कट्टरपंथ : तरीके से निपटने की चुनौती

Last Updated 19 Jul 2022 11:41:18 AM IST

देश में कट्टरपंथ के कारण डरावनी स्थिति पैदा हो रही है। जिन्हें इस्लामी कट्टरवाद की भयावहता का अहसास नहीं, जो अभी भी इसे कुछ लोगों की छिटपुट वारदातें मानते हैं, वह स्थिति की गंभीरता नहीं समझ सकते।


कट्टरपंथ : तरीके से निपटने की चुनौती

स्वयं मुस्लिम समाज के अंदर भी ऐसे लोग हैं जो स्थिति को लेकर काफी चिंतित है। उन्हें लगता है कि उनके समाज में कट्टर सोच सीमा से ज्यादा बढ़ा है।

जब भी देश के सामने इस तरह की गंभीर स्थिति पैदा हो; सबको इसे सही परिप्रेक्ष्य में समझने की कोशिश करनी चाहिए। जब आप स्थिति को उसकी पूरी सच्चाई के साथ समझेंगे तभी इसे रोकने या खत्म करने के लिए कदम उठाए जा सकेंगे। दुर्भाग्य है कि भारत की राजनीति, एक्टिविज्म यहां तक कि गैर राजनीतिक संगठनों एवं मीडिया में ऐसे लोग भरे पड़े हैं, जो या तो जान-बूझकर सच स्वीकार नहीं कर करते या फिर उनके अंदर सच देखने और समझने की अंत:शक्ति नहीं है।

इससे हर विवेकशील भारतीय का डर बढ़ा है। आप देखिए, बिहार की राजधानी पटना और पड़ोस के फुलवारीशरीफ में पीएफआई की मजहबी हिंसा  तैयारियां स्पष्ट सामने आ चुकी हैं। इनके दस्तावेज में 2047 तक भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाने का लक्ष्य है। इसलिए मुसलमानों को शस्त्र सहित हर तरह का प्रशिक्षण दे रहे थे। क्या यह हम सबको भारत में इस्लामी कट्टरवाद को लेकर नये सिरे से विचार करने की आवश्यकता नहीं जताता?

तस्वीर देखिए। कोई कह रहा है कि कुछ मुट्ठी भर लोगों द्वारा दस्तावेज बना देने से भारत 2047 तक इस्लामिक देश नहीं बन जाएगा। कोई सलाह दे रहा है कि मामले को सनसनीखेज बनाकर सांप्रदायिक तनाव न बढ़ाया जाए। यानी पुलिस सच न बताए। कुछ लोगों को इसमें भी संघ और भाजपा की भूमिका नजर आती है। कुछ कह रहे हैं कि यह तो सरकार की विफलता है और वहां भाजपा सरकार में शामिल है। गैर भाजपा दलों में कोई भी इसके विरु द्ध खुल कर खड़ा होने नहीं आया है। उदयपुर से अमरावती तक की भयानक घटनाएं भारत में पैठ बना चुकी हिंसक इस्लामी जिहाद का साक्षात प्रमाण है। इसे भी किंतु-परंतु के साथ सामान्य ठहराया जा रहा है।

मुसलमानों के ज्यादातर जाने पहचाने चेहरे कह रहे हैं कि उन्हें कानून के तहत सख्त सजा दी जाए, लेकिन यह स्वीकारने को तैयार नहीं कि उनके समुदाय में इतने व्यापक पैमाने पर रेडिकलाइजेशन हो चुका है। अभी कानपुर दंगे के बारे में एक नया सच सामने आया है। दंगे के मुख्य सूत्रधार हयात जफर हाशमी ने एक बिल्डर हाजी मोहम्मद वसी के साथ चंद्रेर हाता नामक जगह खाली कराने का ठेका लिया था। हाशमी ने पहले विरोध प्रदशर्न की घोषणा की थी, लेकिन उसने इसे नियोजित कर हिंसा में परिणत करा दिया। आम मुसलमानों को यही पता था कि नूपुर शर्मा ने टीवी डिबेट में नबी का अपमान किया है और उसके विरुद्ध हम काम कर रहे हैं, जबकि इसके पीछे एक बिल्डर और उससे पैसा लेने वाले शातिर की योजना भी थी। पता नहीं अलग-अलग प्रकार की ऐसी सोच के षड्यंत्र कहां-कहां किए जा रहे होंगे।

जिनके अंदर यह भाव पैदा किया जा चुका है कि भाजपा, नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, आदित्यनाथ योगी आदि के रहते मुसलमानों के लिए सिर उठा कर जीना मुश्किल हो जाएगा, नबी का अपमान होता रहेगा, नमाज पढ़ने तक में समस्या उत्पन्न होंगे, मस्जिदें छीन जाएंगी वे सड़कों पर उतर कर हिंसक ताकत दिखाने की कोशिश नहीं कर रहे होंगे? क्या हमारे देश के नेताओं, अधिकारियों, एक्टिविस्टों, पत्रकारों के बड़े समूह और बुद्धिजीवियों को इसका आभास नहीं होगा? अवश्य होगा लेकिन नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, भाजपा और संघ का विरोध करना है, उसके सामने चुनौतियां पेश करनी है, इसलिए बहुत कुछ देखते-  समझते हुए भी वे इनका समर्थन करते हैं।

अग्निवीर योजना को रक्षा, सेना और यहां तक कि नई पीढ़ी के युवाओं के लिए भी घातक बता देना हिंसा का समर्थन करना ही तो है। अभी कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु  में चंदरू नामक एक युवक की हत्या के संदर्भ में आरोप पत्र दाखिल हुआ है। 5 अप्रैल को हुई हत्या को पुलिस आयुक्त ने सामान्य रोडवेज का मामला बता दिया था। पकड़े गए चारों मुस्लिम युवक थे, जिन्होंने उसे उर्दू ना बोल पाने के बाद चाकू घोंप दिया था।

इस तरह की स्थिति देशभर में पैदा हो रही है। भारत में यह घातक व्यवहार रहा है कि मुसलमानों की सांप्रदायिकता, उनकी हिंसा और उनके द्वारा किए गए दंगों पर राजनीति, प्रशासन यहां तक कि मीडिया आंखें मूंद लेता था। मुसलमान शब्द प्रयोग से हर हाल में बचने की मानसिकता हमारे यहां रही है। इससे वातावरण ऐसा बन गया मानो मुसलमानों की सांप्रदायिक हिंसा अपराध पर सार्वजनिक रूप से बोलने से सांप्रदायिकता बढ़ेगा और देश की एकता व अखंडता पर खतरा पैदा हो जाएगा।

इस सोच ने पूरे वातावरण को विकृत किया। आज भी जब आप ऐसी घटनाओं के साथ एक समुदाय की जगह मुसलमान शब्द प्रयोग करते हैं तो बहुत सारे लोगों को लगता है कि यह सेक्यूलरवाद के विरु द्ध सांप्रदायिक व्यवहार है जो देश को क्षति पहुंचाएगा। भारत के अलावा ऐसी विकृत घातक मानसिकता विश्व के किसी देश में नहीं है। कोई नहीं कह सकता कि भारत के सारे मुसलमान कट्टरपंथी हैं और जिहाद के अपने नजरिये की हिंसक सोच का व्यवहार करने के लिए उद्धत हैं या इसका समर्थन करते हैं। किंतु एक वर्ग ऐसा पैदा हो गया है जो ‘गजवा ए हिंद’ की सीमा तक जाने की मानसिकता में काम कर रहा है। इनकी संख्या पर अभी मत जाइए। कट्टरपंथी हिंसक समूहों की संख्या बड़ी नहीं होती। बावजूद वो किसी भी देश को विनाश की कगार तक पहुंचा देते हैं।

जाहिर है, इनको छिटपुट आपराधिक गतिविधि मानने की बजाय व्यापक जिहाद के संदर्भ में देखना होगा जो इस समय इस्लामवाद की अंतरराष्ट्रीय प्रवृत्ति है। उसी के अनुरूप इनके साथ निपटना होगा। संघ और भाजपा का नाम लेने से इनका व्यवहार सही साबित हो जाता है। यानी उनकी प्रतिक्रिया में मजहबी कट्टरता पैदा हुई है और उसी कारण ये हिंसा करते हैं। जहां संघ और भाजपा नहीं है क्या वहां इस्लाम आधारित हिंसा नहीं है? ज्यादातर हिंसा उन्हीं देशों में है, जहां केवल या अधिकतर मुस्लिम आबादी है। इसलिए खतरनाक प्रवृत्ति को राजनीतिक चश्मे से देखने की बजाय देश की भयावह तस्वीर की कल्पना कर उसी अनुसार अपनी भूमिका निर्धारित करिए।

अवधेश कुमार


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