्टूबर को मनाई जायेगी। दीवाली में लक्ष्मी मां की पूजा की जाती है, जिन्हें धन की देवी माना जाता है। इस त्योहार में दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच मिठाइयों का आदान-प्रदान किया जाता है। कुम्हार दीये और खिलौने बनाते हैं। लोग पटाखे जलाकर खुशी का इजहार करते हैं। इस कारण पटाखों का कारोबार बड़े पैमाने पर किया जाता है। हालांकि, इस त्योहार में अब स्वदेशी की जगह चीन में बने दीये, खिलौने और लक्ष्मी मां की मूर्तियों ने भारतीय बाजार पर कब्जा कर लिया है। दीवाली से दो दिन पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन सोना, चांदी और धातु के बर्तन खरीदने का रिवाज है। नये वाहन भी इस दिन खूब खरीदे जाते हैं। अखिल भारतीय व्यापार परिसंघ (सीएआईटी) के आंकड़ों के मुताबक कोरोना महामारी के बावजूद 2021 में दीवाली के दौरान 1.25 लाख करोड़ रुपये का कारोबार किया गया था, जो विगत 10 सालों का रिकॉर्ड था।
सीएआईटी के मुताबिक देशभर में चीनी उत्पादों के बहिष्कार की मुहिम चलाए जाने की वजह से चीन को 2019 में लगभग 50 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था और स्थानीय कारीगरों, शिल्पकारों, कुम्हारों आदि की कमाई में तेजी आई। ई-कॉमर्स कंपनियां भी इस साल दीवाली में जबर्दस्त कारोबार होने की उम्मीद कर रही हैं। सीएआईटी के अनुसार दीवाली में कुल कारोबार 1.5 से 1.75 लाख करोड़ रुपये की सीमा पार कर सकता है, क्योंकि विगत 2 सालों से आम जन कोरोना महामारी की वजह से परेशान था और इस साल खुद को उत्सव के रंग में सराबोर करना चाहता है। भारत विविधताओं से भरा देश है। यहां हर 12 कोस में बोली, रहन-सहन,भाषा और पानी बदल जाता है, लेकिन इस बदलाव को त्योहार एक रंग में रंग देते हैं। इंसान की जिंदगी में अनेक मुश्किलें हैं, जिससे वह अक्सर घबरा जाता है। त्योहार हमें मुश्किलों के बीच जीना सिखाते हैं। हमें आर्थिक रूप से सबल बनाने का काम भी करते हैं।
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